आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

फीचर्स / Features

किताबत IV / Kitabat IV

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पेंग्विन से प्रकाशित अमिताव घोष के महाकाव्यात्मक उपन्यास सी ऑव पॉपीज पर प्रभात रंजन की समीक्षा जहाँ एक स्तर पर उपन्यास को हिन्दी और भोजपुरी पाठकों के लिये खोलने की कोशश करती है वहीं उपन्यास की कई गंभीर शोधपरक और भाषिक भूलों की तरफ भी ध्यान दिलाती है.

रूस्तम भरुचा की लोकविद कोमल कोठारी से लम्बी बातचीत आधारित किताब राजस्थान: एन ओरल हिस्ट्री और धर्मवीर भारती के प्रयोगशील क्लैसिक सूरज का सातवां घोड़ा के लिखित और सिनेमाई पाठों पर गिरिराज किराड़ू के समीक्षात्मक निबंध भी किताबत के इस चौथे संस्करण में शामिल हैं.

Prabhat Ranjan’s review of Amitava Ghosh’s epical Sea of Poppies (Penguin) if at one level tries to bring the novel home to Hindi and Bhojpuri readers, also points out serious flaws in its use of the Bhojpuri language and some other geo-historical inconsistencies.

Giriraj Kiradoo’s essays on Rustom Bharucha’s Rajasthan: An Oral History (based on Rustom’s conversations with folklorist Komal Kothari) and on the written and cinematic texts of Dharamveer Bharati’s delightfully experimental novel Sooraj ka Saatvan Ghora complete the fourth edition of Kitabat.



लोक-प्रिय V / Lok-Priya V

फीचर्स / Features

लोक-प्रिय में इस बार है लेखक-इतिहासकार मुकुल केशवन की एक कविता, वैज्ञानिक पूर्णेंदु घोष का अपने बचपन/कैशोर्य के बारे में आत्मकथात्मक गद्य, और पिछले साल ए वेन्जडे की वजह से चर्चा में आए फिल्म निर्देशक नीरज पाण्डेय की अंग्रेजी कहानी.

Lok-priy features a wonderful doggerel by writer, historian Mukul Kesavan, autobiographical Hindi prose by scientist Purnendu Ghosh, and a short story by Bollywood film director Neeraj Pandey.



द नेम ऑव् द रोज़ हिन्दी में / The Name of The Rose in Hindi

फीचर्स / Features

अम्बर्टो इको के समकालीन क्लैसिक द नेम ऑव् द रोज़ का हिन्दी अनुवाद अपने में एक घटना है और हमें खुशी है कि हम इस अनुवाद की एक झलक प्रकाशित कर पा रहे हैं. प्रख्यात हिन्दी आलोचक मदन सोनी, जिन्होंने यह दुसाध्य कर्म कर दिखाया है, का इस उपन्यास से संबंध लगभग दो दशक पहले शुरु हुआ जब उन्होंने इस पर एक विलक्षण आलोचना लिखी थी (जो कि इस उपन्यास के सबसे कल्पनाशील पठनों में से एक है). अनुवाद-अंश के साथ साथ वह आलोचनात्मक निबंध भी मूल हिन्दी में और अंग्रेजी अनुवाद में प्रकाशित है.

अनुवादक के विषय में यह कहना ज़रूरी लगता है कि उसके लिये अनुवाद ‘कृति के साथ एक नितांत निजी संबंध’ रहा है जिसका प्रमाण यह है कि उसने एडवर्ड सईद और अम्बर्टो इको सरीखे लेखकों की जटिल और अनुवाद-दुर्गम पु्स्तकों (और अनेक उत्तर-आधुनिक चिंतकों के लेखों के) अनुवाद बिना किसी आर्थिक सहयोग की उपलब्धि/प्रत्याशा के किये हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सईद की पु्स्तक रेप्रेजेन्टेशन्स ऑव् द इंटेलैक्चुअल छह वर्ष पूर्व अनूदित हो कर भी अब तक अप्रकाशित है; उम्मीद है उपन्यास की लोकप्रियता के इस स्वर्ण-युग में जब मानो हर कोई (अंग्रेजी) उपन्यास लिख रहा है इस देश में द नेम ऑव् द रोज़ के हिन्दी अवतार की नियति कुछ भिन्न होगी.

