आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

गुमने की जगह / A Place to Get Lost In

इस फीचर की हिन्दी कहानियाँ में जगहों के साथ विलगाव के कई रूप हैं. यह वि-लगाव लेकिन इतना सघन है कि विडंबनात्मक आत्मीयता में बदल जाता है. प्रभुनारायण वर्मा की कहानी में यह जगह एक छोटे कस्बे का टाउन हॉल है जिसकी बरबाद इमारत में संगीत सम्मेलन हो रहा है; अजय मिश्र के उपन्यास अंश में यह जीवनवृतात्मक फ्रेम से दिखता हुआ निकट अतीत का लखनऊ है; रवीन्द्र आरोही की कहानी में दिल्ली-जैसा न होने के ख़याल में रहता हुआ एक और महानगर कोलकाता है; रामकुमार तिवारी की कहानी में ऐसा कस्बा जिसमें पात्र हर हफ़्ते अड़सठ किलोमीटर साईकिल चलाते हैं; अनिल यादव के किस्से में ऐसा देश जिसमें पिल्ले चोरी करने वाला जिस समाजसेवक स्त्री के पिल्ले चुरायें हैं उसके साथ शादी करके पिल्लों का कारोबार शुरु करता है; महेश वर्मा की झूठ  में यह श्रीलंका में भारतीय शांतिसैनिकों के साथ रहे एक भूतपूर्व डॉक्टर के लिये अपने अतीत की हिंसा और अपराधबोध से भागने के लिये शरण्य बन गया उत्तर भारत है; श्याम अनिवाश की छोटी कहानियों में यह समय के छोटे टुकड़ों में ठहरा हुआ भीतर का स्पेस है; भूतनाथ की यत्र नार्यस्तु पूज्यंते में ऐसा घर जिसमें कोई ‘अर्थात’ का अर्थ नहीं जानता; हरे प्रकाश उपाध्याय और रामकुमार सिंह के यहाँ वह जटिल संरचना जिसे भारतीय गाँव कहते हैं; वरूण ग्रोवर के यहाँ एक कमरा जहाँ स्क्रीन टेस्ट देने आये उम्मीदवार असफलता की अपनी आशंका से जूझते हैं; अशोक कुमार पांडेय की कहानी में एक ‘कम्यून’ जिसमें आप संसार बदलने के सपने के साथ दाखिल होते हैं लेकिन जो अंततः एक विराट दुस्स्वप्न में बदल जाता है; अरूण देव के गल्प में काशी की ओर लौटती ट्रेन के शयनयान के अपर बर्थ और सरहद पार के नज़रबंद शायर की कैद है; और आशुतोष भारद्वाज के उपन्यास अंश में ‘अबूझमाड़’ जहाँ एक हादसे के शिकार कई ‘सभ्यता-विशेषज्ञों’ की नृतत्वशास्त्री दिलचस्पियों और छुपी हुई परवर्ट कामनाओं का सामना सभ्यता के नक्शे के बाहर रहे रहे लोगों और नक्सल क्रांतिकारियों से होता है.

इसके समांतर चंदन पाँडे की रूपक-कथा में यह लोककथाओं-जैसा एक नगर-देश है जो जो हर लोक-कथा के नगर-देश की तरह समकालीन भी है, सनातन भी; जिसके चालीस ‘चोर’ अपनी प्राचीन कथा के अलीबाबा से दूर एक दूसरे देशकाल में एक कोतवाल की बीवी का ‘एक’ गहना चुराने के आरोप में मुज़रिम हैं.

जगह के साथ आत्मीयता का सबसे अनोखा आविष्कार लेकिन वरिष्ठ कवि-कथाकार कुमार अम्बुज की कहानी में है जिसमें यह संसार हर शै पर हर वक़्त इतना प्रकट है, हर चीज़ उसकी निगरानी में हर समय इतनी उजागर है कि उससे आत्मीयता का संबंध सिर्फ़ वहीं बन सकता है जहाँ वो आपको गुम हो जाने मोहलत की दे.

These Hindi stories deal with displacement in its many forms. This displacement, though, is so intense that it turns into an ironic intimacy. The place (from which this displacement occurs) is, in Prabhu Narayan Verma’s story, the dilapidated Town Hall in a small town where a musical program is being held; in the excerpt from Ajay Mishra’s novel it is the Lucknow of the recent past, seen from a biographical frame; in Ravindra Aarohi’s story it is the trying-to-not-be-Delhi metropolis of Calcutta; in Ramkumar Tiwari’s story, a town where characters cycle 68 kilometres once every week; in Anil Yadav’s story, a country in which a puppy-thief marries the woman he stole from and starts the business of selling pups; in Mahesh Verma’s Jhooth, it is North India, which has become refuge for a doctor on the run from the violence and guilt of his past with the Indian peacekeepers in Sri Lanka; it is the inner space locked inside shards of time, in Shyam Avinash’s stories; a house where no one knows the meaning of “meaning” in Bhootnath’s story; in Hare Prakash Upadhyay and Ramkumar Singh it is the complex structure also known as the Indian village; in Varun’s story, that room where screen-test hopefuls wrestle with their fear of failure; in Ashok Kumar Pandey, a commune where you enter with dreams of changing the world which soon turn into a nightmare; in Arun Dev’s story, the upper berth of a train heading to Benares and the prison-cell of a jailed poet across the border; in the excerpt from Ashutosh Bhardwaj’s novel, it is Abujhamad where the interests and desires of civilizational-experts crash into Naxal revolutionaries and a people living outside the map of civilization.

Alongside these, it is a city/country in Chandan Pandey’s parable – which, like all cities/countries of parable, is both current and eternal – where forty thieves, far from the Ali Baba of lore, are now in prison for having stolen ‘one’ bauble from a policeman’s wife.

But the most unique discovery of intimacy with place comes in Kumar Ambuj’s story where the world is so present in every action, in every moment, where every object shows up so clearly under its gaze, that the only place where you can forge an intimacy with it is a place that you can get lost in.

Click to Read

उड़ गये फुलवा रह गर्इ बास (उपन्यास अंश): अजय मिश्र

गुमने की जगह: कुमार अम्बुज

संगीत सम्मेलन: प्रभु नारायण वर्मा

वीराने का कोतवाल: चंदन पाँडेय

देशकाल: रामकुमार तिवारी

बिआह की पढ़ाई (उपन्यास अंश): हरे प्रकाश उपाध्याय

कहानी की चाभी: आशुतोष भारद्वाज

बारिश की रात छुट्टी की रात: रविन्द्र आरोही

झूठ: महेश वर्मा

कारपोरेट इंडिया: अनिल यादव

यह एक निवाले की इच्छा थी चील की नहीं: अरुण देव

और कितने यौवन चाहिए युयुत्सु: अशोक कुमार पाँडे

गिलहरी: रामकुमार सिंह

तीन कहानियाँ: श्याम अविनाश

उस पार: वरुण ग्रोवर

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते: भूतनाथ

Tags:

Leave Comment