आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

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एक कविता III / Ek Kavita III

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एक कविता में इस बार असीम कौल लिख रहे हैं लेजेंडरी ग्रीक स्त्री कवि सैफो पर, गीत चतुर्वेदी मिवोश की दुनिया के ख़त्म होने के दिन का गीत पर, और गिरिराज किराड़ू हिन्दी कवि अशोक वाजपेयी की थोड़ा-सा पर और.

This edition of Ek Kavita has Aseem Kaul on legendary Greek poet Sappho, Geet Chaturvedi on Milosz’s Song on the End of the World, and Giriraj Kiradoo on Ashok Vajpeyi’s Thoda-sa.



किताबत V / Kitabat V

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In the fifth edition of Kitabat, we have Stefan Jonsson on Lars Andersson’s novel Vägen till Gondwana, Shirish Kumar Maurya on young Hindi poet Hare Prakash Upadhyay’s debut collection Khiladi Dost aur Anya Kavitayen and Aniruddh Umath’s exceptional piece on Nirmal Verma’s latest book Chitthiyon ke Din, which also reads like a unique tribute to Nirmal Verma.

किताबत के पाँचवे संस्करण में शामिल है लार्श एंडरसन के उपन्यास वायेन टिल गोंडवाना पर स्तेफान यॉनसन और युवा हिन्दी कवि हरे प्रकाश उपाध्याय के पहले कविता संग्रह खिलाड़ी दोस्त और अन्य कवितायें पर शिरीष कुमार मौर्य के निबंध और निर्मल वर्मा की नयी किताब चिठ्ठियों के दिन पर अनिरूद्ध उमट का गद्य जो खुद निर्मल के लिये एक अनोखे ट्रिब्यूट की तरह भी पढ़ा जा सकता है.



लोक-प्रिय VI / Lok-Priya VI

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लोक-प्रिय में पेश-ए-खिदमत है मुकुल केशवन की एक और बेहतरीन कविता, बॉलीवुड निर्देशक इम्तियाज़ अली से प्रभात रंजन की बातचीत और हिन्दी फिल्मों की बेमिसाल अदाकारा मीना कुमारी की शायरी नुरूल हसन के अंग्रेजी अनुवाद में.

In this edition of Lok-Priya: Another poem by Mukul Kesavan, Prabhat Ranjan’s interview with Bollywood director Imtiaz Ali, and Noorul Hasan’s English translations of actress Meena Kumari’s shayari.



30 कवि 1 पुरस्कार / 30 Poets 1 Award

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हिन्दी में युवा कविता के लिये प्रतिवर्ष दिया जाने वाला भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार किसी भी भाषा में अनूठा है. 1979 में कवि की स्मृति में उनके परिवार द्वारा स्थापित इस पुरस्कार के लिये वर्ष की श्रेष्ठ कविता का चयन पाँच निर्णायकों में से एक करता है. पाँचों निर्णयों के बाद हर पाँचवें वर्ष एक समारोह होता है. बहुत-से महत्वपूर्ण कवियों के काम की तरफ इस पुरस्कार ने ही ध्यानाकर्षण किया है. तीस वर्ष पूरे होने के मौके पर राजकमल प्रकाशन ने ऊर्वर प्रदेश नामक पुस्तक पुरस्कार संयोजक प्रोफेसर अन्विता अब्बी के संपादन में प्रकाशित की है.

यहाँ प्रस्तुत है पिछले पाँच पुरस्कृत कवियों यतीन्द्र मिश्र, जीतेन्द्र श्रीवास्तव, गीत चतुर्वेदी, निशांत और मनोज कुमार झा की नयी कवितायें; 2009 के पुरस्कृत कवि मनोज कुमार झा का अपनी कविता-प्रक्रिया पर और गीत चतुर्वेदी का हिन्दी के वर्तमान कविता दृश्य पर निबंध.

Bharat Bhushan Agrawal Smriti Puruskar, an annual award for young Hindi poets, is one of its kind in any language. The award, established in memory of the poet by his family in 1979 is given to a published poem considered to be the best of the year by one of the five adjudicators. An award ceremony is held every five years. Many of the significant poets found first attention through this award. On completion of thirty years of this award, Rajkamal Prakashan has come out with a book, Urvar Pradesh edited by Professor Anvita Abbi, coordinator of the award.