करीब पाँच सौ पृष्ठों में फैले उपन्यास को मदन सोनी ने अपने निबंध में पठन और प्रतिपठन के रणक्षेत्र के रूप में कल्पित किया है; यहाँ प्रस्तुत अंश में आप चरम पाठक – ब्रदर विलियम – और चरम प्रतिपाठक – ज्यार्गी – दोनों से रूबरू हो सकते हैं.

The translation of Umberto Eco’s contemporary classic The Name of the Rose is an event in itself and we are very pleased to be able to present you a glimpse of this translation. Madan Soni, the renowned Hindi critic, who has performed this feat, first wrote about the book nearly two decades ago in a piece of criticism that ranks as one of the more imaginative readings of the novel. We are publishing this essay, too, in the original Hindi and in English translation, along with the excerpt from the translation.

It seems necessary here to say that for the translator, translation has always meant ‘a very private relation with the text’ — proof of which lies in the fact that he has translated the work of such complex and difficult-to-translate authors as Edward Said and Umberto Eco (and a number of other post-modern thinkers) without any financial aid or, indeed, any expectations in that direction. It is unfortunate that Said’s book Representations of the Intellectual has been lying translated, yet unpublished, for the last six years. One hopes that at a time which could be called the golden-age of the novel’s popularity, when just about everyone is writing a novel (in English), the fate of this translation of The Name of the Rose might be a little different.

Madan Soni has read the novel as a battleground of reading and anti-reading. In the excerpt we present here, you will encounter both, the ultimate reader – Brother William – and the ultimate anti-reader – Jorge.



दस आधुनिक हंगारी कवि / Ten Modern Hungarian Poets

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गिरधर राठी प्रदर्शनप्रियता के गंभीर और प्रेरक प्रतिवाद हैं. वे हिन्दी में कविता के बहुत सक्षम और प्रभावी अनुवादक रहे हैं. हंगारी कविता से उनका संबंध चालीस बरस पुराना है और मिक्लोश राद्नोती, शांदोर वारोश, यानोश पिलिंस्की, आग्नैश नैमैश नॉज, लास्लो नॉज, फ़ैरेन्त्स युहास, शान्दोर कान्यादी, ग़िजैल्लॉ हैरवाई, ऑलॉदार लास्लोफ़्फ़ी और एवॉ तोथ की कविताओं का हंगारी साहित्य की भारत-स्थित अध्येता मारगित कोवैश के सहयोग से उनके द्वारा अनूदित एक संचयन हाल ही में वाग्देवी प्रकाशन, बीकानेर से पुस्तकाकार आया है – प्रतिलिपि में प्रकाशन की अनुमति देने के लिये हम प्रकाशक दीपचंद साँखला के आभारी हैं.

Girdhar Rathi has been a very capable and effective translator of poetry into Hindi. His relationship with Hungarian poetry goes back 40 years. His translations – done with the co-operation of India-based Hungarian scholar, Margit Koves – of poems by Miklós Radnóti, Sándor Weöres, János Pilinszky, Agnes Nemes Nagy, László Nagy, Ferenc Juhász, Sándor Kányádi, Gizella Hervay, Aladár Lászlóffy and Eva Toth has just been published by Vagdevi Prakashan, Bikaner. Pratilipi is grateful to the publisher, Deepchand Sankhla, for permission to publish them here.



किसी और भूगोल में / In Another Locale

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हिन्दी पत्रकार-कथाकार अनिल यादव की भारत के पूर्वोत्तर की यात्रा कई तरह से विशिष्ट है – यह यात्रा ‘बेमकसद’ (पूर्वोत्तर से रिपोर्टिंग करके उत्तर-भारत के हिन्दी मीडिया में ‘स्टार’ बन जाने की विनम्र महत्वाकांक्षा को छोड़ दिया जाये तो) की गई, यात्रियों की जेबें लगभग खाली थीं और वे उत्तर-पूर्व के बारे में ‘लगभग कुछ नहीं’ जानते थे. वृतांत की यह पहली किस्त वहाँ समाप्त होती है जब यात्री उस देश पहुँचे पहुँचे भर हैं जहाँ ‘हरियाली का विस्फोट’ होता है.

