आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

कथेतर / Non-Fiction

भास की उपस्थिति: संगीता गुन्देचा

कथेतर / Non-Fiction

(Kavalam Narayan Panikker’s production of Bhasa’s Karnabharam. Photo Courtesy Sangeeta Gundecha.) शताब्दियों तक संस्कृत के आद्य नाट्यकार महाकवि भास के नाटक अनुपलब्ध थे. उनका नाम संस्कृत और अन्य साहित्य परिसरों में चन्द्रिका की तरह फैला हुआ था पर उनके नाटकों के लिखित प्रारूप अनुपलब्ध थे. अब से ठीक सौ बरस पहले केरल में टी. गणपति […]



भास का लोकरंग: हबीब तनवीर से संगीता गुन्देचा की बातचीत

कथेतर / Non-Fiction

भारतीय रंगमंच पर लोक रंगपरम्परा को उसके पूरे वैभव और परिष्कार में व्यवहृत करने वाले रंगनिर्देशक हबीब तनवीर छत्तीसगढ़ी बोली और हिन्दी में संस्कृत नाटकों के मंचन के लिए सुविख्यात हैं. हबीब तनबीर ने संस्कृत नाटकों के अलावा ब्रेख़्त, शेक्सपीयर, स्टीफ़न ज़्वायग की कृतियों को भी छत्तीसगढ़ी में मंचित किया है. इन्होंने ख़ुद भी कई […]



कोई दूसरा अंत: गीत चतुर्वेदी

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दुनिया के ख़त्म होने के दिन का गीत दुनिया को ख़त्म होना है जिस दिन एक मक्खी मंडरा रही है घास की पत्तियों के गिर्द मछुआरा लहराते जाल की मरम्‍मत कर रहा छोटी डॉल्फि़नें ख़ुशी से कूद रहीं समंदर में छज्जे के पास नन्ही गौरैया खेल रही हैं और सांप की त्वचा हमेशा की तरह […]



Thirteen Ways of Reading Sappho: Aseem Kaul

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Thirteen Ways of Reading Sappho Come, divine shell, / find your voice and sing. –          Sappho 1. So many translations. Guy Davenport renders this: “Lead off, my lyre, / And we shall sing together” Jim Powell: “Come now, my holy lyre, / Find your voice and speak to me” Willis Barnstone : “Come, holy tortoise […]



अगर बच सका तो: गिरिराज किराड़ू

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थोड़ा-सा: अशोक वाजपेयी अगर बच सका तो वही बचेगा हम सबमें थोड़ा-सा आदमी – जो रौब के सामने नहीं गिड़गिड़ाता, अपने बच्चे के नम्बर बढ़वाने नहीं जाता मास्टर के घर, जो रास्ते पर पड़े घायल को सब काम छोड़कर सबसे पहले अस्पताल पहुँचाने का जतन करता है, जो अपने सामने हुई वारदात की गवाही देने […]



खुली हवा के गलियारे में – ‘अ’: अनिरुद्ध उमट

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ज्योत्स्ना मिलन चिट्ठी यानी हाथ की लिखी, असली वाली चिट्ठी, ई-मेल वाली बिना किसी पहचान की वर्च्युअल चिट्ठी नहीं . हाथ की लिखी हर चिट्ठी की अपनी एक अलग पहचान होती है . उसी ककहरे और बाराखड़ी से बनी होती है हर लिखावट, तब भी होती है कितनी अलग एक दूसरी से. हर  लिखावट एक […]



विशिष्टताओं के विरुद्ध: शिरीष कुमार मौर्य

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हरेप्रकाश उपाध्याय के पहले संकलन ‘खिलाड़ी दोस्त तथा अन्य कविताएँ‘ पर एक फौरी पड़ताल 2000 के बाद की युवा कविता में जिन कवियों ने सबसे अधिक प्रभावित किया है, मेरे लिए उनमें हरेप्रकाश उपाध्याय का नाम बहुत ख़ासहै. उन्हें तीसरा अंकुर मिश्र कविता पुरस्कार मिला और अभी हाल में ही भारतीय ज्ञानपीठ से उनका पहला […]



The Road To…: Stefan Jonsson

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Lars Andersson’s sentences! Much of what is unique about his writing is encapsulated in this one small element: the construction of each individual sentence. If it weren’t for the fact that he squeezes every single word to its very limit, I would call his prose ecstatic. One might compare it to music, dance, or perhaps […]



My Poetry: Firaq Gorakhpuri

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My poetry predates my appearance as a poet. While I was yet a child, my mother and other members of my family noticed that I refused to go into the lap of an ugly woman or an un-handsome man. I detested not only physical ugliness, but showed an intense dislike for oddities of dress, conduct, […]



Introducing Firaq Gorakhpuri (1896–1982): Noorul Hasan

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It is difficult for me to write about Firaq Sahib entirely objectively. I was his student at Allahabad University even after he had officially retired. My association with him was confined not merely to the classroom – where he often spoke on a variety of subjects – but extended to his residence on Bank Road, […]