आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

कथेतर / Non-Fiction

सरेनिटी का संगीत: भारत भूषण तिवारी

कथेतर / Non-Fiction

काबुल नदी में कपड़े धोती औरतें न्यू यॉर्क टाईम्स में एक तस्वीर 15 नवम्बर 2001 कल वे थीं, काली पुती खिड़कियों वाले घरों में ठुँसी हुईं आज, वे घूमती हैं इस नदी के किनारे रेन्वा की पेंटिंग में बतियाती औरतों की मानिंद. बैंगनी, चटख हरे, नारंगी रंग-बिरंगे कपड़ों का अक्स पानी में पड़ता है, ऊपर […]



विष्णु खरे की कविता ‘जो मार खा रोईं नहीं’ का एक ख़याल-पाठ: गीत चतुर्वेदी

कथेतर / Non-Fiction

हिंदी कविता के पारंपरिक काव्‍य-आस्‍वादन-पठन-अभिरुचियों की रूढ़ता को विष्‍णु खरे की कविता जिस तरह-जितनी बार-जितने तरीक़ों से तोड़ती है, उनकी कविता के बारे में उतने ही रूढ़ शब्‍द-क्रम में बात की जाती है- मसलन वह रूखे गद्य के कवि हैं, तफ़सीलों का बोझ उनकी कविता को दोहरा कर देता है, ‘अगर कुछ कम कहते या […]



The City and (Im)Passivity: Nitasha Kaul

कथेतर / Non-Fiction

Cities are often seen as sites of exaggerated movement – as busy and bustling places of constant activity – where neon signs flash, cars honk, and people jostle in crowds. In contrast, the images I’ve chosen for this photo-essay deliberately begin with the ‘Stop’ sign; they convey the city through stillness. The subjects of these […]



खूबसूरत टैंकों के देश में जहाँ सरस्वती को हाकडा कहते हैं: प्रेम चन्द गांधी

कथेतर / Non-Fiction

पिछली बार मैं यहाँ दिसम्बर की कड़कड़ाती ठण्ड में आया था। उस वक्त फलों और सूखे मेवे की पेटियां लिए कुली दौड़ते चले आ रहे थे। नीली वर्दी में भारतीय और में पाकिस्तानी कुली। इस बार बस इक्का-दुक्का कुली नजर आ रहे हैं। पहले भारतीय सीमा पर हुई जाँच के बाद पाक सीमा पर एक […]



वह भी कोई देश है महाराज 2: अनिल यादव

कथेतर / Non-Fiction

हम दोनों को ही जोरदार पूर्वाभास था कि कहाँ जाना है और वहाँ हमारा स्वागत करने वाले लोग कौन होंगे. …लेकिन स्टेशन से बाहर निकलते ही सबसे पहले तामुल खाना चाहता था. इस नशीली सुपारी से मेरा बचपन से भय, जुगुप्सा, अपराध बोध और आकर्षण का संबंध रहा है. सबसे पहले इस तामुल ने ही […]



Exploring the Sakshi Bhava: Nand Kishore Acharya in Conversation

कथेतर / Non-Fiction

Giriraj: Your creative talent, given the popular difference between the creative and the critical, has found expression in lyrical and dramatic forms, which according to Aristotle are types of poetry or poesy. This could be my preface to our dialogue on your plays and as well as an indicator to see it as an abiding […]



मुझे बस उत्सव में शामिल कर लोः मनोज कुमार झा

कथेतर / Non-Fiction

बाँसक ओधि उखाड़ि करै छी जारनि हमर दिन नहि घुरतकि हे जगतारिनि (नागार्जुन, पत्रहीन नग्न गाछ, १९६८) (बाँस की जड़ें खोदकर लाता और मात्र वही जलावन, ऐ जगतारनी क्या मेरे दिन नहीं फिरेंगे?) एक स्त्री के द्वारा बाँस की जड़ें उखाड़कर अपने हिस्से की आग जुटाने का कठिन श्रम, उस जड़ के जलने से उठ […]



कविता चींटियों की बांबी में लगी ख़तरे की घंटी है: गीत चतुर्वेदी

कथेतर / Non-Fiction

आज की कविता के बारे में कुछ भी बोलने से पहले मैं उस समाज के बारे में सोचता हूँ, जिसमें मैं रहता हूँ, जो कि बोर्हेस के शब्दों में ‘स्मृतियों और उम्मीदों से पूर्णत: मुक्त, असीमित, अमूर्त, लगभग भविष्य-सा’ है; मैं उस भाषा के बारे में सोचता हूँ, जिसमें मैं सोचता-लिखता हूँ, जो कि, जैसा […]



Muslim Rantings In The Land Of Buddhist Oral Tradition: Noor Zaheer

कथेतर / Non-Fiction

A contention is often made by scholars and critics that, for a writer, the exterior atmosphere is something that is always present in the ‘self’, and invariably affects the creative thought process. My presentation is about the process of expanding the ‘self’ or adding other ‘selfs’ through a change of the exterior. Moving away to […]



Lost Loves: Arshia Sattar

कथेतर / Non-Fiction

EXPLORING RAMA’S ANGUISH IN THE VALMIKI RAMAYANA My abridged translation of Valmiki’s Ramayana was published at the very end of 1996. When I got the first copies, I was awed by the gravitas the work had acquired by being transformed into a heavy, black-jacketed hardback book. I put it away in my book shelf and […]