We bring you fresh poems by the last five awardees: Yatindra Misra, Jitendra Srivastava, Geet Chaturvedi, Nishant and Manoj Kumar Jha; and texts by Geet Chaturvedi on contemporary Hindi poetry scene and Manoj Kumar Jha (2009) on his background and early poetic adventures.



शक्कर के पाँच दाने / Five Grains of Sugar

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अर्शिया सत्तार के अंग्रजी अनुवाद और मूल हिन्दी में प्रकाशित मानव कौल का नाटक शक्कर के पाँच दाने कई कारणों से पढ़ा जा सकता हैः इसके ‘नायक’ के नाम से हिन्दी कविताओं की किताब प्रकाशित है जिसमें शामिल कविताएँ उसके नहीं लिखी हुई है; उसका एक दोस्त जिस विदेशी भगवान की पूजा करता है उसका नाम ब्रूस ली है और गाँधीजी से मिल चुका राधे है जिसे गाँधी कहते हैं ‘अब मैं बहुत थक गया हूँ, अब तुम गाँधी बन जाओ’. राधे के सपने में आने वाले गाँधी भी एक पात्र हैं, उनकी मूर्ति पर एक सुबह बैठा कबूतर वही कबूतर है जिसका रूप घर कर गाँधी राधे के सपने से उड़ गये थे. अगर इतने सारे कारण नाटक पढ़ने के लिये पर्याप्त या गंभीर या पर्याप्त गंभीर ना जान पड़े तो आपको अपने बारें में गंभीरता से सोचने की पूरी आज़ादी है.

हिन्दी कवि, नाटककार और गाँधीवादी विचारक नंदकिशोर आचार्य से गिरिराज किराड़ू की बातचीत उनके नाटकों पर एकाग्र है और उनकी कु़छ प्रमुख थीमों जैसे व्यक्ति और सत्ता के संबंधों की समस्यात्मकता, स्त्री की पहचान और लेखन के एक बुनियादी मूल्य के रूप में मानवीय स्वतंत्रता पर फोकस करती है.

There are many seriously good reasons for reading Manav Kaul’s play Shakkar ke Paanch Daane published here in Arshiya Sattar’s English translation along with the Hindi original: the ‘hero’ has published a book of poetry but the poems are not his, one of his friends worships a foreign God called Bruce Lee, and Radhe to whom Gandhi says ‘Radhe, I am very tired. Now you become Gandhi’. Gandhi of Radhe’s dreams is also a character, a pigeon sitting on his statue is the one that Gandhi will change into and fly out of Radhe’s dream. If so many seriously good reasons do not seem serious, enough or serious enough then you are free to think seriously about yourself.

Exploring the Sakshi Bhava: Giriraj Kiradoo’s conversation with Hindi poet, playwright and Gandhian thinker Nand Kishore Acharya is focused on his plays and some of their recurrent themes: the problematics of individual-power relationship, identity of women and human freedom as a fundamental value in writing.



9 मलयाली कवि / 9 Malayalam Poets

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संतोष एलेक्स के हिन्दी/ अंग्रेजी अनुवाद में आठ मलयाली कवियों – पवित्रन तीकूनी, पी .रामन, ए. अयप्पन, पी.पी. रामचंद्रन, वी.एम. गिरिजा, पी. एन .गोपनीकृष्णन, एस. जोसफ और संतोष एलेक्स – की कविताएँ हम इस उम्मीद से प्रकाशित कर रहे हैं कि ये कविताएँ मलयाली कविता के उपलब्ध अनुभव और उसके प्रति उत्सुकता का कुछ विस्तार करेंगी.

हमें बहुत खुशी है कि इसी अंक में अन्यत्र कई दशको से मलयाली और भारतीय कविता का राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय चेहरा रहे के. सच्चिदानंदन की कविताएँ भी स्वयं कवि के अंग्रेजी अनुवाद में प्रकाशित हैं.

We publish Santosh Alex’s Hindi/English translations of eight Malayalam poets – Pavithran Tikuni, P.Raman, A. Ayappan, P.P.Ramchandran, V.M. Girija, P.N.Gopnikrishnan, S. Joseph and Santosh Alex – with hope that they add to our experience of Malayalam poetry.

We are extremely happy to have in this issue, self-translated poems by K.Satchidanandan, a truly international face of Malayalam/Indian poetry for many years.



