मेरी भाषा में तुम शामिल हो: ओम प्रकाश वाल्मीकि
कविता / Poetryपहाड़ पहाड़ खड़ा है स्थिर सिर उठाये जिसे देखता हूँ हर रोज आत्मीयता से बारिश में नहाया या फिर सर्द रातों की रिमझिम के बाद बर्फ से ढका पहाड़ सुकून देता है लेकिन जब पहाड़ थरथराता है मेरे भीतर भी जैसे बिखरने लगता है न खत्म होने वाली आड़ी-तिरछी ऊँची-नीची पगडंडियों का सिलसिला गहरी खाईयों […]