आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

कथेतर / Non-Fiction

‘World Class’: Annie Zaidi

कथेतर / Non-Fiction

There are times when I wonder if the point of travel is not to broaden one’s horizons as much as narrow them down. Not to teach us to embrace all differences, but to observe the gulf between us and them and to burn with the contrast. Narrow dusty roads and endless azure umbrellas of unstable […]



An Ambiguous Journey to the City: A Dialogue with Ashis Nandy

कथेतर / Non-Fiction

(By Ashutosh Bhardwaj and Giriraj Kiradoo) 1. Pratilipi An Ambiguous Journey to the City reworks the myth of the journey to explore the South Asian interface of city and village. You have argued that, in spite of their modest acquaintance with village life and manners, Gandhi and Satyajit Ray could discover their own villages because […]



जो फड़ा सो झड़ा, जो जला सो बुझा: सच्चिदानंद सिन्हा से मनोज कुमार झा की बातचीत

कथेतर / Non-Fiction

मनोज कहते हैं कि परिवेश बदलने के साथ और समय के साथ अलग अनुभव तो प्राप्त होते ही हैं, अनुभव-प्राप्ति का तरीका भी बदल जाता है, गाँव की तुलना में अनुभव-प्राप्ति का यह तरीका शहर के संदर्भ में कैसे बदलता है. सच्चिदा बाबू अनुभव साफ स्लेट पर लिखावट जैसा नहीं होता. जिस तरह कोई चित्र, […]



Jangarh Kalam: Udayan Vajpeyi

कथेतर / Non-Fiction

Come over O Bada Dev, sit in the dense shade of the Saja tree. Come, create the world, create it once again. Where the village comes to an end keep vigil O Mahrilin Devi. Let no illness, no disease head our way, stop it right there. At the edge of the forest stand guard O […]



Village: Sumana Roy

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Village Evening’s a cow with a rope round its neck. It can only look ahead. Something changes forever, without its consent. Dust is a gunshot fired from a silencer. It settles like the spray from a sneeze. Evening’s a shawl wrapped around an old woman’s head. It slips from her hair. She pulls it up […]



कुदाल की जगह: कृष्णमोहन झा

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क्या कभी कविता नमक की तरह अनिवार्य हो सकती है? कम से कम आधुनिक युग के तुमुल कोलाहल कलह में व्यस्त तथा अभिशप्त जीवन में इसकी संभावना नहीं दीखती. बल्कि ऐसा सोचना भी अटपटा और बचकाना लगता है. कहना कठिन है कि विगत में कभी कविता को ऐसी भूमिका निभाने का अवसर मिला या नहीं. […]



शिवमूर्ति-संगत: प्रभात रंजन

कथेतर / Non-Fiction

प्रभात अभी हाल में नया ज्ञानोदय में आपका उपन्यास आखिरी छलांग प्रकाशित हुआ. उसको पढ़ते हुए लगता है जैसे गांव का जो स्वप्न है वह टूट गया है. पूंजीवादी यथार्थ के सामने उसने सरेंडर कर दिया है. आज गांव का एक खाता-पीता किसान भी खेती के बूते अपने बच्चों को चाहे भी तो बेहतर शिक्षा […]



एक नये अनृत का प्रस्ताव: मदन सोनी

कथेतर / Non-Fiction

औपन्यासिक वास्तविकता और औपन्यासिक कल्पना: – पहली जो शुद्ध बौद्धिक वस्तु है; भाषादैहिक है; पाठ है; पठन, मनन, चर्वण, व्याख्या, के अधीन है; जिसमें भाषा एक विशिष्ट फलन में सक्रिय है; जिसमें भाषेतर पदार्थ-जगत के साथ भाषा का एक अद्वितीय सम्बन्ध विकसित है; जिसका अपना एक अभिसमय, अपनी एक वंशावली है जो उसकी पहचान का […]



गति के महाआख्यान में फुर्सत का खंड: हिमांशु पण्ड्या

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मित्रो, अस्सी का अपना शब्द कल्पद्रुम है- दुनिया जानती है। इसके पास और कुछ नहीं, शब्दों की ही खेती है। वह इसी फसल के अन्न का निर्यात करता है देश-विदेश में। आज से पचास साल पहले अपने ‘फार्म हाउस’ में उसने दो शब्द उगाए थे- ‘व्यवस्था’ और ‘कार्यक्रम’। कार्यक्रम उसे अपने काम का नहीं लगा। […]



Journeys of No Return: Trina Nileena Banerjee

कथेतर / Non-Fiction

Exile and Travel in the Films of Ritwik Ghatak Edward Said writes in his essay ‘Reflections on Exile’: “Exile is strangely compelling to think about but terrible to experience. It is the unhealable rift forced between a human being and a native place, between the self and its true home: its essential sadness can never […]