आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

फीचर्स / Features

बिस्मिल्ला खाँ / Bismillah Khan

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Ustad Bismillah Khan has been a towering presence not only in Indian music, but in the art world as a whole. His personality and his choice of instrument were both something new in classical music. Situated between the classes and the masses; cocking a snook at the modern learning which considers the divide final and inviolate.

This feature includes pieces on him by two Hindi poets. Yatindra Mishra’s Sur ki Baradari is an excerpt from Penguin-Yatra’s soon-to-be-published book of the same name, which reads his work, his personality and local tradition all together. Vyomesh Shukla’s tribute to the Ustad sees in his art signs of cultural politics, of resistance.

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान भारतीय संगीत ही नहीं, समूचे कलासंसार में एक विलक्षण उपस्थिति रहे. अपने व्यक्तित्व और वाद्य दोनों से वे शास्त्रीय संगीत में एक नए ‘टाईप’ थे. अभिजन और जन के बीच; इनके परस्पर विरोध को अटल व अन्तिम मानने वाले आधुनिक पांडित्य को अंगूठा दिखाते. और यूँ भी उस्ताद अपने से बड़े हो गए थे.

उन पर दो हिन्दी कवियों का गद्य इस फीचर में शामिल है. यतीन्द्र मिश्र का सुर की बारादरी इसी नाम से पेंग्विन-यात्रा से शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक से लिया गया है जो उनकी कला, स्थानीय परम्परा, उनके व्यक्तित्व को एक साथ पढ़ती है. उस्ताद को ट्रिब्यूट की तरह लिखा गया व्योमेश शुक्ल का गद्य उनकी कला को सांस्कृतिक राजनीती के, प्रतिरोध के संकेतों की तरह देखता है.



Indian Documentary

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भारतीय डॉक्यूमेंटरी फिल्मों पर लिखे हुए (और ख़ुद उन फिल्मकारों के अपने काम के बारें में लिखे हुए) के हताश करने वाले, लगभग-पूर्ण अभाव की पृष्ठभूमि में हम यह फीचर-श्रुंखला, अंग्रेज़ी लेखक श्रीदला स्वामी के संयोजन में, शुरू कर रहे हैं. उनका अग्रलेख वृहत्तर (बौद्धिक) समाज में इस कला कर्म को लेकर बहस की जरूरत और इस कलाकर्म के विषय में इतिहास और प्ररिप्रेक्ष्य की अनुपस्थिति को संबोधित है.

फिल्मकार पारोमिता वोहरा का लेख कला में राजनीति के संवेग और फॉर्म के मूलगामी प्रश्न के परस्पर संभवन की, पर्सनल और पॉलिटिकल के संवाद की, पॉलिटिकल के पर्सनल होने की उन प्रक्रियाओं के बारे में है जो उनके सिनेमा में, उसके बनने में महत्वपूर्ण रही हैं. सुरभि शर्मा, कैरेबियाई भारतीयों के पॉपुलर संगीत पर बनी अपनी फ़िल्म जहाजी म्यूजिक के परिप्रेक्ष्य में, प्रवास, विस्थापन, औपनिवेशिक इतिहास और एथनिक पहचान के गड्डमड्ड को, रैगे/भोजपुरी/केलिप्सो/डान्सहॉल की थिरकन में ‘ऑरिजिन’ के गुम होने को, भारतीयता की एक ‘पॉलिफोनिक’ लय की तरह सुनती-पढ़ती हैं.

In light of the disappointing near-complete absence of texts about Indian documentary film (including texts written by documentary filmmakers themselves), we begin this series of features curated by film-editor and writer Sridala Swami. Her introduction addresses this lack of a sense of history and context about this art form and stresses the need for debate in a broader (intellectual) community.

Filmmaker Paromita Vohra’s essay is about the processes important to her cinema and its making – the negotiation of political intent with a radical concern for form, the dialogue between the personal and the political and the reshaping of the political as the personal. In the context of her film, Jahaji Music, Surabhi Sharma’s essay reads into and listens to the confusion of migration, displacement, colonial history and ethnic identity, the loss of ‘origin’ in Reggae/Bhojpuri/Calypso/Dancehall beats, as a polyphony of Indianness.



लोक-प्रिय / Lok-Priya

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In this issue we start a new section devoted to those art forms which are generally deemed “popular”. Not only have these forms engendered thought-provoking discourse in recent years, they have also exhibited unprecedented levels of experimentation and self-reflexive awareness.

Lok-Priy’s first selection presents: an excerpt from graphic novelist, Sarnath Banerjee’s novel The Barn Owl’s Wondrous Capers, translated into Hindi by Giriraj Kiradoo; a short story by Ashok Banker, famous for his retellings of mythological epics, as well as for his SFF and cross-genre works; and music by Sridhar/Thayil.