रेत में नहाया है मन: In Memory of Harish Bhadani

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हरीश भादाणी उस तरह के कवियों में से थे जिनसे सीखने के लिए ज़रूरी था उनसे जिरह करना. वे हिंदी के अप्रतिम गीतकार थे और बावजूद अच्छी ‘आधुनिक’ कविता लिखने के इस ‘जनकवि’ की जन-छवि और आत्म-छवि यही रही. उनसे जिरह किये बिना यह जान पाना असंभव होता कि बहुत सारी कविता की आधुनिकता सिर्फ छपाई की, ‘दिखाई देने वाली’ आधुनिकता है. वे गीत की आधुनिक ही नहीं आदिम विकलताओं के भी कवि थे. उनसे कविता सुनना, सैकडों की भीड़ में या किसी मित्र के घर के आँगन में, उनसे प्रेम पाने का ही एक ढंग था.

उनसे प्रेम पाने के लिए कुछ नहीं करना पड़ता था.

यहाँ प्रस्तुत है उनकी आवाज़ में उनके कई गीतों/कविताओं का एक खज़ाना जो उनके सबसे प्रिय मित्रों में से एक शिव कुमार गाँधी ने अपने घर पे रिकार्ड किया था.

Harish Bhadani was one of those poets you have to fight with in order to learn from. He was a unique, fabulous ‘geetkaar’. And despite writing excellent ‘modern’ poems, the public image, and the self-image, of this ‘Jankavi’ (‘poet of the people’) remained that of a ‘geetkaar’. Without fighting with him, it was impossible to realize that the modernity of many poems is only of a ‘visual’ kind – of the way they are printed. He was a poet not only of the modern possibilities of ‘geet’, but also of its primitive anxieties. To listen to him read/sing in a crowd of hundreds, or in the courtyard of a friend, was one way of getting his love.

To get love from him – you didn’t need to do much.

We present here a treasure of his recordings, done by one of his most beloved friends, Shiv Kumar Gandhi.



किसी और भूगोल में II / In Another Locale II

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अनिल यादव का उत्तर-पूर्व वृतांत, इस बार, ट्रेन छोड़कर अपने ‘विषय’ के भूगोल में प्रवेश करता है. पूर्वोत्तर का यह एक निराला आख्यान है, यह मानते हुए कि पूर्वोत्तर के बारे में , जैसे कि कमोबेश हर चीज़ के बारे में, एक आख्यान, एक संस्करण ही संभव है. आख्याता के पत्रकार-आत्म और कथाकार-आत्म के बीच एक लगभग न दिखाई देने वाली तकरार और उनके अक्सर दिखने वाले सहकार से यह ऐसा पाठ बन गया है जो स्थान से प्रभावित होने के बजाय, उसे अपने स्वभाव से प्रभावित करता है.

‘पाकिस्तान’ भारत में एक शब्द, एक स्मृति, एक इतिहास, एक वर्तमान, एक अवधारणा, एक ‘विचारधारा’, एक ‘अतरंग शत्रु’, एक रकीब है – एक तरह का मॉन्सट्रस संकेतक. उसकी बहुत सारी छविया रही हैं हालँकि बहुत तेजी से वह ‘एक छवि’ में स्थिर हो रहा है/ किया जा रहा है. मध्यवर्गीय राष्ट्रवाद के लिये वह भारत की स्थायी आत्मपरिभाषा है. यह दुखद है कि सरहद के दोनों तरफ ‘भारत’ और ‘पाकिस्तान’ इन दोनों प्रत्ययों का एक संकेतन ‘विभाजन’ लगभग विस्मृति के कगार पर है. यह भी भुलाया अधिक जा रहा है कि दोनों तरफ बहुत कुछ एक जैसा हैः गरीबी, ‘संस्कृति’, एक दूसरे से घृणा, और सब कुछ के बावजूद दोस्ती की कामना जो तमाम राजनय के परे एक संभावना ही नहीं सचाई भी है. हिन्दी कवि प्रेमचंद गाँधी की दूसरी पाकिस्तान यात्रा का वृतांत इसी कामना और इसकी सचाई के नाम है.

फीचर की अंतिम पेशकश है निताशा कौल का विजुअल निबंध जो कई शहरों और महाद्वीपों के आरपार शहरी जीवन के एक लगभग अलक्षित विवरण/हरकत भावहीन निष्क्रियता/गतिहीनता – (Im) passivity- को कैमरे से पकड़ने की कोशिश करता है.

