आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

जीरो डिग्रीः चारू निवेदिता

प्रार्थना

मेरी प्रिय जेनी,

मैं इस समय वास्तविकता के संसार से अलग खड़ा हूँ, सोच रहा हूँ तुमसे बात किये कितना लंबा अरसा बीत चुका है.

मुझे वे शब्द याद हैं जो तुमने कहे थे, जब हम आखिरी बार जुदा हो रहे थे उससे ऐन पहले, “अप्पा, तुम मुझसे मिलने आओगे, आओगे न?”

हम नहीं जानते थे कि वह हमारी आखिरी मुलाकात होने वाली है.

मेरी प्यारी बेटी, उन आंसुओं के मोल मैं तुम्हें कभी क्या दे सकता हूँ, आंसू जो तुम्हारी आँखों से ओस की बूंदों की तरह लटक रहे थे…?

आंसुओं की पहली बूंदों को देखकर मुझे महसूस हुआ कि मेरे मन के कहीं गहरे भीतर तब भी उष्मा बची थी.

मैंने अपनी महिला मित्रों और पाठिकाओं के साथ १८०० पन्नों की बातचीत संकलित की है, और अपना इतिहास भी. इनमें से ज्यादातर पन्ने तो मैंने फेंक दिए, लेकिन जो बचे हैं उनको अब तुम्हें भेजता हूँ. मेरे पास इसे जानने का कोई रास्ता नहीं है कि ये शब्द बर्फीले पहाड़ों के पार तुम तक पहुंचेंगे भी या नहीं.

इसलिए तुम्हारे कोमल ह्रदय को अपनी कुलपरम्परा की पौरुष-भरी क्रूरता से भरने के बाद मैं पहाड़ी बंजर में अकेला चलता रहा, बिना जाने कि दिन है या रात.

मनुष्य की आवाज़ में बोले या मनुष्य की आवाज़ सुने मुझे बरसों बीत गए हैं. मैं यह नहीं कहूँगा कि ख़ामोशी मुझे बचा रही है. मुझे लगता है उस गहरी ख़ामोशी में संगीत की तान ने मुझे ज़िंदा रखा है.

या शायद…

मेरा दिल अब भी धड़क रहा है तो तुम्हारे लिए.

इस धुंधले मरुस्थल का सृजन तुमने किया है.

तुम सृष्टि हो.

मुझे लगता है इस संवाद की शून्यता जो मैंने सृष्टि के साथ की है इस पाठ में जीवंत हो उठेगी.

बस तुम्हारा कोमल स्पर्श ही मुझे पुनर्जीवन दे सकता है, वह जीवन जो धीरे-धीरे दूर होता जा रहा है.

मेरी प्रिय पाठिकाओं, जब आप जीरो डिग्री के इस पाठ को पढ़ना शुरु करेंगी तब हो सकता है आप…

अपने पेट के बल लेटकर अपनी शादी की कल्पनाओं में खोई हों.

कोई कविता या पत्र लिख रही हों.

टाईपराइटर पर बैठी अपने बॉस के अबूझ डिक्टेशन में सर खपा रही हों.

बस, ट्रेन या कार में यात्रा कर रही हों.

फोन पर अपने पति से झगड़ा कर रही हों.

अपने पैरों में टाट को मोज़े की तरह पहने गर्म पिघले कोलतार पर चल रही हों, सड़क के गड्ढों को रोड़ी से भरने के लिए.

उस तालाब के किनारे बैठी हों जिसमें तल पर तो पानी गर्म हो लेकिन अतल में ठंढा, अपनी स्कर्ट को घुटनों के इर्द-गिर्द लपेटे पानी में पैरों को थपथपा रही हों.

ग्रेनाइट की खदान में काम कर रही हों.

बायोलोजी की कक्षा में जम्हाई ले रही हों.

हस्पताल में गहरी बेहोशी में पड़ी हों.

पागलखाने के गलियारे में बैठी अपने घाव कुरेद रही हों.

नींद की गोलियाँ खा रही हों.

झुंझला रही हों, अकेली, तलाक़ के बाद, अपने जीवन को किसी आदमी के लिए और अधिक कुर्बान करने से इनकार करती हुई.

नब्बे सिलाई मशीनों के बीच बैठी पैरों से मशीन चला रही हों, और जब जांघें आपस में जोर से रगड़ जाती हों तो ठंडी साँसें भरती हुईं.

अपना गर्भ गिराने के लिए रस्सी कूद रही हों.

अपने बेटे के सर पर पत्थर गिरा रही हों जिसने उस समय आपके ऊपर चुपचाप नज़र रखी हो जब आप अपने प्रेमी के साथ रही हों.

अपनी बेटी की जांघ को गर्म लाल छड़ से दाग रही हों.

अपने बेवफा पति की हत्या के तरीके के बारे में सोच रही हों.

डांस मास्टर द्वारा सिखाए गए डांस को चिढ़ी हुई हिरोइन के सामने करके दिखा रही हों, नौवीं बार, आउटडोर शूटिंग में, सूरज की गर्मी में.

इस बात के बारे में सोच रही हों कि जब हीरो ने आपका चुंबन लिया तो उसके मुँह से व्हिस्की की जो बास थी वह रात की थी या जो उसने सवेरे-सवेरे पी थी उसकी.

अपने दफ्तर की मेज़ पर बैठी मासिक धर्म से उठने वाली मरोड़ के कारण अपने होंठ चबा रही हों.

गाय दुह रही हों.

लोगों के एक समूह के साथ पैदल यात्रा पर हों.

अपने सबसे अच्छे दोस्त के साथ सम्भोग कर रही हों.

अपने प्रेमी के साथ बीयर पी रही हों.

अपने नाखून काट रही हों.

एन फ्रेंच लगाकर अपने बगलों के बाल निकाल रही हों.

अपने भाई या ईश्वर के साथ सम्भोग करने के सपने देख रही हों.

दिन के नौवें ग्राहक को उस छिद्र की जगह केवल भिंची हुई जांघें देने की योजना बना रही हों.

किसी साहित्यिक पत्रिका को जला रही हों.

उस हिजड़े को गंदी-गंदी गालियाँ बक रही हों जिसने पैसे में आपको अपना हिस्सा देने से इनकार कर दिया हो.

गाँजा पी रही हों.

बीड़ी बना रही हों.

माचिस को तीलियों से भर रही हों.

अपने बच्चे को दूध पिला रही हों.

एक नए प्रकार के साबुन को बेचने के लिए किसी अनजान के दरवाज़े को खटखटा रही हों.

अपने दोस्त से हेलेन सिक्सू के बारे में बातें कर रही हों.

मेडस नाटक में क्लेयर का अभिनय करने के लिए रिहर्सल कर रही हों.

मैडवुमंस अंडरक्लोथ्स में योनि के बारे में लिखे अनुच्छेद को पढ़ रही हों.

गंदे पोस्टर पर दिखाई दे रहे वक्ष के उभार पर कालिख पोत रही हों.

गाय के गोबर को पैरों से आकार देती हुई उपले पाथ रही हों.

अपने वाकमैन पर केनी जी के गाने सुन रही हों.

बड़े ध्यान से अंडे की ज़र्दी निकाल रही हों.

चीख रही हों जब आपके पति की माँ ने आपको झुकाकर पकड़ रखा हो और आपके पति ने आपके ऊपर किरासन तेल उंडेलकर जलती हुई माचिस की तीली आपके ऊपर फेंक दी हो.