इस अंक से हम एक नया खंड उन कला रूपों पर आरंभ कर रहे हैं जिन्हें लोकप्रिय/पॉपुलर कहा जाता है. पिछले कुछ वर्षों में इन रूपों पर न सिर्फ़ बहुत विचार-सघन, उत्तेजक विमर्श हुआ है, स्वयं इन रूपों में नवाचार और आत्मसजगता के अप्रत्याशित संयोजन देखने को मिले हैं.

लोक-प्रिय की पहली पेशकश में पहले भारतीय ग्राफिक नॉवेलिस्ट (चित्र-गल्पकार / गल्पचित्रकार?) सारनाथ बनर्जी के उपन्यास द बार्न आऊल’स वंडरस केपर्स का एक अंश गिरिराज किराड़ू के हिन्दी अनुवाद में; महाकाव्यों की पुर्नप्रस्तुति और एसएफएफ व क्रॉस-जॉनर फिक्शन के लिये प्रसिद्ध अशोक बैंकर की एक कहानी और श्रीधर/थायल का संगीत.



Olav Hauge / ऊलाव हाउगे

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यह महान नार्वीजी कवि उलाव हाउगे का जन्मशती वर्ष है. रुस्तम (सिंह) हाउगे का एक प्रतिनिधि संकलन हिन्दी में तैयार कर रहे हैं और यहाँ प्रस्तावित पुस्तक की भूमिका के साथ प्रस्तुत है हाउगे की इक्कीस कवितायें जो प्रस्तावित संकलन की तरह ही उनके सारे रचनाकर्म के आर-पार चुनी गयी है. हाउगे को, अनुवादक के शब्दों में ‘मेरे पढ़े कवियों में सबसे कम सरलमति’ कवि, को पढ़ना, न सिर्फ़ आधुनिकता द्वारा निर्मित मनुष्य-केन्द्रिक सभ्यता तंत्र के दूसरी तरफ़ देखना है, एक ऐसी कविता का सामना करना भी है जो मनुष्य के ‘पूर्णतम’ अकेलेपन को ओझल नहीं होने देती.

This is the birth centenary of the great Norwegian poet Olav Hauge. Rustam (Singh) is preparing a representative collection of Hauge’s work in Hindi. We present you the preface to the proposed book as well as 21 poems by Hauge from across his oeuvre. Hauge is, in the words of the translator, “one of the least gullible poets I have read” and reading him not only forces us to look at the other side of modern, human-centric civilization, it also brings us face to face with our “utter solitude”, our “complete aloneness in the world.”



परिवार पुराण: मिथिलेश मुकर्जी

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This text written by a school-teacher and education-officer is, on one hand, a “family saga” – of a family that has been active in the field of education for a hundred years; on the other hand, this text is also a “private” document (a sequence of letters written to Purwa Yagnik Kushwaha) of more than 60 years, from 1935 to 1999, made possible only due to genuine internalization of the “public”. Starting from an “idealistic” time when education was supposed to be a humanitarian activity, to a time when education became a career, this text is also a document of the culture that was formed in the last century. Names like Annie Besant, Maria Montessori, Rahul Sankrityayan, Sumitranandan Pant, Ganesh Shankar Vidyarthi, Harivansh Rai Bachchan and countless other proper nouns appear in these pages without their usual associations and they are recorded the way hundreds of other people and incidents are.

We are grateful to Teji Grover and Purwa Yagnik Kushwaha for making these extracts available to us.

एक स्त्री शिक्षक और शिक्षा अधिकारी का लिखा यह पाठ एक ओर जहाँ एक ‘फैमिली सागा’ है – एक ऐसे परिवार का पुराण जो शिक्षा में सौ वर्षों से सक्रिय है; वहीं दूसरी ओर यह, पाठ १९३५ से १९९९ के मध्य ६० वर्षों से अधिक समय का एक ऐसा निजी दस्तावेज़ (यह मूलतः पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा के नाम लिखीं गयी चिट्ठियों की लम्बी श्रंखला है) जो सिर्फ़ ओर सिर्फ़ खालिस सार्वजनिकता से ही सम्भव हुआ है. शिक्षा को मनुष्य के कल्याण का माध्यम मानने वाले ‘आदर्श’ के समय से शुरू होकर शिक्षा के करियर हो जाने के दो ज़मानों के बीच से गुजरता हुआ यह पाठ उस सांस्कृतिक का दस्तावेज़ भी है जो पिछली सदी में बना है. इस सांस्कृतिक में एनी बेसेंट, मैडम मोंटेसरी, राहुल सांकृत्यायन, सुमित्रानंदन पन्त, गणेश शंकर विद्यार्थी, हरिवंश राय बच्चन, और न जाने कितनी व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ अपने ध्वन्यार्थ को लगभग खोकर आती हैं और आख्याता उनके आवागमन को वैसे ही दर्ज करती है जैसे सैकड़ों दूसरे लोगों और घटना-वृतांतों को.

इसके अंश हमें उपलब्ध कराने के लिए हम तेजी ग्रोवर और पूर्वा के आभारी हैं.



