History, Literature, Beliefs: Sudhir Chandra
शीर्ष कथा / Lead Featureइस बार हमारी शीर्ष कथा एक नहीं कई मजमूनों से बनी है. इसमें असद जैदी की हिन्दी कविता १८५७: सामान की तलाश (२००८) का अंग्रेज़ी अनुवाद और उस पर राजेश कुमार शर्मा की अंग्रेज़ी टिप्पणी का हिन्दी अनुवाद, चंद्र प्रकास देवल की १६वीं शताब्दी में कवियों के मरण-धरणे की इतिहास-विस्मृत घटना पर लिखी राजस्थानी-हिन्दी पुस्तक ‘झुरावो’ (२००८) के कुछ अंशो और पुस्तक की भूमिका के अंग्रेज़ी अनुवाद, कुंवर नारायण की सत्तर के दशक में प्रकाशित हिन्दी कहानी ‘मुग़ल सल्तनत और भिश्ती’ का अंग्रेज़ी अनुवाद और इन सब मजमूनों की पृष्ठभूमि में इतिहास-लेखन और साहित्य-लेखन के अंतर्संबंधों पर समाजेतिहासकार सुधीर चंद्र का अंग्रेज़ी निबंध शामिल है.
सुधीर का निबंध इतिहास और साहित्य की पारस्परिकता को अनुशासनात्मक/विधात्मक सीमाओं और निष्ठाओं के परिप्रेक्ष्य में पढ़ता है. और ऐसे मजमूनों की संभावनाएं तलाश करता है जिनमें बिना ‘अनैतिहासिक’ हुए इतिहास(लेखन) गल्पात्मक/साहित्यिक हो सके और बिना ‘असाहित्यिक/अगल्पात्मक’ हुए साहित्य(लेखन) ऐतिहासिक हो सके और कहता है कि साहित्य तभी अधिक ‘प्रामाणिक’ ढंग से ऐतिहासिक हो सकता है जब वह ‘गल्पात्मक/साहित्यिक’ बना रहे.
This time around, our lead story consists of not one but many pieces: it has Asad Zaidi’s Hindi poem 1857: Samaan ki Talaash along with an English translation and with Rajesh Kumar Sharma’s commentary; it has excerpts from, and the preface to, Chandra Prakash Deval’s long poem in Rajasthani, Jhuravo, based on an incident from the 16th century, long-forgotten by history – in English and Hindi translations; it has the English translation of Kunwar Narain’s story Mughal Saltanat aur Bhishti from the 1970s; and, against the backdrop of these works, it has an essay by the social-historian Sudhir Chandra on the inter-relationships of history and literature.
Sudhir’s essay reads the intertextuality of history and literature in the context of disciplinary integrities and limitations. It tries to find possibilities in texts where historical (writing) becomes fictional/literary without losing its historicity, and literary (writing) becomes historical without losing its literariness/fictiveness, and says that literature can be more “authentically” historical only by remaining fictional/literary.