परीक्षा में फेल हो जाने पर कनेर के बीज खा रही हों.

बाहर के कमरे में जब आपकी माँ किसी अनजान आदमी के साथ संभोगरत हों कि आप अचानक वहां पहुँच गई हों.

अपने प्रेमी के साथ भाग रही हों.

कोने में दुबक गई हों जब आपके ग्राहक ने आपके सामने अपने कपड़े उतार दिए हों.

फासले के बारे में सोच रही हों जब नायक आपकी नाभि पर झुका हो और कैमरे ने उसका बहुत नज़दीक से क्लोजअप ले लिया हो.

आतंकवादी बनने का प्रशिक्षण ले रही हों.

कराह रही हों क्योंकि एक ब्लू फिल्म की शूटिंग के लिए केले के आकार का शिश्न आपके गले तक पहुँच गया हो.

आप उस हीरो से परेशान हों आपके छोटे ब्लाउज से ऊपर दिख रहे उभार को घूरे जा रहा हो.

श्रीरामजयम का जाप कर रही हों.

अपनी मनपसंद फिल्म का टिकट ब्लैक में खरीद रही हों.

बेहोश होती जा रही हों क्योंकि नौ पुलिसवालों ने आपको आपके पति के सामने नंगा कर दिया हो और बारी-बारी से आपका बलात्कार कर रहे हों.

प्रसव पीड़ा से चीख रही हों.

अपनी योनि पर आपने उत्तेजना पैदा करने वाला यन्त्र रख हो.

जब भीड़ भरी बस में आपकी नितंबों से किसी के शिश्न का स्पर्श हो रहा हो तो अपने नितंबों को भींच रही हों.

इस उपन्यास के आरम्भ में जो ‘मैं’ प्रकट हुआ वह मैं ही हूँ, चारु निवेदिता, लेखक. लेकिन वास्तव में कई और ‘मैं’ हैं जो इस उपन्यास के लिए ज़िम्मेदार हैं, सबसे पहले, सूर्य है, जो मुनियांदी के जीवन पर उपन्यास लिखना चाहता था और उसे अपनी बेटी जेनेसिस को समर्पित करना चाहता था; उसने नोट्स लेकर पन्ने दर पन्ने भर डाले, और अखबार की असंख्य कतरनें जमा कर चिपकाईं. फिर स्वयं मुनियांदी, जिसने बाद में सूर्या के नोट्स देखे, उसमें सभी तरह के ज़रूरी सुधार किये, उनका पुनर्लेखन किया. लेकिन यह सामग्री उपन्यास के रूप में व्यवस्थित नहीं की जा सकी. इस उलझन की वजह से यह अक्सर स्पष्ट नहीं हो पाता कि आखिर ‘मैं’ किसको संदर्भित कर रहा है- कभी वह मुनियांदी है, कभी सूर्या, कभी सब कुछ धुंधला-धुंधला सा.

इस उलझन को और बढाने के लिए एक तीसरा ‘मैं’ भी है: मिश्रा- वही मिश्रा, जो existentialism and fancy banyan’ की प्रत्येक ९९९ प्रतियों की पृष्ठ संख्या १४४ पर आत्महत्या कर लेता है. कुछ दिन पहले वह सचमुच आत्महत्या करने गया था, वह भी एक पुस्तक लिखने के बारे में सोच रहा था, और उसने उसके लिए सामग्री संकलन आरम्भ भी कर दिया था. इस उपन्यास के बहुत सारे अंश उसके हिंदी नोट्स से लिए भी गए हैं, इसलिए यह भी सोचा जा सकता है कि इस उपन्यास का हिंदी से अनुवाद किया गया है. हालाँकि मैं उसके ठीक-ठीक भाव को हिंदी से तमिल में नहीं ला पाया- जैसे, मई अवा बहन थी लंड माँ थी लंड माँ थी फुद्दी जैसी पंक्तियों का अनुवाद बहुत मुश्किल था. मेरी प्रिय पाठिकाओं मुझे इसके लिए क्षमा करें.

अनुवाद में मेरे गुरु थे कोट्टीकुप्पन. जब मैं प्राथमिक स्कूल में पढता था तो हम चार-पांच के झुण्ड में जाते थे, और कोट्टीकुप्पन हमारे साथ रक्षा करने के लिए आता था.हमारे गाँव से स्कूल का रास्ता बहुत लंबा था, जो शमशान घाट से होकर गुजरता था. हम शमशान घाट से बहुत डरते थे; वहां मुर्दे भूत बनकर घूमते थे. लेकिन कोट्टीकुप्पन बहादुर था. वह किसी से भी नहीं डरता था.

ऐसा मत सोचिये कि चूँकि मैं उसके बारे में इतनी घनिष्ठता से बातें कर रहा हूँ तो वह कोई लड़का था. सामी सर का अनुमान था कि उसकी उम्र करीब ३६ साल की रही होगी. सामी सर फौज से रिटायर होने के बाद हमारे गाँव में ही रहने लगे थे, और कोट्टीकुप्पन भी वहां बहुत समय पहले आया था. मेरी माँ कहा करती थीं कि देखने में वह भले नौवीं कक्षा का छात्र लगता हो लेकिन वह किसी गधे की तरह उम्रदार था.

डे कोट्टीकुप्पन तुम्हारी उम्र कितनी है.

एज का अर्थ होता है वयसु, पेज का अर्थ होता है पक्कम, केज का अर्थ होता है कुंडू, तेज का अर्थ होता है प्रकाश, मेज़ का अर्थ होता है टेबल, रोज का अर्थ होता है गुस्सा, वेज का अर्थ होता है आय.

तुम रहने वाले किस स्थान के हो.

प्लेस का अर्थ होता है एदम, स्पेस का भी अर्थ होता है एदम, फेस का अर्थ होता हो मोकम, रेस का अर्थ होता है ओत्तम, केस का अर्थ होता है केस.

वेल का अर्थ होता है केनारू, वाल का अर्थ होता है सुवारू, वुल का अर्थ होता है कम्बली, पुल का अर्थ होता है इज्हू, फुल का अर्थ होता है फुल्लू.

टॉक का अर्थ होता है पेचू, वाक का अर्थ होता है नदई, चॉक का अर्थ होता है चौकपीस, कॉक का अर्थ होता है कुंजू, लॉक का अर्थ होता है पुट्टू, रॉक का अर्थ होता है मलई.

वह तब तक इसी तरह बात करता जाता जब तक कि हम शमशान घाट को पार नहीं कर लेते थे. वह बात इस तरीके से करता था मानो हमारे अनपढ़ गाँव वालों को ज्ञान देने आया हो. उसे कोई भी काम दे दीजिए मना नहीं करता था, वह गायों और मुर्गियों को खाना खिलाता, बकरियों को चराता, गोबर के उपले सुखाता, लकड़ी काटता, रोते हुए बच्चों को अपने कंधे पर उठाकर उनको चांद दिखाता, पेड़ों से नारियल तोड़ लाता. लेकिन जब वह बोलता तो सिवाय रंडी नोंदी सोनडी पंडि कुण्डी संदी किन्दी केंदी के कुछ नहीं बोलता. वह इससे आगे कभी नहीं गया.

