आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

कथेतर / Non-Fiction

Women and the Film World: Saadat Hasan Manto

कथेतर / Non-Fiction

Now that the Indian film industry has left its infancy, many people are talking about whether respectable women should be allowed to participate in it or not.  Many believe that they should be strongly encouraged to join in order to cleanse the film world of “impure” women, but there are also those who believe that […]



Why I Don’t Go to the Movies: Saadat Hasan Manto

कथेतर / Non-Fiction

For a long time I’ve wanted someone to ask me why I don’t go to the movies.  At home I’ll get asked over and over why I don’t eat okra, and my friends have long wanted to know why I don’t wear Western pants.  Then both at home and elsewhere people have asked me why […]



Manto’s Life in Bombay: Matt Reeck & Aftab Ahmed

कथेतर / Non-Fiction

In 1936 Manto arrived in Bombay; he was twenty-four years old.  Nazir Ludhianvi had called him there to work at the Clare Road offices of his weekly, The Painter, and Manto slept in the paper’s offices until he had enough money to rent a room in a squalid tenement nearby — a two-story building with […]



माँस की जमीन पर: तुषार धवल

कथेतर / Non-Fiction

कवि चित्रकार-अनुवादक-फिल्मकार दिलीप चित्रे) दिलीप चित्रे की कविताओं को पढ़ना जीवन के दुरूह बीहड़ से गुजरने जैसा है। जीवन के जिन ऊबड़ खाबड़ और दुर्गम रास्तों से कवि गुजरा है उसी से उसने अपना सत्य, अपना अस्तित्व तलाशा है। चित्रे की कविताओं का जगत उलझनों, गहरी पीड़ा, आक्रोश और मांसलता का कार्यव्यापार है जो मृत्यु  […]



निर्मल वर्मा की चिट्ठियों के वे दिन: ज्योत्स्ना मिलन

कथेतर / Non-Fiction

कितना अच्छा था कि निर्मलजी से परिचय और दोस्ती के वे दिन अभी चिट्ठियाँ लिखने के दिन थे. चिट्ठी यानी हाथ की लिखी, असलीवाली चिट्ठी, ई-मेल वाली बिना किसी पहचान की, वर्च्युअल चिट्ठी नहीं. हाथ की लिखी हर चिट्ठी की अपनी एक अलग पहचान होती है. उसी उसी ककहरे और बाराखड़ी से बनी होती है […]



अकथ कहानी प्रेम कीः पुरूषोत्तम अग्रवाल

कथेतर / Non-Fiction

कबीर के प्रसंग में जो बात सबसे पहले ध्यान खींचती है, वह है उन्हें कवि मानने में सर्वव्यापी संकोच। लिंडा हैस्स ने जरूर कबीर को प्राथमिक रूप से कवि मानते हुए विचार किया है; बाकी अध्येता कबीर की व्यंग्य-प्रतिभा की प्रखरता मानते हुए भी, कबीर को ‘वाणी का डिक्टेटर’ मानते हुए भी, उनके कवित्व को […]



मैं चुपके से कहता अपना प्यार: जॉन बर्ज़र

कथेतर / Non-Fiction

John Berger’s fascinating piece in memory of Nazim Hikmet — in which it is near- impossible to ascertain whether the ‘memories’ it describes are real or imaginary — in an equally fascinating Hindi translation by Bharatbhooshan Tiwari.

जॉन बर्ज़र का नाजिम हिकमत की स्मृति में सम्मोहक गद्य, जो यह तय कर सकना बहुत मुश्किल कर देता है कि वह स्मृति ‘वास्तविक’ है या ‘काल्पनिक’; भारतभूषण तिवारी के उतने ही सम्मोहक हिन्दी अनुवाद में.



जीवन महाकाव्य: राय आनंद कृष्ण और व्योमेश शुक्ल

कथेतर / Non-Fiction

Hindi poet Vyomesh Shukla’s dialogue on art critic Rai Krishna Das, with his son and well-known art historian Rai Anandkrishna, is also a dialogue about Kashi and its elite of the nineteenth century, the ‘Kashi Renaissance’ and its leading personality Bhartendu Harishchandra, and some of Hindi’s old ‘in-house’ controversies – the ‘myth of Premchand’s poverty’ and the mystery behind the first modern, canonical critic Ramchandra Shukla’s appointment in the Hindi Department of the Benares Hindu University.

कलावंत रायकृष्णदास के बारे में उनके पुत्र, जाने माने कलाइतिहासकार राय आनंदकृष्ण से हिन्दी कवि व्योमेश शुक्ल का संवाद जो काशी और उसके उन्नीसवीं सदी के ‘रईसों’, ‘काशी नवजागरण’ और उसके शीर्ष व्यक्तित्व भारतेंदु हरीशचन्द्र और हिन्दी के कुछ पुराने इन-हाउस विवादों – ‘प्रेमचंद की गरीबी का मिथक’ और पहले आधुनिक, कैननिकल आलोचक रामचन्द्र शुक्ल की बीएचयू में नियुक्ति – पर भी एक संवाद है.



A Poet Bursting into Color: Teji Grover

कथेतर / Non-Fiction

कैनवस और रंगों के साथ उनके एडवेंचर्स के बारे में कवि तेजी ग्रोवर का गद्य

Teji Grover on when writers turn to painting.



Notes on Comfort: Akhil Katyal

कथेतर / Non-Fiction

‘आराम के विमर्श’ पर अखिल कात्याल का ललित निबंध, अंग्रेजी में
Akhil Katyal’s essay on the ‘rhetoric of comfort’.