आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

कथेतर / Non-Fiction

Beginning an Essay: Rustam (Singh)

कथेतर / Non-Fiction

But one can begin an essay any which way, and on any subject. For instance, let us begin with this sentence and then see what happens: Women are the same as men – except in the shape of the sexual organs and the shape of the body. They think in the same way, feel in […]



Once You’ve Said A: Merete Pryds Helle

कथेतर / Non-Fiction

Once you’ve said A, you can say. Once you’ve said A a sufficient number of times and then B and then… you simply have to go on. You can’t say A P F, for behind A P F there’s a little voice saying A B C, and behind the C there’s the backroom where the […]



आधा गाँव – दो पाठ और एक अधूरा साक्षात्कारः गिरिराज किराड़ू

कथेतर / Non-Fiction

1 Over the years I have come to believe increasingly in the truth of Jacques Lacan’s formulation that each mode of discourse has its underlying fiction, and that the discourse collapses the moment the fiction is removed. The difference between literature and history rests on the supposition that history is a referential discourse while literature […]



हर दिन चटनी: विष्णु गोपाल मीणा

कथेतर / Non-Fiction

अलवर जिले की उमरैण पंचायत समिति में एक गाँव है रूंध बीणक. शहर से मात्र 20 किमी की दूरी पर स्थित यह गाँव सीलीसेड झील के उस इलाके में है जहाँ के बरसाती पानी से सीलीसेड झील ही नहीं जिले के सबसे बड़े बांध जयसमंद में भी पानी जाता है. सरिस्का अभयारण्य के जंगल में […]



समय के बदले जगह, राष्ट्र के बदले प्रान्त: सदन झा

कथेतर / Non-Fiction

रेणु साहित्य और आंचलिक आधुनिकता यह एक ऐतिहासिक संयोग भी हो सकता है कि महबूब खान की मशहूर सिनेमा मदर इंडिया और फणीश्वर नाथ रेणु का दूसरा उपन्यास परती: परिकथा 1957 में एक मास के भीतर ही रिलीज हुए. मदर इंडिया उस बरस पहले पहल 25 अक्टुबर को बम्बई और कलकत्ता में परदे पर आयी […]



नेह छोह: शोभाकान्त

कथेतर / Non-Fiction

दिन भर की प्रचंड गर्मी, देर रात की ठिठकी हवा और उसके बाद निशा-शेष में जब दक्षिण पवन ग्रीष्म ऋतु की श्रान्त और शिथिल अलस प्रकृति नदी के सिमटे हुए आँचल को फहराने लगता तो ‘छिवही‘ आम के विशाल वृक्ष की निस्पन्द टहनियां उच्छवासित हो उठती ….. टप-टप-टप करके आम गिरने लगते. ठीक उसी वक्त […]



मोही जोगिनी बना के कहाँ गइले रे जोगिया: गिरीन्द्र नाथ झा

कथेतर / Non-Fiction

(फणीश्वर नाथ रेणु मौजूद हैं अपने गाँव में या फिर ..) कोसी के दोनों पाटों के बीच गूंजती हैं चिड़िया-चूरमून की आवाजें…चूं..चूं.चूं.. भैया उठिए, आ गया रेणु का देश, भोर (सुबह) हो गई है. जम्हाई  लेते हुए, गाड़ी से बाहर देखता हूँ. बांस-फूस की बनी बस्तियां. कुछ पक्के मकान भी. मटमैल धोती और कुर्ते में […]



A Counter-Enlightenment of Sorts: Purushottam Agrawal

कथेतर / Non-Fiction

(In conversation with Giriraj Kiradoo) Pratilipi The popular opinion about the ‘event’ (‘honor killing’) is almost consensual on two things. One: its geo-cultural location can only be a village (irrespective of the actual geographical location of the incident). And two: such acts are, by default, a ‘sign of the medieval’. Your book on Kabir, Akath […]



Culture of Color: Ashutosh Bhardwaj

कथेतर / Non-Fiction

Among the many qualities of Piyush Daiya’s books of conversations with two of India’s leading artists, Haku Shah and Akhilesh, the most inspiring is his ability to efface the minutest traces of himself from the text. How he engaged the artists in conversation, we never know. We can only surmise that he must have been […]



औपनिवेशिक आधुनिकता के बरक़्स कबीर: विनोद शाही

कथेतर / Non-Fiction

‘कबीर की कविता और उनके समय’ को पुरुषोत्तम अग्रवाल की इसी शीर्षक वाली किताब प्रेम की अकथ कहानी की तरह पढ़ने की कोशिश करती है. इस ‘पाठ’ या पुनपठि के कई निहितार्थ हैं. पहली बात तो कबीर को ‘कवि’ के रूप में ही स्वीकृत करने से जुड़ी दिक्कतों की है, जिनके समाधान के लिये ‘कबीर […]