जब मैं यह लिख रहा हूँ तो मुझे यह सूझा कि कोट्टीकुप्पन शायद दुनिया का अंतिम महान अनुवादक था. उसने जो मुझे सिखाया उसी के आधार पर मैं मिश्रा की हिंदी, मुनियांदी की खिचड़ी अंग्रेजी का अनुवाद कर पाया और उनको सूर्या के तमिल भाषा में लिए गए नोट्स से जोड़ पाया. उन नोट्स का अनुवाद करने में मैंने महारत हासिल कर ली; यहाँ तक कि मैंने उनमें कुछ जोड़ा भी. मैंने उन सारे ‘मैं’ को जमाकर उनमें अपना ‘मैं’ भी जोड़ दिया. मेरी प्रिय पाठिकाओं, आप चाहें तो उनमें अपना भी जोड़ सकती हैं. या…

आगे जो कुछ दिया गया है वह ९९९ पृष्ठों में लिखे जाने वाले ऐतिहासिक उपन्यास को लिखने के लिए लिए गए नोट्स हैं जिसे अभी लिखा जाना बाकी है:

वर्तमान में कासारमेनिया के निवासी कासारमेनिया के बुकारेक और नाजोर्नो के इलाके में कार्मेनियाई लोगों का कत्लेआम कर रहे हैं. कार्मेनियाई आबादी कासारमेनियाई लोगों का कत्लेआम करके इसका जवाब दे रही है. यह लड़ाई, जिसकी शुरुआत धार्मिक मतभेदों के कारण हुई थी, दो हज़ार सात सौ सालों से चल रही है. कार्मेनियाई लोगों की कुल आबादी इस समय सैंतीस लाख है, जिनमें से अधिकतर कौकासस के उत्तरी इलाकों में अल्संख्यक आबादी का हिस्सा हैं. इनमें से करीब १८ लाख ग्रीस, सीरिया, फ़्रांस और अमेरिका जैसे देशों में विस्थापित हो गए. ईसापूर्व ९०० में यह क्षेत्र एक बहुत सुसंगठित राज्य था. हालांकि, बाद में कार्मेनिया पर नियंत्रण के लिए रोमन और पार्थियनों में संघर्ष शुरु हो गया और एक भयानक नरसंहार हुआ. ३३३ ईस्वी में पार्थियाई साम्राज्य का अंत हो गया और स्सनिद साम्राज्य का प्रभुत्व बढ़ने लगा. कार्मेनियाई लोग बहुत पहले ही ईसाई धर्म को कुबूल कर चुके थे, ईसा मसीह के ज़माने में ही. ७०२ ईस्वी में अरब ने कौकासस के इलाके में घुसपैठ क्या और एक लंबी लड़ाई और खून-खराबे के दौर की शुरुआत की. १८०० ईस्वी में रूस के जार ने कार्मेनिया को जीत लिया. १८१८ में जार और इरान के बीच एक लंबे संघर्ष की शुरुआत हुई, कार्मेनिया का पूर्वी हिस्सा तो रूस के ही साथ रहा लेकिन उसका बड़ा हिस्सा तुर्की और इरान के कब्ज़े में चला गया. १९१७ में तुर्की के हिस्से वाले आर्मेनिया का वजूद पृथ्वी से खत्म हो गया. वहां २७ लाख कार्मेनियाई रहते थे जिनमें से १८ लाख लोगों को काट डाला गया. जो नौ लाख लोग बचे वे मेसोपोटामिया भाग गए जहाँ पांच लाख चालीस हज़ार और कार्मेनियाई मार डाले गए; जो बचे उनमें से १.८ लाख रूस भाग गए और १.८ लाख यूरोप भाग गए. फिर अंदरूनी संघर्ष आरम्भ हुआ कासर्मेनियाईओं ने करीब ५४ लाख कार्मेनियाईओं को मार डाला. प्रतिहिंसा में अनेक कासर्मेनियाई मारे गए, इस तरह एक लंबे जातीय संघर्ष की शुरुआत हुई, जिसमें दोनों तरफ के बहुत सारे लोग मारे गए. इंसानी शरीरों टुकड़े-टुकड़े काट डाला गया, जीभ निकाल ली गई, बांह काट डाली गई, अंतडियां बाहर निकाल ली गईं, स्तन काट डाले गए, योनियों को लोहे की लाल-गर्म छडों से छेदा गया. असंख्य लाशों को जला दिया गया. अधजली लाशों के ढेर लगे थे. तब पोते ने कहा था: जब एक बड़ा वृक्ष गिरता है तो धरती कांपती ही है. शब्दों के पंख लग गए और वे उड़ चले: पेड़ पृथ्वी हिलना गिरना पेड़ गिरना हिलना पृथ्वी पेड़ हिलना गिरना हिलना पृथ्वी गिरना हिलना. धार्मिक नेताओं औरतों को चेतावनी दी कि वे सिल्क के कपड़े और जूते-चप्पल न पहनें, इसलिए क्योंकि इन चीज़ों के निर्माण में आवश्यक रूप से जानवरों पर ज़ुल्म किया जाता है, जो कि ज़ाहिर है, पाप है.

जिनमें से ३६ नौजवानों की लाशें मिलीं, जो या तो गोलियों से छलनी थे या अधजले. पुलिस का कहना था कि हत्या करने वाली टुकड़ी ने यह किया था- वहां से ४५ किलोमीटर दूर कारों के जलते टायरों के बीच से २७ शरीर निकाले गए. गाँववालों का कहना था कि ये हत्याएं कर्फ्यू के दौरान हुई थीं. मैदानों में १८ बुरी तरह से जले शरीर मिले. उसकी स्विट्ज़रलैंड यात्रा के दौरान हवाई अड्डे पर प्रेस वार्ता के दौरान विदेश मंत्री ने हालाँकि यह घोषणा की कि नौजवानों की हत्या करनेवाली टुकड़ी से सेना का किसी तरह का कोई संबंध नहीं है. उसने यह भी वादा किया कि कि जब वह २७ दिनों बाद देश लौटेगा तब वह सेना को आदेश देगा कि इन अजीबो-गरीब हत्याओं को अंजाम देने वालों के खिलाफ कार्रवाई करे. मैंने गटर के पास टूटे हुए शीशे उठाती लड़की से बात की. वह चेन्नई की रहनेवाली थी. वह धाराप्रवाह हिंदी बोलती थी. उसे चेन्नई में कोई रोज़गार नहीं मिला. वह अब अपने चाचा के साथ पटपडगंज में रह रही थी. उसे शीशे के टूटे टुकड़ों से १८ पैसे प्रतिकिलो की कमाई होती थी और टिन के टुकड़ों से ९० पैसे प्रति किलो. (पाठिकाओं यह ध्यान रखिये कि मिश्र यह सब ९० के दशक में लिख रहा था). वे पहाड़ गंजे सिर की तरह लगते थे. अंजुम का कहना है कि कुल अठारह हज़ार बंधुआ मजदूर हैं. उनकी दैनिक मजदूरी केवल १.८० रुपए है. जो मालिकान कहते हैं वही होता है. उन बन्धुआ मजदूरों में से जो कम उम्र के थे उनकी पुलिस ने गुरिल्ला विद्रोहियों के रूप में शिनाख्त की और उनमें से करीब २७०० लोगों को गोली मार दी गई. स्वामी लोग धोती पहनकर इन पहाड़ों पर घूमते रहते हैं, वे इनको शिव का पर्वत मानते हैं. मैं करीमनगर जिले में अंजुम के साथ आया था. अगर ९० बीडियों का एक बण्डल तैयार कर दिया जाए तो उसकी मजदूरी होती है केवल ९० पैसे. अरे बाप रे! पटवारी गाँव वालों से अनुपयोगी ज़मीन ले लेते हैं. जब गाँव वाले विद्रोह करते हैं तो पुलिस को बुला लिया जाता है, झूठे मुक़दमे कर दिए जाते हैं और गाँव की औरतों का बलात्कार किया जाता है. ज़ाहिर है, अगर मैं इसी तरह लिखता रहा तो आप कहेंगे कि यह तो अखबार की खबर है. लेकिन अगर कोई अमेरिकन ऐसा लिखे तो आप उसे नई पत्रकारिता का उदहारण बताकर उसका बढ़िया ठहराते हैं. गोलियों की नौ आवाजें सुनाई दीं. पुलिस ने बताया कि जब उसने एक पुलिसवाले की रायफल छीनकर उसे मारने की कोशिश की तो दूसरे पुलिसवाले ने उसे गोली मार दी. लेकिन सच्चाई यह है कि उसे घर से निकालकर आस-पड़ोस वालों के सामने सड़क पर गोली मारी गई, दिनदहाड़े. अगर मैं यह दावा करूँ कि यह सच है तो वे मुझे नक्सलवादी कहेंगे और मुझे खत्म कर देंगे. लेकिन जब हुज़राबाद में एक ज़मींदार को गोली मारी गई तो २७० लोगों को गिरफ्तार किया गया, और जिसमें से ६३ को आरोपी ठहराया गया.

