आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

सम्पादकीय / Editorial

वादाखिलाफ़ी / A Lost Wager?

सम्पादकीय / Editorial

संपादकीय, दिसंबर २०१२

Editorial for December 2012



नवम्बर २०११ / November 2011

सम्पादकीय / Editorial

संपादकीय, नवम्बर २०११.

Editorial for November 2011.



मार्च + जून २०१० / March + June 2010

सम्पादकीय / Editorial

अपर्याप्तताएँ और एक सच्चा अन्य.

Insufficiencies and a True Other.



दिसम्बर २००९ / December 2009

सम्पादकीय / Editorial

भारत के ‘नये साम्यवाद’ के बारे में एक अनुमानवादी सम्पादकीय

A Speculative Editorial about India’s “New Communism”



सितम्बर २००९ / September 2009

सम्पादकीय / Editorial

अनुवाद, और हिंसा.

Translation, and Violence.



पै तमाशा न हुआ / The Circus That Never Comes

सम्पादकीय / Editorial

सम्पादकीय, जून २००९.

Editorial, June 2009.



मार्च २००९ / March 2009

सम्पादकीय / Editorial

एक संकेत के रूप में ‘आतंक’ को,उसके ‘अर्थ’ को, संभवतः, ‘हमारे समय’ में, उसे धारण और अतिव्याप्त करने वाले प्रत्यय (“वाद”) के संसर्ग से ही, संकेतन से ही समझा जा सकता है और उस पर कोई भी (प्र-)वचन सदैव उस संकेतन या संसर्ग की विधि से, उसके कूटों में ही संभव है; कि वह एक ‘वाद’, ‘एक अनुष्ठान’, एक नज़ारा (Spectacle), एक ‘संघटना’, एक ‘प्रति-वचन’ ‘प्रति-शोध’ है – यह वो प्रदत्त सिमेण्टिक पर्यावरण है जिसमें ही आतंक के बारे में कुछ (भी) कहा जा सकना संभव है मानो. समूचा ‘विमर्श’ एक कर्ता- विमर्श है; जो इस कर्म के लक्ष्य हैं वे इसमें या नहीं हैं, अदृश्य हैं, मौन हैं या ‘सज्जा’ हैं – एक बलात् विषयांतर. वे ‘त्रासदी’ की वर्षगांठों के अनुष्ठान में अंकित हो गये हैं […]

The sign of terror and its ‘meaning’ are not readable in ‘our times’ except with the suffix ‘ism’ that has ‘effectively’ taken it over. Any discourse on terror is possible only when dictated by that suffix and its controlled significations/codes, and that terror is an ‘ism’, is a ‘ritual’, a ‘spectacle’, a ‘phenomenon’, a counter-discourse, a revenge – this is the given semantic environment in which saying some/anything about terror seems to possible. It’s the discourse of the doer. Those who are its target(s) are either not there, or invisible, or mute, or (at worst) an ‘exhibit’ – a forced digression. The victims are the permanent showpieces in the rituals of ‘tragedy’. […]



दिसम्बर 2008 / December 2008

सम्पादकीय / Editorial

Before Terror and Before Translation.

आतंक और अनुवाद के सम्मुख.



बाबेल से पहले / Before Babel

सम्पादकीय / Editorial

Editorial for October 2008
अक्टूबर २००८ का सम्पादकीय



अगस्त 2008 / August 2008

सम्पादकीय / Editorial

इतिहास, कविता और आतंक.

History, Poetry and Terror.