आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

कथेतर / Non-Fiction

Durga Puja as Installation Art: Kaushik Sengupta

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The art form popularly associated with Durga Puja is the making of pandals that are to be the guest house of Goddess Durga for the four days of her stay here. Since the days of the landed aristocracy, there used to be “sarvajanin puja” or community puja financed by the local committee. The mandaps were […]



Resident Evil: Giriraj Kiradoo

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The Adventures of Topandas Khilluram Narkiyani in Manohar Shyam Joshi’s Hamzad Ladies and Gentlemen! We have talked a lot about demons. It’s time we met one. What do you call a person who sleeps with you, your mother, your hunchbacked elder sister, your beautiful younger sister, your first enigmatic lover, your second intellectual lover, your […]



दस प्रिय उपन्यास: प्रभात रंजन

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हिंदी में, मुझे लगता है पिछले सौ सालों में अनेक उपन्यास ऐसे लिखे गए हैं जो किसी भी पैमाने पर श्रेष्ठ कहे जा सकते हैं. उनमें से अपने १० प्रिय उपन्यासों का चयन करना मुझे बहुत बड़ी चुनौती लगती है. लेकिन कुछ तो अपने अध्ययन की सीमा होती है, कुछ समझ की. अपनी पसंद के […]



ज्योत्स्ना मिलन से लूसी रोजेनटाइन की बातचीत

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लूसी रोजेन्टाइन ज्योत्स्नाजी आप अपने बचपन के बारे में कुछ बताइए. मुझे मालूम है कि आपके पिताजी बहुत बड़े लेखक थे और आपकी मॉं गृहिणी थीं सो आप पर अपने माता-पिता के असर के बारे में कुछ बताइए. ज्योत्सना मिलन पिता के साहित्यकार होने से मुझे जो सबसे बड़ा लाभ मिला वो यह कि पढ़ने-लिखने […]



The Earth Redeemed by Strangers / The Strangeness of the Sacred: Alok Bhalla

कथेतर / Non-Fiction

A Reading of a Painting of the Ramayana from Chamba 1 The genesis of this project lies in my attempt to ‘read’, in collaboration with Vijay Sharma, three 18th century miniature paintings based on the Ramayana in the Bhuri Singh Museum at Chamba (cf. Vishwa Chander Ohri). As with the written and oral versions of […]



आजादी से पहले और बाद – मीडिया और राजनीति: त्रिभुवन

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”कभी भारत में पत्रकारिता का पेशा एक व्यवसाय था. अब वह व्यापार बन गया है. वह तो साबुन बनाने जैसा है, उससे अधिक कुछ भी नहीं. उसमें कोई नैतिक दायित्व नहीं है. वह स्वयं को जनता को जिम्मेदार सलाहकार नहीं मानता. भारत की पत्रकारिता इस बात को अपना सर्वप्रथम तथा सर्वोपरि कर्तव्य नहीं मानती कि […]



Loneliness Alert: Akhil Katyal

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Rounding up the Usual Suspects Fire alarms at my postgraduate student house in London are always a ready excuse to hang out. Every time the highly annoying siren sounds off, I see students acknowledge it with a very odd mix of frustration and amusement. We clamber down the stairs making the familiar shrugs and smiles […]



नागार्जुन और विचारधारा का सवाल: अशोक कुमार पाण्डेय

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ये समझना कि वो अस्थिर हैं और उनकी राजनीतिक विचारधारा अस्थिर रही, सही बात नहीं है. मैं तो ये कह सकता हूँ कि बहुत-सी पार्टियों में वामपक्ष भी पार्टियां हैं, उनकी विचारधारा अधिक अस्थिर रही है नागार्जुन की तुलना में. नागार्जुन के विचारों में परिवर्तन होता रहा है. ये बात सही है और हमेशा सही […]



वॉन ट्रिअर और सिनेमा: अभय तिवारी

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तकनीक, निर्देशक और दर्शक की आज़ादी लार्स वॉन ट्रिअर कहते हैं, “मेरी फ़िल्मे आदर्शों के बारे में हैं जो दुनिया से जा टकराते हैं. जब भी मुख्य भूमिका पुरुष की होती है, वो आदर्श भुला बैठते हैं. और जब भी एक स्त्री मुख्य भूमिका निभाती है तो वो आदर्शों को अपने अन्तिम परिणति तक ले […]



The Wages of War: Aseem Kaul

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David Malouf’s Ransom 1. In the annals of epic poetry there are few poems as vivid and majestic as Homer’s Iliad. From the first introduction of the Achaean armada, through the bone-shattering battle for Patroclus’ corpse, to the revenge of Achilles dyeing the Skamander red, Homer’s dramatization of the Trojan War remains true to its […]