कबड्डी के उस दृश्य के बारे में क्या कहना है जो अथा उन कोयिलिये फिल्म में रवि रगुल और विनोदिनी ने खेला है? जब मैंने उसे देखा तो मैं उस खेल में शामिल होना चाहता था! यह इसका बहुत बढ़िया उदाहरण है कि किसी फिल्म के दृश्य को किस तरह का होना चाहिए, उसे ऐसा होना चाहिए कि हम खुद को उसमें शामिल महसूस करें. अम्मू कलाश्री की पालतू है, जिसने एन पोत्त्क्कू सोंधाकारम(आह! क्या फिल्म है), पोंनुकीथा मनु, पोंनुकिथा पुरुषम और थान एन्नाकू मत्तुम थान जैसी फिल्मों में अभिनय किया है. कलाश्री का अम्मू के बारे में यह कहना है:

मैं सूअरों से नफरत करती हूँ. मेरी सहेली प्रियाश्री अच्छी नस्ल वाले सूअरों को पालती है, और इसीलिए मैं उसके घर कभी नहीं जाती हूँ. हाल में ही मेरी माँ मेरे लिए सूअर का एक बच्चा लेकर आयीं और मुझसे बोलीं, ‘कला इसे रख लो.’ तब से वह मेरे घर की पालतू हो गई. जब वह बहुत छोटी थी तो वह कुछ भी खाना नहीं खाती थी, वह केवल पेय पदार्थ ही मांगती थी. तो उसको मैं गोद में लेकर चलती और उसे बोतल से दूध पिलाती थी, उसे अच्छी तरह दूध पिलाना ज़रूरी होता. मुझे सबसे अच्छा उसका चेहरा लगता था. वैसे तो उसका पूरा शरीर काला था लेकिन उसका मुँह गुलाबी चेरी की तरह चमकता. जब अम्मू का मूड खराब होता तभी वह गाज़र और बंदगोभी खाती. जब आप दूसरे जानवरों को उठाते हैं तो आपको उनके पूरे शरीर को सहारा देना होता है. लेकिन अम्मू आपको अपने कान से ही उठाने देता. अम्मू बहुत खास थी. वह अक्सर मेरी बाहों में कूदकर आ जाती. जब मैं खाना खाती तो वह कुर्सी के पीछे खड़ी होकर सूंघती रहती. हर शुक्रवार को मैं उसे गीले कपड़े से धोती. लेकिन मैं आपको यह बताना तो भूल ही गई: मेरे बंगले के सामने एक झोपड़पट्टी थी, जो मेरी समस्या का कारण थी. क्योंकि जो लोग उस झोपड़पट्टी में रहते उनको साफ़-सफाई की कोई समझ नहीं थी, वे सड़क पर पेशाब और पाखाना कर देते. यह सुनिए, नहीं… एक दिन अम्मू बिना मेरी जानकारी के बाहर निकल गई और उसने थोड़ा सा पाखाना खा लिया. मैंने गैरजिम्मेदार चौकीदार को उसी दिन हटा दिया. मैंने नींद की गोलियाँ खाकर आत्महत्या की भी कोशिश की, मैं बच गई, क्योंकि वे गोलियाँ विटामिन की गोलियाँ निकलीं. अगर वे नहीं हुई होती तो आज आप अपनी प्रिय नायिका कलाश्री से बात नहीं कर पाते.

यह जवाब है नीलाश्री, कलाश्री की सह-अभिनेत्री का, जो उसने अपने इंटरव्यू में कही:

कलाश्री ने अम्मू के खाने के बारे में जो कुछ भी कहा वह पूरी तरह से मनगढंत है. मैं इस बात को जानती हूँ कि अम्मू का मनपसंद खाना पाखाना ही है. इसीलिए कलाश्री के घर में फ्लश वाला पाखाना नहीं है. इसका कारण अम्मू है जिसके कारण उसका हाथ से साफ करने वाला पाखाना हमारे पाश्चात्य पाखाने से साफ़-सुथरा होता है. मुझे लगता है कि उसने अपनी बातचीत में बिना इसे को समझे इस बात को स्वीकार भी कर लिया है. ज़रा पढ़िए उसका क्या कहना है. ‘जब मैं खाना खाती रहती तो वह कुर्सी के पीछे खड़ी होकर सूंघती रहती थी.’

जब यह पूछा गया कि जब कलाश्री ने यह कहा कि पीछे से सूंघती रहती थी तो इसका क्या अर्थ था तो नीलाश्री की आँखें क्रोध से जलने लगीं. यह नीलाश्री का कलाश्री को जवाब था: वह मेरी सफलता से जलती है, और इसीलिए मेरे और मेरी अम्मू के खिलाफ ज़हर उगलती रहती है. निरीहों(जानवरों) के प्रति इस तरह की बातें करके लोगों का क्या भला होता है? उसने कहा, और उसकी आँखों से निकलने वाले आंसू असली थे, वे ग्लिसरीन की मदद से नहीं निकाले गए थे.

