अनिल यादव का उत्तर-पूर्व वृतांत, इस बार, ट्रेन छोड़कर अपने ‘विषय’ के भूगोल में प्रवेश करता है. पूर्वोत्तर का यह एक निराला आख्यान है, यह मानते हुए कि पूर्वोत्तर के बारे में , जैसे कि कमोबेश हर चीज़ के बारे में, एक आख्यान, एक संस्करण ही संभव है. आख्याता के पत्रकार-आत्म और कथाकार-आत्म के बीच एक लगभग न दिखाई देने वाली तकरार और उनके अक्सर दिखने वाले सहकार से यह ऐसा पाठ बन गया है जो स्थान से प्रभावित होने के बजाय, उसे अपने स्वभाव से प्रभावित करता है.
‘पाकिस्तान’ भारत में एक शब्द, एक स्मृति, एक इतिहास, एक वर्तमान, एक अवधारणा, एक ‘विचारधारा’, एक ‘अतरंग शत्रु’, एक रकीब है – एक तरह का मॉन्सट्रस संकेतक. उसकी बहुत सारी छविया रही हैं हालँकि बहुत तेजी से वह ‘एक छवि’ में स्थिर हो रहा है/ किया जा रहा है. मध्यवर्गीय राष्ट्रवाद के लिये वह भारत की स्थायी आत्मपरिभाषा है. यह दुखद है कि सरहद के दोनों तरफ ‘भारत’ और ‘पाकिस्तान’ इन दोनों प्रत्ययों का एक संकेतन ‘विभाजन’ लगभग विस्मृति के कगार पर है. यह भी भुलाया अधिक जा रहा है कि दोनों तरफ बहुत कुछ एक जैसा हैः गरीबी, ‘संस्कृति’, एक दूसरे से घृणा, और सब कुछ के बावजूद दोस्ती की कामना जो तमाम राजनय के परे एक संभावना ही नहीं सचाई भी है. हिन्दी कवि प्रेमचंद गाँधी की दूसरी पाकिस्तान यात्रा का वृतांत इसी कामना और इसकी सचाई के नाम है.
फीचर की अंतिम पेशकश है निताशा कौल का विजुअल निबंध जो कई शहरों और महाद्वीपों के आरपार शहरी जीवन के एक लगभग अलक्षित विवरण/हरकत भावहीन निष्क्रियता/गतिहीनता – (Im) passivity- को कैमरे से पकड़ने की कोशिश करता है.
Anil Yadav’s North-East journey now leaves the train compartment and enters the geography of its subject. It evolves as a unique North-East narrative given that, like most things, North-East too, is available only as narratives/versions. The almost invisible friction and the ever so visible solidarity between the journalist and the storyteller selves of the narrator make this a text in which, unlike most travelogues, the place is transformed by the narrative self and not the other way round.
Pakistan, in India, is a ‘word’, a ‘memory’, a ‘history’, a ‘present’, a ‘hypothesis’, an ‘ideology’, an ‘intimate enemy’, a ‘raqeeb’- almost a monstrous signifier. It has had various manifestations but is constantly being reduced to a singular image. For the middle class nationalism, it’s the ultimate self-definition of India. It is sad that, on both sides of the border, ‘partition’ as the original/defining signification of ‘India’ and ‘Pakistan’ is drifting into oblivion. Also drifting into oblivion is the fact that there is a lot common on both sides: poverty, ‘culture’, hatred for each other and despite all this a genuine longing for friendship beyond diplomacy. Hindi poet Prem Chand Gandhi’s account of his second trip to Pakistan celebrates both the longing and its truth.
The final text in the feature is a visual essay by Nitasha Kaul that covers many cities across continents and tries to capture, through a camera, one of the least noticed attributes of city life: im-passivity.