आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

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देशज आधुनिकता का जन्म / The Birth of Indian Modernity

फीचर्स / Features

पुरूषोत्तम अग्रवाल की पुस्तक अकथ कहानी प्रेम की कबीर के कालखंड को देशज आधुनिकता के उदय होने के समय की तरह स्थापित करती है. इस पुस्तक पर विनोद शाही और राजेन्द्र पॉण्डेय की समीक्षाएँ और मीरां की कविता का एक नया पाठ करता हुआ माधव हाडा का लेख मिलकर इस खंड को पूरा करते हैं.

Purushottam Agrawal’s book Akath Kahani Prem Ki establishes Kabir’s period as the time of the birth of Indian modernity. This feature comprises readings of the book by Vinod Shahi and Rajendra Pandey, as well as a new reading of Mira’s poetry by Madhav Hada.



बिज्जी / Bijji

फीचर्स / Features

समकालीन भारतीय लेखकों में बिज्जी सबसे अनूठे हैं. अपना सारा जीवन जोधपुर के एक गाँव बोरूंदा में बिताने वाला यह डोकरा भारतीय आत्मा का लोक गायक है. यह अंक बिज्जी और उनके अभिन्न मित्र दिवंगत लोक कला मर्मज्ञ कोमल कोठारी के जीवन और कर्म को समर्पित है. क्रिस्टी मेरिल द्वारा अनूदित उनकी कहानी के प्रकाशन की अनुमति देने के लिये कथा के और हिन्दी कवि-कथाकार उदय प्रकाश द्वारा उन पर बनाई गई फिल्म को अपलोड करने की अनुमति के लिये हम निर्देशक और साहित्य अकादेमी के आभारी हैं.

Bijji is unique among contemporary Indian writers. He is the folk-singer of the Indian soul. This issue is dedicated to Bijji and to his dear friend, the folklorist and ethnomusicologist Komal Kothari, their life and work. We are thankful to Katha for permitting us to carry Christi Merrill’s translation of Bijji’s story, and to Uday Prakash and the Sahitya Akademi for permitting us to upload Uday’s film on Bijji.



असबाब में देवता: वार्षिकांक विशेष कविता / A God in Your Luggage: Anniversary Special Poetry

फीचर्स / Features

अशोक वाजपेयी और वीरेन डंगवाल से अधिक एक दूसरे से भिन्न दो कवि हिन्दी में नहीं हैं. एक मध्यकालीन फ्रेंच मठ/गाँव आविन्यों में रहते हुए लिखी गई अशोक वाजपेयी की कविताओं और कविता-जैसे-ही गद्य में अनुपस्थिति, ईश्वरहीनता, नश्वरता, जीवन में कविता की जगह और सब चीज़ों के पड़ोस के रूप में पृथ्वी जैसी उनके लेखन की कुछ स्थायी थीमें एक दूसरे देश-काल की छाया में पुनर्विन्यस्त हैं. वीरेन डंगवाल की कविता कटरी की रुकुमिनी और उसकी माता की खंडित गद्यकथा विट् और उम्मीद के उनके काव्यशास्त्र में एक कथात्मक, गद्यमय विषयांतर है जो इधर उनकी अन्य कविताओं में भी घटित हुआ है. दोनों कवि राहुल सोनी के अंग्रेज़ी अनुवाद में. आर्लीन ज़ीद और तेजी ग्रोवर के अंग्रेज़ी अनुवादों में कमलेश और शिरीष ढोबले की हिन्दी कविताएँ; इन्ग्रिड स्टोरहॉमेन की नार्वीज़ी कविताएँ तथा स्वयं अपनी काव्य-श्रृंखला कठपुतली की आँख तेजी के ही अंग्रेज़ी अनुवाद में; और अनिरुद्ध उमट की नयी हिन्दी कविताएँ हमारा परिचय ऐसी आवाज़ों से कराती हैं जो हाशिये और एकांत में रहती हुई अपनी भाषा में, और मानवीय अस्तित्व के हमारे अनुभव में कुछ बिल्कुल विलक्षण जोड़ती रहती हैं. खंड में लक्ष्मी आर्य की तीन अंग्रेज़ी और समर्थ वाशिष्ठ की तीन हिन्दी कविताएँ भी शामिल हैं.

There cannot be two more different poets in Hindi than Ashok Vajpeyi and Viren Dangwal. Ashok Vajpeyi’s poems and poem-like-pieces written while staying at a chartreuse in Avignon revisit some of his poetry’s permanent themes, i.e. absence, godlessness, mortality, poetry’s place in life and the earth as the neighborhood of all things – but under the shadow of a foreign time and space. Viren Dangwal’s poem Katri Ki Rukmini is an excursion into prose within his poetics of wit and hope, a tendency also seen in some of his other recent work. Kamlesh and Shirish Dhoble’s poems, in Arlene Zide and Teji Grover’s translation, Ingrid Storholmen’s Norwegian poems and Teji’s own poem-sequence Puppet’s Eye, in Teji’s translations, and some new poems by Aniruddh Umat introduce us to some voices that, while living in solitude, have added something extraordinary to both language and human experience. The feature also includes poems by Samartha Vashishtha and Lakshmi Arya.