अनुचिंतन

एक गलती हो गई है, जेनेसिस. उपन्यासों को एक साथ रखने के जोश के कारण कुछ अध्याय इधर से उधर हो गए हैं. अब जब मैं उसके बारे में सोचता हूँ तो लगता है कि मेरा शायद कुछ और मकसद रहा हो. शायद मुनियांदी के प्रति मेरी घृणा और मिश्रा के प्रति मेरा प्रेम ही इसके लिए उत्तरदायी है; शायद मैंने अवचेतन में मिश्रा को आगे कर दिया और मुनियांदी को पीछे कर दिया. जिसे बाद में होना चाहिए था वह पहले आ गया और जिसे शुरु में होना चाहिए था वह भविष्य में चला गया. मैं समय की इस उधेड़बुन से कैसे निकलूं? कोस्टारिका के मारिया फर्नांडेज़ दे तिनोको का कहना है कि अतीत को मिटाया जा रहा है; लिखित शब्दों को बार-बार घिसा जा रहा है और वे निरर्थकता में बदल गए हैं. जैसे सोख्ता कागज़ से स्याही मिटाई जाती है, उसी तरह मेरी स्मृति के पन्नों से अतीत गायब होता जा रहा है. मैं शून्य में लौट गया हूँ जिसे कुछ भी याद नहीं है. अतीत ने मुझे परे कर दिया है और कहीं छिप गया है.

तब भी, मुझे लगता है कि एक समय ऐसा आएगा कि मैं अपने अतीत को पकड़ने में सफल रहूँगा. वह क्षण किसी भी समय आ सकता है जेनी- हो सकता है जब तुम यह वाक्य पढ़ रही हो. और उस समय केवल तुम रहोगी और यह पाठ रहेगा; मैं, जिसने इसे शून्य समय में रचा था, वहां नहीं रहेंगे. मृत्यु की खामोशी तब तक मुझे अपने में विलीन कर चुकी होगी. मैं अतीत के आधारहीन घड़े में प्रवेश कर चुका होऊंगा. शब्द मेरे नहीं रहेंगे, वे केवल इस पाठ के रहेंगे. मेरा अपना ‘मैं’ मिट चुका होगा और इस पाठ का ‘मैं’ ही मेरे अस्तित्व का बाकी बचा होगा. उस क्षण ऐसा लगेगा जैसे पाठ वर्तमान में अवस्थित हों- लेकिन ऐसा केवल लगेगा. अतीत का अवशेष-

नहीं, यह आरती के लिए सही नहीं है.

जेनी, जाओ और आरती के पेट के निशान को छुओ. जब वे वहां खेल रहे हों तो मैं तुम्हारी उंगलियों की पोरों को चूमना चाहता हूँ, समय की जड़ों को सहलाते हुए.

क्या आपको लगता है कि जिन लैटिन अमेरिकी उपन्यासों के नाम इस उपन्यास में आये हैं उनको पढ़ना आवश्यक है?
हाँ / नहीं

क्या आपको ऐसा लगता है कि यह एक महत्वपूर्ण उपन्यास साबित होगा?
हाँ / नहीं

(पुनश्च: आप इन प्रश्नों का जवाब देने से तब तक रुक सकते हैं जब तक कि आप इस उपन्यास को पढ़ना समाप्त कर दें)

क्या लेखक को सजा दी जानी चाहिए?
हाँ / नहीं

अगर हाँ, उसे सजा दी जानी चाहिए?
देश से निकाल दिया जाना चाहिए
उसके हाथ काट दिए जाने चाहिए
उपन्यास को प्रतिबंधित कर दिया जान चाहिए

क्या आपको लगता है कि उपन्यास मौलिक है?
हाँ / नहीं

अगर नहीं, तो निम्नलिखित में से किन उपन्यासकारों की नक़ल की गई है?
कोसिंकी
परेक
डोनाल्ड बर्थेल्मे
रोनाल्ड सुकेनिक
इतालो काल्विनो

मुनियांदी का कहना है बिना मासोक और मार्कुईस दे सादे को पहले पढ़े इस उपन्यास को पढ़ने का कोई अर्थ नहीं है. आप सहमत हैं?
हाँ / नहीं

निम्नलिखित वाक्य किसने कहे हैं: “मैं हमेशा औरतों के बारे में सोचता रहता हूँ. लेकिन सेक्स निजी मामला है. मैं सेक्स के बारे में नहीं लिखता. सेक्स को गंदे शब्दों में लिखना पड़ सकता है. मुझे गंदे शब्द पसंद नहीं हैं.”
एजरा पाउंड
बोर्हेस
कर्ताजार

आप एक महीने में कितनी बार हस्तमैथुन करते हैं?
नौ बार
नौ से अधिक बार

आप हस्तमैथुन करते समय किसके बारे में कल्पना करते हैं?
फिल्मस्टार
नेता
ईश्वर
पशु

अगर जानवर, तो निम्नलिखित में से कौन?
अनजाना जंतु
सांप
गधा
ऊँट
बैल
कुत्ता
डॉल्फिन
मुर्गा
पुलिसवाला

आप हस्तमैथुन के लिए किस चीज़ का इस्तेमाल करते हैं?
उत्तेजक यन्त्र
तकिया
टेस्ट ट्यूब
केला
खीरा
बैगन
उंगली
कलम
लाठी

क्या आपको ताल वाद्य को सुनते हुए कभी चरमसुख प्राप्त हुआ है?
हाँ / नहीं

क्या इन सवालों और इस उपन्यास के बीच कोई संबंध है?
हाँ / नहीं

क्या आपको कभी गर्भपात हुआ है?
हाँ / नहीं

क्या आप गर्भपात का समर्थन करती हैं?
हाँ / नहीं

क्या आपको झूला झूलते हुए कभी चरम सुख प्राप्त हुआ है?
हाँ / नहीं

क्या आपको कभी झरने में नहाते हुए चरमसुख मिला है?
हाँ / नहीं

इस अनिश्चय के कारण कि मुनियांदी के हाथों उनका क्या हश्र होनेवाला है शब्दों ने विद्रोह कर दिया और मुनियांदी के बिस्तर पर फैले संतति के द्रव्य के लोभ में उसकी ओर बढ़े उसे चखने के बाद इसके नशे में आ गए और फिर वे नौ रंध्रों द्वारा मुनियांदी के शरीर में प्रवेश कर गए और फिर इसके बाद से शब्दों ने मुनियांदी को नियंत्रित कर लिया न कि मुनियांदी ने शब्दों को और भले बाहर से ऐसा लगता हो कि उसने ये टिप्पणियां लिखी हों वास्तविकता में शब्दों ने स्वयं इस उपन्यास को लिखा…. वे इस तथ्य से निकले कि चरित्रों ने लेखक को मारने की कोशिश की और इस आक्रमण के बाद जो टूटफूट हुई तो एक अकेला पात्र चीख-चीख कर विरोधस्वरूप यह कहता रहा कि लेखक की मृत्यु नहीं हुई है लेखक की मृत्यु नहीं हुई है जब अन्य पात्रों ने यह कहा कि वह इस बात को सिद्ध करे तो उसने जवाब में कहा कि वह वह किसी और नाम के पीछे छुपा है. लेकिन किसी भी अन्य पात्र ने उसका विश्वास नहीं किया और वे खुशी खुशी यह कहते जाते रहे कि इससे अब कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे बारे में मुनियांदी क्या लिखने की योजना बना रहा है लेकिन पह तो निश्चित तौर पर एक अच्छी बात है कि उपन्यास के पहले कुछ पन्नों में ही उसकी हत्या हो गई इसलिए अब हम अपना भविष्य वैसा लिख सकते हैं जैसा कि खुद लिखना चाहते हैं लेकिन वह अकेला पात्र जो इस बात को लेकर निश्चिन्त था कि मुनियांदी अभी भी जिंदा था उसको ढूंढता हुआ पहले ब्राजील गया फिर अर्जेंटीना गया फिर अफ्रीका महादेश की यात्रा पर गया जहाँ वह इफे के बीच रहा, हाथी का मांस खाया दैनंदिन का हिसाब रखता रहा जब तक कि आख़िरकार उसे इस बात का विश्वास नहीं हो गया कि मुनियांदी नैनो के चरित्र के पीछे छिपा था अगर मुझे रचने वाला पात्र मर गया है फिर तो मैं भी मर गया अपने अस्तित्व को लेकर मेरे अंदर एक सवाल है कि क्या हम अपने अस्तित्व का निर्माण कर सकते हैं क्या वैसा करने का आवश्यक कौशल मेरे अंदर है हम लोग अभिशप्त हैं इस विश्व में रहने के लिए इन पन्नों में रहने के लिए ९९९ पृष्ठों के इस शाब्दिक संसार में रहने के लिए हम में से कुछ हो सकता है कि ९९९ पृष्ठ न देख सकें इस विश्व के ९९९ पृष्ठों के खत्म होने से पहले मर जाएँ फिर क्या इस संसार का अंत हमारे जीवन का अंत है नहीं ऐसा नहीं हो सकता नहीं नहीं यह दूसरी पुस्तक में चलता रहता है नहीं यह स्थगित रहता है यह दूसरे संसार में चलता रहता है.

