कहानी ढलान की उम्र लिख रही है : सिद्धार्थ
कविता / Poetry1. विदर्भ से तेलन्गाना तक एक एक बार समुद्र लिखा था दस मिनट तक फिर रेत भर थकान बस्तर, लोकतंत्र वगैरा इस बार असंख्य कपड़ों की दूकानों के बीच राह बनाती महानगर की नंगी सड़क कपास के बियाबान में बूँद भर बारिश की लिखत कौड़ियों से ज़िन्दगी बुनती अपने मटमैलेपन में अदृश्य पांच साल की […]