Gesture Projects: Michael Buckley

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जेस्चर को सिनेमा की भाषा की तरह पढता, प्रस्तावित करता आस्ट्रेलियाई स्वतंत्र फिल्मकार और लेखक माइकल बकले का निबंध और उनके द्वारा निर्मित एक वीडियो.

An essay and a video by Australian filmmaker and writer Michael Buckley, reading “gesture” as the language of cinema.



सोनमछरी मेँ सखामण्डल: वागीश शुक्ल

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A tiny droplet from Wagish Shukla’s proposed ocean of a novel (2500 pages). This excerpt is in continuation to the one published in the previous issue. It gives us pleasure to announce that Wagish Shukla has made available to Pratilipi the complete segment – Vishesh: Ek Tilismi Upakhyaan – from which these excerpts are taken. You can download it, in PDF format, from the sidebar.

वागीश शुक्ल के प्रस्तावित महाउपन्यास (दो-ढाई हज़ार पृष्ठ) से एक और छोटी सी बूँद. यह पिछले अंक में प्रकाशित के ठीक बाद वाला अंश है. हमें खुशी है कि वागीश जी ने यह पूरा अध्याय – विशेष:एक तिलिस्मी उपाख्यान- प्रतिलिपि पर उपलब्ध करा दिया. है. इसे आप साइडबार से डाउनलोड कर सकते हैं.



To be Regardful of the Earth: Rustam (Singh)

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रुस्तम का यह पाठ पिछले दो अंकों में प्रकाशित पाठों का मूल पाठ है; एक पूर्व लेख जिसमें आत्म की वह धारणा विकसित होती है जो परवर्ती निबंधों में एक पूर्वमान्यता बन जाती है. (पाठक चाहें तो इन निबंधों को ३,१,२ के मूल क्रम में पढ़ सकते हैं. क्रम का यह कौतुक अनायास हुआ है पर २,३,१ क्रम से पढने पर इबारत कुछ बदल जाती है, यह पाठकों से छुपा न रहेगा.)

This essay by Rustam is the source-text for his two essays featured in previous issues. A text in which that concept of “self” is developed which becomes the premise for the two later texts. (Readers may, if they wish, read these essays in the actual order: 3, 1, 2. This inverted order was not entirely intentional, but it will be obvious that reading them in the order 2, 3, 1 does make a difference.)



Wall Paintings by Meena Women: Madan Meena

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चित्रकार मदन मीणा पिछले कुछ समय से मीणा स्त्रियों की कला पर शोध कर रहे हैं और यहाँ प्रस्तुत माँडणा भित्ति चित्रों का संचयन उनके द्वारा किए गए फोटोग्राफीय दस्तावेजीकरण का एक नमूना है. माँडणा कोरने वाली स्त्रियाँ जो संसार बनाती है वह लगभग मनुष्येतर संसार है. इसमें पशु पक्षी हैं,, वस्तुएं हैं, अमूर्त डिज़ाईनें हैं, मनुष्य नहीं. और जो है वह भी वैसा नहीं जैसा हमें सामान्यतः दिखाई पड़ता है. जिस ‘हार्मनी’ के तर्क से इसमें प्रकृति के कई तत्त्व एक जगह इकट्ठे हो जाते हैं मानो उसी तर्क से उनके घरों की दीवारों पर उनकी कला के साथ, उसके बिल्कुल बगल में, देवी देवताओं और बालीवुड की अभिनेत्रियों के पोस्टर भी दृश्य का हिस्सा बन जाते हैं.

The painter, Madan Meena, has been researching the art of Meena women for a while now and the collection of Mandana wall-paintings featured here are part of his photographic documentation. The world created by the Meena women in the Mandana is a world made of animals, birds, decorative patterns, but no humans. If at all they are there, they are scarcely recognizable. The “harmony” depicted in Mandana by the juxtaposition of various elements from nature can also be seen in their homes where, right beside their art, the walls are decorated with images of gods and goddesses and posters of bollywood actresses.



Ann Jäderlund / आन येदरलुण्ड

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Featuring Ann Jäderlund’s poems, which have reshaped and enriched contemporary Swedish poetry, this section has – twelve of her poems in the original Swedish and in Teji Grover’s Hindi translations, Staffan Söderblom’s introductory notes on her poetry and Teji Grover’s intimate English prose on her experience of writing Jäderlund in Hindi.

आन येदरलुण्ड की कविता ने समकालीन स्वीडिश कविता को अपने काव्य-उद्यम से जिस कदर प्रतिकृत और समृद्ध किया है, उसको लक्ष्य करते हुए इस खंड में है आन की आठ कवितायें मूल स्वीडिश और तेजी ग्रोवर के हिन्दी अनुवादों में; आन की कविता पर स्ताफान स्ताफान स्यदरब्लुम की परिचयात्मक टिप्पणी मूल अंग्रेज़ी और हिन्दी में, और उनकी कविताओं के हिन्दी अनुवाद की प्रक्रिया पर तेजी ग्रोवर का अंग्रेज़ी गद्य.