पिछले साल जलजश्री को एक तेलुगु फिल्म में अभिनय के लिए देश के राष्ट्रपति द्वारा सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला आतंकवादी दल के मुखिया को उसके अपने ही दल के साथियों ने मार दिया जलजश्री को आंध्र राज्य सरकार द्वारा भी पुरस्कार मिला उसे रविवार को गिरफ्तार करके राजधानी लाया गया पुरतचितिल्कम उस फिल्म का नाम है जिसमें उसने अभिनय किया था जिसे साल की सर्वश्रेष्ठ फिल्म चुना गया है राज्य द्वारा आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा सोमवार को की गई इस फिल्म को तमिल भाषा में भी डब किया गया और पुरतचितिल्कम आईपीएस नाम से ही रिलीज किया गया तमिलनाडु में यह फिल्म बहुत बड़ी हिट साबित हुई खोज करने वाले कार्यबल ने ३६ साल की उम्र के नेता उसकी पत्नी और उसके बच्चों को गिरफ्तार किया है विदेश सचिव की रपट में कहा गया है कि सेना प्रमुख का दावा है कि ३६ साल की उम्र के बावजूद वह अभी भी उनका सबसे बड़ा नायक है दूसरी तरफ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तमिल फिल्मों में उसे सबसे पहले काम्बार मैन्धन ने मौका दिया था आंदोलन का नेता राज्य के विरुद्ध कई प्रकार की हिंसा का हिस्सा रहा है और तमिलनाडु के लोगों के लिए वह जाना-माना नाम है काम्बार मैन्धन के परिचित को सुरक्षा कारणों से राजधानी लाया गया और उससे पूछताछ की गई इतिहास हमें बताता है कि कोई भी पूछताछ इस मामले में असफल रही कि उसने हिंसा और उसकी पत्नी अहिंसा राधिका राठी राधा रेवती रजनी रेखा रेणुका रागिनी राजेश्वरी राजकुमारी रजनला राज्यश्री रौ रौ रौ की सूची अंतहीन है वह पुल्लुकुल फिल्म के माध्यम से युवाओं से अपील करने के लिए सामने आया उसने यह अनुरोध अपने आप सामने रखा और जैसा कि हम सब यह जानते हैं तमिलनाडु में इसके ऊपर किसी ने ध्यान नहीं दिया विदेश सचिव का कहना है कि इसे वीडियो पर रेकॉर्ड किया गया उसके बाद सेना और पुलिस दोनों की टुकड़ी गई पुरतचितिल्कम आईपीएस के बाद वह आंदोलन के सबसे गुप्त स्थलों की सबसे लोकप्रिय खोजी दल हो गई श्रीदेवी और जयाप्रदा गुज़रे ज़माने की सुपरस्टार आंदोलन का नेता इस बात को लेकर सहमत वह अपनी टुकड़ी को उस मुख्य स्थल तक ले जायेगा जो आन्दोलन और उसकी टुकड़ी दोनों का केंद्र था वे जाने-माने चरित्र अभिनेता थे जिन्होंने पोलितब्यूरो के सदस्यों को सूचित किया कि वे महत्वपूर्ण फाइलों और सूचनाओं को हटा लें जब जयसुधा श्रीदेवी और जयप्रदा हिंदी फ़िल्मी दुनिया अधिक ग्लैमर भरे संसार में चली गईं तो उन्होंने जांच दल को राधा भानुप्रिया तथा अन्य नेताओं को सौंप दिया जिन्होंने अप्रत्याशित रूप से चरित्र भूमिकाओं को स्वीकार नहीं किया जयसुधा ने अचानक बन्दूक निकाल ली आज वहां ऐसे हालात थे और इन स्त्रियों को गोली मार दी गई और अनेक नेताओं को सेना तलाश रही है चाहे वह गलैमर सेक्स हो या नायकीय प्रदर्शन और उसके बाद उनको गोली मार दी गई जिसके बाद इमर्जेंसी जो भी भूमिका रही हो ज़बरदस्त सुरक्षा के बीच उन बड़े नेताओं के शरीर जलजश्री सफलता में तैर रही है का अंतिम संस्कार किया गया विदेश सचिव ने बताया कि आंदोलन का नेता जलजश्री को पुरस्कार लेना हत्याकांड के लिए बड़े पैमाने पर जांच के आदेश दिए जाने चाहिए आई.जी. पुलिस, और वाम.

शब्द दूसरे शब्दों की सहायता से स्वयं को लिख रहा है.

वह स्वयं अपनी छाया के साथ सम्भोग कर रहा है. यहाँ सूँघो मेरे शब्द को. क्या आप इसमें मेरे खून को सूंघ सकते हैं? क्या आप इसे चख सकते हैं?

क्या आप अपने सारे अनुभवों को सामने रख सकते हैं, बिना किसी काट-छांट के?

क्या आप मुझे अपनी कविता का उपहार देंगे? क्या आप उसे एक छोटे से पैकेट में रख सकते हैं, आणविक भट्टी की तरह?

वह आपके जीवन को दर्ज करना चाहती है. केवल उसके कुछ अनुच्छेदों को.

मैं कांपने लगा, और मैंने अपनी कंपकंपाहट को तुम्हारे चुम्बन में बदल लिया.

तुम भी कांपी, और तुमने कहा तुम्हारी कंपकंपाहट तुम्हारी कविताएँ थीं.

अनेक मजदूर ड्रेको के नौवीं शताब्दी के उस क़ानून के प्रति विद्रोह करते हुए मारे गए कि अंगूर चुराने की सजा मौत है.

शब्द अर्थहीनता में तैर रहे हैं, जैसे खाली घड़ा पानी में तैरता है.

मैं तुम्हारे स्पर्श के लिए तड़प रहा हूँ.

वह सैनिक जिसे निर्जन द्वीप के भग्न किले की रखवाली दी गई है, धीरे-धीरे अपना मानसिक संतुलन खो रहा है.

लड़कियां स्कूल से भागकर फूल चुनती हैं.

शब्द मर जाता है, जैसे ही उसे लिखा जाता है.

