आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

कथा / Fiction

कारपोरेट इंडिया: अनिल यादव

कथा / Fiction

आदमी और जानवर का संघर्ष सारी दुनिया में करीब समाप्त हो चुका है. लेकिन क्या आवारा क्या पालतू शहर के सारे कुत्ते लोकू को पहचानते हैं. वह कहीं भी जाए वे सुरक्षित दूरी से उसके पीछे भौंकते चलते हैं और अपने मुहल्ले की सीमा पार करा कर ही वापस लौटते हैं. एक मुहल्ला पार करते […]



झूठ: महेश वर्मा

कथा / Fiction

कुछ सिर कटने से फड़फड़ाते कुछ मृत्यु की आशंका से बेचैन जीवित मुर्गों, ज़मीन पर बह रहे खून, पड़े हुए पंखों और अवयवों के बीच अपने सफेद बालों में वह एक देवता दिखार्इ देता. पेड़ के तने के एक टुकड़े पर उदास सहजता से मुर्गों को रखकर बिलकुल तय जगहों पर अपना धारदार चाकू चलाता […]



बारिश की रात छुट्टी की रात: रविन्द्र आरोही

कथा / Fiction

यह कहानी को सच बनाने की कवायत नहीं, बस… कहानी को कहानी बनाए रखने का दुस्साहस है. यह सीधे-सीधे दुनियादारी की छौंक थी. प्रोफेसर दिल्ली के नहीं, दिल्ली जैसे ही एक शहर के रहनवार थे. जिस तरह दिल्ली भारत की राजधानी है, वह शहर भी अपने राज्य की राजधानी था. उस शहर में दिल्ली जैसी […]



देशकाल: रामकुमार तिवारी

कथा / Fiction

खाली मैदान के उस पार से गुजरती सड़क पर लोग आ-जा रहे थे. बस स्टैण्ड पर माते की टी-स्टाल के सामने बेंच पर जहाँ जयंत बैठा था, वहाँ से चेहरे ठीक-ठीक नहीं दिख रहे थे, लेकिन गौर से देखने पर पहचान में आ जाते थे. साइकिल पर सवार डी.पी. को देखते ही जयंत ने तुरंत […]



वीराने का कोतवाल: चंदन पाँडेय

कथा / Fiction

चोरी के पारम्परिक तरीके जानलेवा और नुकसानदेह हो चुके थे. सेंध लगाने वाले स्मृतियों से अलग कहीं भी सेंध खोद पाने में अक्षम हो चले थे. पॉकेटमार असबाब कम, बेकाबू भीड़ की सेवा अधिक पाते थे. जहरखुरानी के रंचमात्र शिकार मजदूर बचे थे जो चाह कर भी इतनी धन दौलत बचा ही नही पाते थे […]



संगीत सम्मेलन: प्रभु नारायण वर्मा

कथा / Fiction

संगीत एक धीमी, अनुपयोगी और ख़तरनाक क्रिया है जिससे सभ्य लोग प्राय: दूर ही रहना पसंद करते हैं- इसीलिए सभ्य समाज प्राय: उन संगीत कार्यक्रमों को उत्साहित करता है, जिनमें संगीत का प्रकटन अधिकतम विकृत व वितृष्णाजनक रूप में हो. शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम के थोड़ा पहले का दृश्य इसकी पुष्टि करता है. कुरतों-पायजामों में […]



गुमने की जगह: कुमार अम्बुज

कथा / Fiction

यदि किसी शहर में गुम जाने लायक जगहें नहीं हैं तो वह एक अधूरा शहर है. बल्कि वह कोई विशाल मरुस्थल है. जहाँ धूप ही धूप है और छाया नहीं है. मरीचिकाएँ हैं और पानी नहीं है. जैसे वृक्ष तो है, डालियाँ भी हैं लेकिन पत्ते नहीं है. मनुष्य की तरह गुम सकने के लिए […]



उड़ गये फुलवा रह गर्इ बास (उपन्यास अंश): अजय मिश्र

कथा / Fiction

जेठ की सुलगती दोपहर. जब चिडि़या भी बोलना बंद कर, दाना-पानी का जुगाड़ कर घोंसलों में दुबकी होती है. बड़े पक्षी किसी घने वृक्ष की छायादार पत्तियों में छिपे-दुबके आराम करते हैं. जब सूरज सिर पर जल्दी चढ़ अपनी तेज,तीखी और सीधी किरणों से थप्पड़ मारता है. जब गली के कुत्ते किसी ठंडी जगह या […]



विसर्जन: नकुल मल्लिक

कथा / Fiction

तमाम तरह की पनीली वनस्पतियों से भरा पोखर सफ़ाई करने वाले उन जमादार लोगों की जान था। वहाँ वे नहाते, हाथ-पैर, कपड़े धोते और अपने गाय-बछड़ों को नहलाते। गरमी के मौसम में मोहल्ले के लड़के दिन-भर फुटबॉल खेलकर थक जाते और उस पोखर में तैरकर अपनी तपिश और थकन मिटाते। बारिश आती तो बच्चे और […]



जीरो डिग्रीः चारू निवेदिता

कथा / Fiction

प्रार्थना मेरी प्रिय जेनी, मैं इस समय वास्तविकता के संसार से अलग खड़ा हूँ, सोच रहा हूँ तुमसे बात किये कितना लंबा अरसा बीत चुका है. मुझे वे शब्द याद हैं जो तुमने कहे थे, जब हम आखिरी बार जुदा हो रहे थे उससे ऐन पहले, “अप्पा, तुम मुझसे मिलने आओगे, आओगे न?” हम नहीं […]