विपथगामियों का जलसा: वार्षिकांक विशेष कथा / Caravan of Contrarians: Anniversary Special Fiction

शीर्ष कथा / Lead Feature

हुआन होज़े सेयर (1937-2005) को बमुश्किल ही ‘लातिन-अमेरिकी’ लेखक कहा जा सकता है. खुद अपने शब्दों में ‘लातिन-अमेरिकी-पन के घेटो’ – जादुई यथार्थवाद – से परे घटित होने वाले इस विपथगामी को अब बोर्खे़ज के बाद सबसे महत्वपूर्ण अर्जेंटीनी लेखक माना जाता है. 1985 में प्रकाशित उनके उपन्यास ग्लॉस के स्टीव डोल्फ द्वारा किये जा रहे और हिन्दी कथाकार मंज़ूर एहतेशाम के अविस्मरणीय उपन्यास दास्तान-ए-लापता के जेसन ग्रुनेबॉम और उलरिके स्टॉर्क द्वारा किये जा रहे अंग्रेज़ी अनुवादों के अंश; अप्रतिम मलयाली कथाकार पॉल ज़कारिया की अनुपमा राजू द्वारा अनूदित कहानी; और चार युवा कथाकारों कुरली मनिकावेल और शर्मिष्ठा मोहंती (अंग्रेजी) तथा शुभाशीष चक्रवर्ती और आशुतोष भारद्वाज (हिंदी) की कहानियाँ मिलकर इस खंड को विपथगामी कथा लेखन के एक जलसे में बदल देती हैं. खंड में दो युवतर कथाकारों – भूतनाथ और सौदा – की कहानियाँ भी शामिल हैं.

Juan Jose Saer (1937-2005) can hardly be called a Latin American writer. Having rejected what he called ‘the ghetto of Latin-American-ness’ (i.e. magic realism) he is now considered the most important Argentinian writer since Borges. In this section, we present an excerpt from Steve Dolph’s translation of his 1985 novel Glosa (courtesy Open Letter Books), along with an excerpt from Manzoor Ahtesham’s unforgettable novel Dastan-E-Lapata in Jason Grunebaum and Ulrike Stark’s translation, Anupama Raju’s translation of a story by the great Malayalam writer Paul Zachariah, and stories by Sharmistha Mohanty and Kuzhali Manickavel (English) and Shubhashish Chakraborty and Ashutosh Bhardwaj (Hindi) – a veritable caravan of contrarians! This section also includes stories by Bhootnath and Saudha Kasim.



जिन्हें स्मार्ट लोग छोड़ गए उनके किस्से: वार्षिकांक विशेष कथेतर / Lives and Texts without Smart People: Anniversary Special Non-Fiction

फीचर्स / Features

नोबडीज़ डिट्रॉइट में पुलित्ज़र पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी कवि फिलिप लवीन अपने छोटे शहर लौटते हैं अपने एक अध्यापक के सेवानिवृति समारोह में ‘सरप्राईज स्पीकर’ बन कर, एक ऐसे शहर जहाँ से ‘सारे स्मार्ट लोग चले गये’. भारतभूषण तिवारी के हिंदी अनुवाद में. अंग्रेज़ी उपन्यासकार अमिताव कुमार का गद्य भी अंशतः संस्मरणात्मक है और हमारा परिचय अनुनय चौबे की चित्रकला से कराता है जिसमें स्मार्ट लोगों द्वारा पीछे छोड़ दिये गये शहर और चरित्र अपनी हार्डकोर यथार्थमयता से सीधे हमारी आँखों और दृष्टि को बींध देते हैं. इन दोनों से बहुत भिन्न एक पाठ में कवि-दार्शनिक रुस्तम (सिंह) ‘सौभाग्य’ पर, और इस तरह ‘दुर्भाग्य’ पर, मनन करते हैं. यह काव्यमय और दार्शनिक के मेल से नहीं, उनकी एक दूसरे से प्रति बहुत बारीक घृणा से उपजता हुआ आत्म-प्रतिष्ठ लेखन है जिसे पढ़ने की खुद उसी के फरेब में आ जाने के अलावा कोई और विधि शायद नहीं है. भारत के दो अग्रणी चित्रकारों हकु शाह और अखिलेश के साथ हिन्दी लेखक-सम्पादक पीयूष के संवाद की दो अत्यंत मौलिक और महत्वपूर्ण पुस्तकों पर आशुतोष भारद्वाज की समझदार टिप्पणी इस खंड की अंतिम पेशकश है.

In Nobody’s Detroit, Pulitzer Prize winning poet Philip Levine returns to the city of his childhood – a city from which all the smart people have left – as a surprise speaker at his teacher’s retirement ceremony. (In Bharatbhooshan Tiwari’s Hindi translation.) Amitava Kumar’s memoir-ish piece introduces us to the art of Anunaya Chaubey in which a city and characters left behind by the smart people stare at us with a piercing, uncompromising verisimilitude. Very different from those two texts is Rustam’s poetic-philosophic reflection on ‘fortune’ and, therefore, on ‘misfortune’. This is an ‘self’-rooted text that comes not from the meeting of the poetic and philosophical but from their mutual disdain, and the only way to read it is perhaps to let yourself be completely beguiled by its delicate forgeries. The last piece in the feature is Ashutosh Bhardwaj’s commentary on Piyush Daiya’s two original and important books of conversations with leading Indian painters, Haku Shah and Akhilesh.