कवि मर जाता है, जैसे ही जनसाधारण द्वारा उसकी उपेक्षा की जाती है.

नेहरु इंका राजधानी की यात्रा कर रहे हैं, माच्चू पिच्चू की, एंडीज़ पहाड़ियों के ऊपर कुस्को, पेरू में.

रिल्के पूछता है, मेरी आत्मा चुप्पियों के वस्त्र पहने अकेली तुम्हारे सामने खड़ी है, क्या तुम उसे देख नहीं सकते?

मैं लिख रहा हूँ. मैं लिखने के अलावा और क्या कर सकता हूँ? मैं मर रहा हूँ. मैं मरने के अलावा और क्या कर सकता हूँ? आदि आदि.

बुराई अच्छाई के अंदर छुपी है. अच्छाई बुराई के भीतर छिपी है.

लिखना जीवन के बारे में नहीं होता है, लिखना केवल लिखने के बारे में होता है.

न तो प्रकृति का न ही कला का अपने अतिरिक्त कोई और अर्थ होता है. वे बस होते हैं. रॉब ग्रिये की जगह यह मैं क्यों नहीं लिख सका?

हम अब संसार को एक पापमोचक की आँख से नहीं देखते, या एक डॉक्टर की आँख से, या स्वयं ईश्वर की आँख से, बल्कि शहर में चलते उस आदमी की आँख से देखते हैं जिसके सामने दृश्य के अलावा कुछ भी क्षितिज नहीं होता, अपनी आँखों के सिवा कोई शक्ति नहीं होती. मैं रोलां बार्थ की कोई समझ कैसे विकसित कर सकता हूँ?

वह माउन्ट रोड पर अकेला बैठा है. रविवार की शाम. किसी इंसानी साथ की कमी है. इस उहापोह में है कि अब कहाँ जाए. कमरे में जाकर पढ़ाई करे? यह तय कर पाना मुश्किल है. वह धुएं के छल्ले बनाते हुए उसे देख रहा है.

चीन की महान दीवार के नीचे कितने दास दबे हुए हैं?

एक आदमी और एक औरत साथ-साथ अपने खून से कविता लिख रहे हैं.

शब्दों से लिखना असंभव हो रहा है. वे फिसल जाते हैं जबकि मैं उन्हें लिख देता हूँ. अगर मैं उनको पकड़ने में सफल हो जाता हूँ तो वे पिघल जाते हैं.

आरोग्यशाला की खिड़की से हाथ बाहर निकलते हैं.

नदी के किनारे नीम के पेड़ के नीचे एक भिखारी सोता है.

कान के लबों से एक छोटा पंख छू जाता है.

एक जादूगर सूई की छिद्र से हाथी को निकाल देता है.

शरद की सुबह कनॉट प्लेस, रिंग रोड पर सन्नाटा पसरा है.

एक पाठक पूछता है: क्यों सभी अभिनेत्रियों के पास पालतू कुत्ते होते हैं? संपादक जवाब देता है: क्योंकि अभिनेत्रियों के पतियों की जीभ उतनी लंबी नहीं होती.

लेस्बोस के द्वीप पर साफो लेस्बियन के बारे में पहली बार उल्लेख करते हुए लिख रही है.

एक लोकप्रिय पत्रिका का संपादक एक लेखक द्वारा भेजी गई कहानी से गाँडू शब्द काट देता है.

मेरे और तुम्हारे बीच की दूरी को मिटा दो, सिक्सू कहती है. एक मोटी अभिनेत्री, जिसका पेट कद्दू की तरह है, जिसके हाथ लौकी की तरह हैं, और जांघें एक कटे हुए सूअर के दो हिस्सों की तरह, टेलीविजन पर साबुन के उत्पादों का प्रचार कर रही है.

जेल की दीवारों पर शब्द, आरोग्यशाला की दीवारों पर शब्द, सार्वजनिक शौचालय की दीवारों पर, स्कूल की मेज़ पर शब्द, कंडोम के डिब्बों पर शब्द, पाठ्यपुस्तकों में शब्द, न्यायधीश के फैसले में शब्द, विश्वविद्यालय के गलियारों में शब्द, नगर बसों में शब्द, उस पुलिसवाले के मुँह में जो ज़र्दा पान के नशे में मस्त हो. प्रधानमन्त्री की डायरी में, शब्द इसी तरह चारों तरफ बिखरे हैं; एक छोटी बच्ची उनको उठा लेती है, अब वह उनको एक लुहार की दुकान में बेचने जा रही है; जो इस समय उसके सपनों में चल रहा है? रोलां बार्थ महोदय कृपया वहां से दूर रहें.

इस किताब का जो सबसे बेतुका पहलू है कि इसमें सामान्य चोरों की तुलना क्रांतिकारियों के साथ की गई है. लगता है कि मुनियांदी अच्छे उद्देश्य के लिए की गई क्रांति और दैनंदिन की गरीबी के कारण होने वाले अपराध में अंतर नहीं कर पाया है. ऐसा लगता है कि उसने कहीं ऐसा पढ़ा हो कि संथाल आदिवासियों द्वारा सूदखोरों के विरुद्ध की गई क्रांति बाद में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में बदल गयी, मुनियांदी ने अपने उपन्यास के चरम उत्कर्ष को इन्हीं घटनाओं के इर्द-गिर्द बुना है, और उसे ऐसा लगता है कि इस किताब को क्रांतिकारी होने की विश्वसनीयता मिल गई है. लेकिन मुनियांदी के ‘क्रांतिकारी’ केवल केवल बैंक लूटने तक ही नहीं रुकते. वे कपड़ों की दुकानों को भी लूटते हैं और पुलिसवालों की हत्याएं भी करते हैं.

क्रांतिकारी नायक मायता, तो मुझे एक मामूली चोर लगता है. मुझे यह समझ में नहीं आया कि किस तरह उसका विद्रोह किसी विचारधारा से प्रेरित नहीं है.

एक बार मैंने मुनियांदी को श्रीरंगम विलास में व्हिस्की का एक अद्धा पिलाया था और साथ में चिकन बिरयानी भी खिलाई थी, हमने साहित्यिक परिदृश्य को लेकर सामान्य चर्चा की थी. नशे की भावनात्मक अवस्था में वह यह बात कह गया कि उसने इतिहास की पुरानी घटनाओं के आधार पर गैर-कथात्मक वृत्तान्त को ढालने की शैली उसने गुलेरमो काब्रेरा इन्फानते के ट्रेस त्रिस्ट्स टाइगर्स से चुराया है.

मुनियांदी की कहानी का नायक मायता है. (यह किस तरह का नाम है? मुनियांदी ने इससे कुछ बेहतर लिखा होता अगर वह तमिल की बजाय इसे इसी अनजान विदेशी भाषा में लिखा होता.) मायता और उसके कपड़े की दुकान लूटने वाले दोस्तों को चतुराईपूर्वक आधुनिक संथाल क्रांतिकारियों की तरह चित्रित किया गया है. अगर हम इस तुलना को स्वीकार कर लें तो हमें यह भी स्वीकार कर लेना चाहिए कि वे सभी सरकारी कर्मचारी जो अन्ना नगर से सचिवालय २७सी में यात्रा करते हैं और छोटी-छोटी पत्रिकाओं के लिए खाली समय में कहानियां लिखते हैं जो बस में अपने साथी यात्रियों की जेब काटना शुरु कर देते हैं, उनके कृत्य घिनौने नहीं हैं बल्कि एक प्रकार का विद्रोह है अमेरिका के साम्राज्यवाद और आईएमएफ के विरुद्ध.