किसी और भूगोल में बनते हुए आख्यानों के इस समुच्चय में इसके अतिरिक्त है भाश्वती का अपने दो अमेरिका प्रवासों के दौरान लिखा हुआ पाठ जो एक ‘इंटैलैक्चुअल डायरी’ की तरह विकसित होता है; चीन-यात्रा की स्मृति की ‘निजी’ प्रतिक्रियाओं का एक तरल जाल बनता हुआ प्रत्यक्षा का मोंताज और वियेना के छोटे कस्बों की विलक्षण मनुष्यहीनता और उनके विलक्षणतर सांस्कृतिक इतिहास को एक डे-बुक की संरचना में लिखता हुआ अशोक पांडे का गद्य.

Hindi journalist/story-writer Anil Yadav’s journey to the North-East of India is special in many ways — the trip was made “aimlessly” (if one discounts the humble ambition of becoming a star in the Hindi media by reporting from the North-East), the traveler’s pockets were almost empty, and he knew “almost nothing” about the North-East. This first installment of his travelogue ends at the point when he has just reached that country where there is an “explosion of greenery”.

Besides this, we have Bhashwati’s “intellectual diary” about her two trips to the USA, Pratyaksha’s montage of memories from her trip to China, and Ashok Pande’s piece, written as a “day-book”, about the astonishing absence of people in the Viennese countryside and the even more astonishing cultural history of the place.



पटनहिया पनरसिया

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ग्रॉफिक गल्प अपेक्षाकृत नयी विधा है संसार की सभी भाषाओं में – भारत में भी ग्रॉफिक गल्प लिखने की कुछ शुरुआतें हुई हैं. प्रतिलिपि में हम भारत के पहले (अंग्रेज़ी) ग्रॉफिक नॉवेलिस्ट सारनाथ बनर्जी के एक उपन्यास का अंश हिन्दी अनुवाद में प्रकाशित कर चुके हैं. यहाँ प्रस्तुत प्रमोद सिंह/नितिन कुशवाहा की ग्रॉफिक कथा इस अर्थ में तो अनूठी है ही कि यह द्विभाषी/बहुभाषी है बल्कि इसलिये भी कि यह ग्रॉफिक गल्प के विधान को देसी अंदाज और विट से अपहृत कर लेती है.

Graphic fiction is a relatively new medium, in all languages — some attempts have been made even in India in this direction. At Pratilipi, we have previously published (in Hindi translation) an excerpt from a novel by India’s first (English) graphic novelist. Here we present a graphic story by Pramod Singh and Nitin Kushwaha. What makes it special is not only that it is bi/multilingual, but also because it injects a dose of “desi” idiom and wit into the form.



एक कविता / Ek Kavita

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इस नये फीचर में सिद्धांततः किसी भी भाषा की किसी भी समय में किसी के भी लिखी हुई किसी एक कविता पर कोई भी लिख सकता है – पहली पेशकश में शामिल हैं वॉलेस स्टीवेंस की कविता द स्नोमैन पर श्रीदला स्वामी, पोलिश कवि एडम ज़गायेवस्की की कविता आग पर गीत चतुर्वेदी, और हिन्दी कवि नवीन सागर की कविता निर्मल वर्मा की किताबें पर गिरिराज किराड़ू की टिप्पणियाँ.

This new feature aims to present a piece of writing about one poem from any time, place, language or poet. In its inaugural run, it features pieces by Sridala Swami on Wallace Stevens’ The Snow Man, Geet Chaturvedi on polish poet Adam Jagajewsky’s Fire and Giriraj Kiradoo on Hindi poet Naveen Sagar’s Nirmal Verma ki Kitaabein.



ओपन डिबेट / Open Debate

फीचर्स / Features

ओपन डिबेट में हर बार एक या अधिक ऐसे पाठ होंगे जिन पर हम पाठकों की प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित और प्रकाशित करेंगे। इसकी शुरूआत हम जिन दो मज़मूनों से कर रहे हैं उनमें से पहला है डी. वेंकट राव का एनाक्रॉनिस्टिक रिफ्लेक्शन्सः ऑव् क्रिटिकल ह्यूमेनिटीज । ज्ञान के आधुनिक/औपनिवेशिक केन्द्र के रूप में ‘यूनिवर्सिटी’ और उसकी दार्शनिक बुनियाद ‘मानववाद’ पर शंका करता हुआ यह निबंध ‘जाति’ पर कथित ‘नेटिव’ प्रतिकथन भी करता है। यूनिवर्सिटी, मानववाद जैसे प्रत्ययों के अतिरिक्त उत्तर-औपनिवेशिक बुद्धिजीवन की कथित छलना/असफलता भी निबंध के निशाने पर है।

दूसरा है हिंदी के आधुनिक महाकवि निराला के उत्तराधिकार पर व्योमेश शुक्ल का निबंध. हिंदी में साहित्यिक उत्तराधिकार बहुत पेचीदा और विवादस्पद मसला रहा है. व्योमेश का निबंध भी, अपनी तरह से, निराला के उत्तराधिकार को लेकर विवाद-सक्षम है.