Anil Yadav’s North-East journey now leaves the train compartment and enters the geography of its subject. It evolves as a unique North-East narrative given that, like most things, North-East too, is available only as narratives/versions. The almost invisible friction and the ever so visible solidarity between the journalist and the storyteller selves of the narrator make this a text in which, unlike most travelogues, the place is transformed by the narrative self and not the other way round.

Pakistan, in India, is a ‘word’, a ‘memory’, a ‘history’, a ‘present’, a ‘hypothesis’, an ‘ideology’, an ‘intimate enemy’, a ‘raqeeb’- almost a monstrous signifier. It has had various manifestations but is constantly being reduced to a singular image. For the middle class nationalism, it’s the ultimate self-definition of India. It is sad that, on both sides of the border, ‘partition’ as the original/defining signification of ‘India’ and ‘Pakistan’ is drifting into oblivion. Also drifting into oblivion is the fact that there is a lot common on both sides: poverty, ‘culture’, hatred for each other and despite all this a genuine longing for friendship beyond diplomacy. Hindi poet Prem Chand Gandhi’s account of his second trip to Pakistan celebrates both the longing and its truth.

The final text in the feature is a visual essay by Nitasha Kaul that covers many cities across continents and tries to capture, through a camera, one of the least noticed attributes of city life: im-passivity.



ओपन डिबेट II / Open Debate II

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इस बार प्रस्तुत है इतिहासकार रामचंद्र गुहा का व्याख्यान द राईज एंड फॉल ऑव द बायलिंगुअल इंटेलैक्चुअल, प्रेमचंद गाँधी के हिंदी अनुवाद में. गुहा का यह लेख इस तथ्य की एक व्याख्या करता है कि कैसे भारत में 1920-1970 के बीच राजनीति, समाज विज्ञानों, कला और साहित्य में द्विभाषी बुद्धिजीवियों की एक मजबूत, लगभग केन्द्रीय भूमिका के बाद हाल के वर्षों मे जब कामचालऊ द्विभाषियों की संख्या लगातार बढ़ी है, बौद्धिक और संवेदनात्क द्विभाषीयता का क्षरण हुआ है. उनके अनुसार द्विभाषीयता के क्षरण के परिणामों में उच्चस्तरीय ज्ञानोत्पादन में कमी के के साथ साथ समाज में कट्टरता का मजबूत होना भी शामिल है. उन्होंने इस क्षरण के विभिन्न कारणों पर भी विचार किया है.

आपकी लिखित प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित हैं. इसके लिये कोई निश्चित अंतिम तिथि नहीं है, ओपन डिबेट I में प्रकाशित डी. वेंकट राव और व्योमेश शुक्ल के निबंधों पर भी प्रतिक्रियाएँ भेजी जा सकती हैं.

The Rise and Fall of the Bilingual Intellectual, a lecture by historian Ramchandra Guha, in Premchand Gandhi’s Hindi translation, is open for debate. The lecture attempts an interpretation of how bilingual intellectuals who played a central/pivotal role in politics, social sciences, art and literature during 1920-1970 hardly have any competent successors now; how intellectual and emotional bilingualism has gradually become rare, parallel to a phenomenal increase in functional bilingualism. A marked downfall in high quality knowledge production and growing intolerance in society may well be outcome of this decline, Guha suggests.

Your comments and responses are welcome; we’ll publish them in the next issue(s). You can also send in your comments on the inaugural Open Debate essays by D. Venkat Rao and Vyomesh Shukla.



एक कविता II / Ek Kavita II

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एक कविता में इस बार दो वरिष्ठ हिन्दी कवियों विष्णु खरे और विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं और एक अमेरिकी कवि की कविता के पठन शामिल हैं – विष्णु खरे की जो मार खा रोई नहीं का गीत चतुर्वेदी, मेरिलिन ज़ुकरमन की वीमन वाशिंग क्लॉथ्स इन द काबुल रिवर का भारत भूषण तिवारी और विनोद कुमार शुक्ल की पानी गिर रहा है का गिरिराज किराड़ू द्वारा.

Readings of poems by two veteran Hindi poets Vishnu Khare and Vinod Kumar Shukla and an American poet make this edition of Ek Kavita: Geet Chaturvedi on Vishnu Khare’s Jo Maar Kha Roi Nahi, Bharatbhooshan Tiwari on Marilyn Zuckerman’s Women Washing Clothes in the Kabul River, and Giriraj Kiradoo on Vinod Kumar Shukla’s Paani gir raha hai.