मुनियांदी डींग हांकता है कि उसका उपन्यास सच्ची घटनाओं पर आधारित है. इसके पीछे की सच्चाई को जानने के लिए मैंने उन घटनाओं के स्थल का दौरा किया, नागेर्कवाईल के अपने एक दोस्त के साथ. हम पानी के घड़े ढोती कुछ स्त्रियों से मिले, और उनसे पूछताछ की. तो उनसे यह जानने को मिला. कुछ बेरोजगार नवयुवकों ने माओ और उसकी क्रांति के बारे में बात करना शुरु किया, और आखिरकार यह तय किया कि केवल १४० रुपए के लिए १८’ / ९’ के कपड़े की दुकान को लूट लिया जाए. यही वह मूर्खतापूर्ण घटना है मुनियांदी जिसकी तुलना संथाल विद्रोह से कर रहा है. गरीब दुकानदार पाल्वन्नाम पिल्लई छह बेटियों और तीन बेटों का गरीब पिता है.

अपनी जांच-पड़ताल खत्म करने के बाद जब मैं शराब की दुकान की ओर जा रहा था, तो वह पुलिस इंस्पेक्टर जो मेरी यात्रा का साथी बनकर आया था, एक विशेष स्थान पर , अपना रुमाल निकाला अपनी आँखों को पोछा और अपने नाक साफ़ करने लगा. मैं कह सकता हूँ कि वे कोई घडियाली आंसू नहीं थे, वेश्याओं और कोढियों के लिए सहानुभूति का उस तरह भावनात्मक बहाव नहीं था जिससे कि मुनियांदी ने इस पुस्तक को भर रखा है. यह साफ़ था कि मेरे उस दोस्त का दुख वास्तविक था, इसलिए मैंने उससे इसका कारण पूछा. असल में यही वह स्थान था जहाँ उसका एक सहकर्मी जो चोरों की तलाश कर रहा था, एक पत्थर पर गिर गया, उसकी खोपड़ी का पिछला हिस्सा टूट गया, और वह मर गया. मैंने उस पत्थर को देखा. कितना विचित्र संसार है, मैंने सोचा; ऐसा लगता है जैसे यह कुछ-कुछ अल्बेयर कामू के ‘द स्ट्रेंजर’ की तरह है. मैंने सोचा कि काश मैं पत्थरों की फुसफुसाहट को सुन पाता: जिससे मुनियांदी के सारे झूठ जो मार्क्सवाद और संरचनावाद के खोल में छिपा कर रखे गए हैं, वे एक एक करके खुल जाते.

मुनियांदी के अनुसार यह कहानी कुछ इस तरह से है. जब बैंक लूटने का प्रयास असफल साबित हुआ तो मायता और उसके साथी भागने लगे. सादी वर्दी में पुलिसवाले और गाँववाले उनका पीछा करने लगे, उन पर पत्थर चलाने लगे. हालाँकि मायता के हाथ में एके-४५ था, उसने उनके ऊपर पीछे मुड़कर गोली नहीं चलाई, जिससे निर्दोष गाँववालों को किसी तरह की चोट न पहुँच जाए, इस तरह ‘क्रांतिकारियों’ के उस दस्ते को पत्थरों से तब तक मारा गया जब तक कि वे मर नहीं गए. इन झूठों के सहारे मुनियांदी ने अपने नायक को एक महान नायक की तरह दिखाया है, और एक झूठे क्रान्तिकारी के लिए अपने पाठकों को नाक सुरसुराने और आंसू बहाने के लिए मजबूर कर दिया है.

लेकिन यह वह कहानी है जो मुझे पता चली. जब वे बैंक के अंदर ही थे तो मायता के साथियों और बैंक के कैशियर के बीच लड़ाई छिड़ गई, और मायता ने अपनी बन्दूक का भी इस्तेमाल किया. यह बात इस तथ्य से सिद्ध हुई कि वह कैशियर अभी भी मेडिकल की छुट्टी पर है. दीवार में गोलियों के कई निशान भी हैं. खैर इस सारे शोरगुल में(आप यह उम्मीद करते हैं कि मैं इसे विद्रोह कहूँ?) किसी की जान नहीं गई; मुनियांदी इसे मानवतावाद के प्रमाण के तौर पर देखता है, लेकिन मुझे यह इससे अधिक कुछ नहीं लगता कि मायता और उसकी टुकड़ी ने बहुत शानदार ढंग से अपने लक्ष्य को गँवा दिया.

खैर जो भी हो, वास्तव में जो भी हुआ होगा उसके टुकड़े मैं जोड़ सकता हूँ. इसके बावजूद कि उनके पास बन्दूक थी गाँववालों ने उनका पीछा किया. उन्होंने उन चोरों पर पत्थर भी फेंके. मायता ने अपना एके-४५ कुछ उन बहादुर गाँववालों पर तान दिया जिन्होंने यह तय कर रखा था कि वे उन डकैतों को भागने नहीं देंगे, वे उनके नज़दीक पहुँचने वाले थे. जैसे ही उसकी ऊंगली ट्रिगर तक पहुँचती भीड़ की ओर से आया एक पत्थर आकर मायता की दायीं आँख से लगा. खून बह निकला, उसके बाद पीछे से आनेवाली पत्थरों की बौछार से वह मारा गया. उस दल के सरदार को मरता देख भीड़ जैसे पागल हो गई और उसने उनके रायफल को चलाने की कोशिश भी की, लेकिन जैसा कि हम सब जानते हैं कि उसने काम नहीं किया.

गाँववालों के अनुसार यह नागरक्विल वेलिक्कारुप्पन की देवी कृपा थी जिसने उस दल के बन्दूक को चलने से रोक दिया और इतिहास की धारा को बदलने से रोक दिया.

(उपन्यास अंश. अंग्रेजी से अनुवादः प्रभात रंजन.)

4 comments
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  1. अद्भुत शैली में लिखा काव्यात्मक उपन्यास ! ऊबड़-खाबड़ और घुमावदार भूमि सहज बहती जलधारा की तरह ! आभार प्रभात जी इस अद्वितीय उपन्यास के अंश को पढ़वाने के लिए ! निवेदिता जी को हार्दिक शुभकामनाएं !

  2. बस अभी-अभी गुज़रा हूँ… इस उपन्यास अंश से! सोचता हूँ अगर अनुवाद इतना रोचक और सुंदर है तो इसे मूल भाषा में पढ़ने में कितना मज़ा आएगा ? काश ! मैं तमिल पढ़ पाता… मगर यह ज़रूरी नहीं कि हर एक भाषा आनी चाहिए… क्योंकि अच्छी रचना तो दुनिया की तमाम भाषाओं में मौजूद है। फिलहाल… चारू निवेदिता और प्रभात रंजन दोनों को बहुत शुक्रिया और बधाई… !

  3. बहुत मार्मि‍क। भावनाओं की अतल गहराई में ले जाने वाली शैली… वाह, सचमुच अद्भुत। अनुवाद शानदार। उपलब्‍ध कराने के लि‍ए आभार…

  4. शानदार अनुवाद … मूल की तरह ही सुन्दर ..

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