दोनों मज़मूनों पर लिखित प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित हैं। प्रतिलिपि इस श्रृंखला में प्रकाशित किसी पाठ की, पत्रिका की समस्त सामग्री की ही तरह, प्रवक्ता नहीं है। हम अलोकप्रिय होने का खतरा उठाने और पोलिटिकली करेक्ट मुहावरे से बाहर जा के बोलने के साहस की तारीफ़ जरूर कर सकते हैं और करते हैं।

Open Debate is a new feature wherein we will present one or more texts on which we will invite and publish responses from our readers. We start with two pieces. The first is D. Venkat Rao’s Anachronistic Reflections: Of Critical Humanities. Problematizing the University as a colonial/modern center of knowledge, the piece also takes a supposedly ‘native’ position on a phenomenon like caste.

The other is an essay by Vyomesh Shukla on the great, modern, Hindi poet Nirala. The question of legacy, especially in Hindi Literature, is a very complex and controversial issue. Vyomesh’s essay, in its own way, adds to the debate about Nirala’s legacy.

We invite responses from our readers on both texts. Like every other text in the magazine, the texts presented here do not necessarily represent Pratilipi’s views. We do, however, applaud the courage of authors who take the risk of speaking in an idiom that may not be politically correct, or the risk of becoming unpopular.



किताबत / Kitabat

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किताबत के इस संस्करण में गैब्रिएल गार्सिया मार्क्वेज़ के उपन्यास माय मेलॅन्कलि व्होर्स पर तेजी ग्रोवर; हॉर्पर कालिंस इंडिया द्वारा पुनर्प्रकाशन के अवसर पर हिन्दी कवि-कथाकार ज्योत्सना मिलन के उपन्यास अ अस्तु का पर प्रत्यक्षा; और शरतचंद्र के क्लैसिक बांगला उपन्यास देवदास पर गिरिराज किराड़ू का निबंध.

This issue of Kitabat features Teji Grover on Garcia Marquez’s Memories of my Melancholy Whores; Pratyaksha on Jyotsna Milan’s novel A Astu Ka on the occasion of its reissue by Harper Collins India; and Giriraj Kiradoo on Sharat Chandra’s classic Bengali novelDevdas.



लोक-प्रिय / Lok-Priy

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लोक-प्रिय में इस बार का खास आकर्षण है शरतचंद्र के मिथकीय उपन्यास देवदास का हिन्दी अनुवाद में एक अंश। मूल बांग्ला से यह ताज़ा अनुवाद चर्चित युवा हिन्दी कथाकार कुणाल सिंह कर रहे हैं और उन्होंने जहाँ तहाँ कुछ सृजनात्मक रूपान्तरण भी किया है।

इसके अतिरक्त है भूतनाथ की कहानी सावन आये या ना आये जिसमें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का समकालीन परिसर ययाति और पुरुरवा, देवयानी और शर्मिष्ठा की पौराणिक-मिथकीय छायाओं से घिर जाता है और फिल्म अभिनेता, गीतकार, संगीतकार और स्क्रीन राईटर पीयूष मिश्रा से वरूण ग्रोवर की बातचीत खुद उन्हीं के अंग्रेज़ी अनुवाद में.

The main attraction of this edition of Lok-priy is an excerpt from a new translation of Sharat Chandra’s iconic novel Devdas by the young Hindi writer Kunal Singh.

Besides this, we also have the story Saavan Aaye ya na Aaye by Bhootnath, in which the shades of the mythic characters Yayati, Pururava, Devyani and Sharmishtha gather in the contemporary campus of Benaras Hindu University, and Varun’s interview (translated into English) with actor/screenwriter/lyricist/music-director Piyush Mishra.