1920 के दशक में एक बीस साला घुमक्कड़, जहाज पर कोयला भरने का काम कर रहा स्वीडी नौजवान भारत आया और ठीक अपने बीसवें जन्मदिन पर उसने अपना जहाज छोड़ दिया, उसके ठीक पचास साल बाद इस आवारागर्द, हैरी मार्टिनसन को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला – यह सब तथ्य है; मार्टिनसन से मिलता जुलता और उनकी ही किताबों के एक किरदार के नाम वाला एक व्यक्ति मार्टिन टोमासन 1924 में भारत आता है जहाँ बम्बई बंदरगाह पर एक धोबिन पुष्पी के साथ उसका अनूठा संबंध शुरू होता है – यह लार्श एंडरसन के उपन्यास वायेन टिल गोंडवाना का कथ्य हैः एक वास्तविक लेखक के जीवन को एक मुक्त फैंटेसी में बदलते खुद उसी की आविष्ट लिरिकल शैली में लिखे गये इस असाधारण स्वीडी उपन्यास का एक अंश (तेजी ग्रोवर के सौजन्य से) मारलेन डेलार्जी के अंग्रेजी अनुवाद में.
In the 1920s, Swedish writer Harry Martinson came to India as a runaway steamship stoker, abandoning his ship in Bombay just at the time of his 20th birthday, and exactly 50 years from there on he was awarded the Nobel Prize for Literature – that’s fact. A person curiously resembling Martinson and bearing a name from his books, Martin Tomasson, comes to India in 1924 and there begins his amazing relationship with an Indian washerwoman on the port of Bombay – this is Lars Andersson’s novel Vägen till Gondwana that turns a ‘real’ author’s life into a free-wheeling fantasy, imitating his own haunting, lyrical idiom. We thank Teji Grover for making an excerpt of this extraordinary piece of fiction available to us, in Marlaine Delargy’s English translation.