आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

कथेतर / Non-Fiction

नोबडीज़ डिट्रॉइट: फिलिप लवीन

कथेतर / Non-Fiction

मैंने डिट्रॉइट 1954 में छोड़ा था. तब मैं छब्बीस साल का था और मैंने अंग्रेज़ी में बीए कर रखा था. मैंने वह नौकरी छोड़ी जो मुझे पसंद थी, हर साइज़ की इलेक्ट्रिक मोटरें सुधारने वाली एक कम्पनी के लिए “ट्रक चलाना” – जैसा कि उन दिनों कहा जाता. वह नौकरी मुझे ताज़ा  हवा में ले […]



Private Faces in Public Spaces: Amitava Kumar

कथेतर / Non-Fiction

The Art of Anunaya Chaubey Through my teenage years, I went to school in Patna. The school was called St. Michael’s High School, its buildings dwarfing the small houses around it, the walls of the school going down to the Ganges. Classes were held in English, though that changed later. St. Michael’s was run by […]



आकी काउरिसमाकी – अबोलेपन का व्‍याकरण: गीत चतुर्वेदी

कथेतर / Non-Fiction

लगातार शून्‍य में देखते घबराए हुए-से चेहरे, देर तक की चुप्‍पी के बाद अप्रत्‍याशित रूप से आया कोई संवाद, निम्‍न मध्‍यवर्ग के जीवन की छोटी-छोटी आकांक्षाएं और उन्‍हें पूरा करने की राह में आने वाली बाधाएं, चीज़ों को न कर पाने, न कह पाने का बेचैन रोज़नामचा, लगातार टूटते और उसी रफ़्तार से नए बनते […]



‘आठ और आधा’ के बहाने फ़ेल्‍लीनी पर कुछ फुटकर नोट्स: प्रमोद सिंह

कथेतर / Non-Fiction

कभी बात निकलती है तो मन में सवाल उठता ही है कि आख़ि‍र ऐसा क्‍या है फ़ेदेरिको फ़ेल्‍लीनी की फ़ि‍ल्‍मों में? ख़ास तौर पर उनकी अपनी इज़ाद विशिष्‍ट शैली के रचनात्‍मक चरम ओत्‍तो ए मेत्‍ज़ो में? बुनावट के वे क्‍या तत्‍व हैं आखिर कि उसे देखते हुए मन सिनेमा व उसकी सामाजिकता के ‘डेट’ व […]



Poet of the Flaming Sutlej – Lal Singh Dil (1943-2007): Nirupama Dutt

कथेतर / Non-Fiction

How is one to remember Lal Singh Dil? The literary status of Dil in the world of Punjabi literature was never disputed, and he is often described as a poets’ poet. Punjabi poet Surjit Patar says, “He will be counted as one of the top Punjabi poets of the twentieth century.” However, there was more […]



उधर के लोगों की यात्राएँ: अजय नावरिया

कथेतर / Non-Fiction

अपने बीते हुए दिनों के किन्हीं अहम अनुभवों को याद करना बिलकुल इस तरह है कि कोई किसी ऐसी रेलगाड़ी में बैठ जाए जो वक्त की दिशा से विपरीत चलती जाए. यह रेलगाड़ी एक्सप्रेस या सुपरफास्ट तो बिलकुल नहीं होनी चाहिए; यह पैसेंजर होनी चाहिए या फिर सबसे सुधीर ब्रांच लाईन की गाडी.मुझे याद आती […]



मेरे नॉवेल और पंजाब का दलित साहित्य: देसराज काली

कथेतर / Non-Fiction

पंजाब के दलित साहित्य या अपने नॉवेलों पर बात करने से पहले मैं कुछ उन पहलुओं पर बात करना चाहता हूँ, जो पंजाब के दलित साहित्य को अलग दर्शाते हैं। मेरा मानना यह भी है कि किसी इलाके के इतिहास को जाने बगैर आप वहाँ के साहित्य की किसी भी धारा को समझ नहीं सकते। […]



मा/प्रति-मा: गिरिराज किराड़ू

कथेतर / Non-Fiction

सुमन्त्रः जयतु महा (इत्यर्धोक्ते सविषादम) अहो स्वरसादृश्यम। मन्ये प्रतिमास्थो व्यावहरतित। रामः कस्यासो सदृशतरः स्वरः पितुमे गाम्भीर्यात परिभवतीव मेघनादम्। यः कुर्वन् मम हृदयस्य बंधुशंका सस्नेहः श्रुतिपथमिष्टतः प्रविष्टः।। भास के प्रतिमानाटकम में भरत का स्वर ऐसा लगता है उनका नहीं है. पहले सुमन्त्र को लगता है भरत नहीं मृत दशरथ की प्रतिमा ही बोल रही है (III) […]



भास की समकालीन व्याख्या: रतन थियम से संगीता गुन्देचा की बातचीत

कथेतर / Non-Fiction

मणिपुर के रंग निर्देशक रतन थियम पारम्परिक संस्कृत नाटकों को उनकी आधुनिक व्याख्या के साथ प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते है. उनका रंगकर्म अद्भुत रंग-संयोजन और अप्रतिम लय के कारण अनूठा है. वे अपना चित्रकार व कवि होना न सिर्फ़ अपनी चित्रकृतियों व कविताओं में व्यक्त करते है बल्कि उनका रंगकार्य भी इनका अचूक […]



भास का अनुकीर्तन: कावालम नारायण पणिक्कर से संगीता गुन्देचा की बातचीत

कथेतर / Non-Fiction

केरल के सुविख्यात रंगनिर्देशक कावालम नारायण पणिक्कर संस्कृत के शास्त्रीय रंगमंच पर वर्षों से एक केन्द्रीय उपस्थिति रहे हैं. श्री पणिक्कर की अधिकांश रंगशिक्षा केरल के पारम्परिक परिवेश और वहाँ की कुडियाट्टम्‌ जैसी  पारम्परिक रंगशैलियों के मध्य हुई. पणिक्कर की नाट प्रस्तुतियों में संस्कृत रंगमंच की सदियों पुरानी परम्परा मानो हम तक अटूट चली आयी […]