आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

तीन कहानियाँ: श्याम अविनाश

सिलसिला

बहुत बैचेन था वह, रात घुटी-घुटी सी लग रही थी. नींद की दवा के पीछे हलका सांवला धुंधलका ठहर गया था. बॉयोटेक में एडमिशन के लिए अयन कल हैदराबाद जा रहा है. सब कुछ तय हो गया है. पर वह खुद डरा हुआ और व्याकुल है. उसके सामने अपने कॉलेज के दिन फड़फड़ा रहे हैं. तब वह फाईनल में था, हॉस्टल में रहता था. तीन नये लड़कों ने हॉस्टल में दाखिला लिया था. अपने दोस्तों के साथ उसने काफी बदतमीज़ी के साथ उन्हें खूब रगड़ा था. मामला तूल पकड़ गया था. पुलिस केस की नौबत आ गई थी, वह भाग कर घर चला आया. पता नहीं कैसे पिताजी को पता चल गया था. रात को वे उसके पास आए थे. उनके चेहरे पर अजीब एक उदास क्षोभ था और एक धिक्कार, तुम लोगों ने यह किया. वे तो तुम्हारे छोटे भाइयों से होते हैं, तुम्हें तो देखना चाहिए उंन्हें कोई दिक्कत न हो – उनमें क्या क्रियेटिविटी है, उनमे ख़ासियत क्या है, उसे कैसे फैलाया बढ़ाया जा सकता है. और बजाय इसके तुम उन्हें सताते हो-तवारूफ़ का यह तरीका कहां से आ गया…. वे चले गये थे, उनकी आँखों का धिक्कार ठहर गया था. परिचय का एक दूसरा तरीका भी हो सकता था, उसका एक अलग सुख हो सकता था. जिसे उसने खो दिया था. सामूहिकता का अपना एक अहंकार होता है उसकी ताकत को व्यक्ति अपनी ताकत समझ लेता है. अयन के साथ क्या होगा? वह जानता है क्या होने को संभावना है. कुछ गलतियां शायद जिन्दगी भर साथ चलती हैं- उसने सोचा कम से कम अयन को वह समझायेगा-वह उसे आगे न बढ़ाये… इस सिलसिले को….

वह बाहर बरामदे में आ गया. रेलिंग से चेहरा सटा लिया- दूर पेड़ों का अंधेरा झुटमुट असपष्ट-सा दिखाई दे रहा था.

इलाज

पत्नी बहुत दुबली और सांवली-सी निकल आई-दिन भर घर में खटते-धुएँ और बच्चों के बीच बदहवास होते हुए. रात के पुरमपट उतर आने के बाद वह खांसने लगती. दिन में तो पता नहीं चलता रात होते ही खांसी बाहर आ बैठती अपने काली परछाई लिए. पति ने उसके ललाट पर हाथ रखा-बुखार नहीं था. वह खांस भी रही थी, खांसी को दबा भी रही थी. कल डॉक्टर को दिखाना होगा-खांसी बहुत है, पति ने सोचा. पत्नी को बार-बार उठना पड़ रहा था. थकान के बीच उठना और खांसना उसे बहुत भारी लग रहा था. वह बेहाल हो रही थी और खुद को कोसने का भाव उसके मुंह पर चिलक रहा था. डॉक्टर के बारे में बाद में सोचेंगे, पहले वह इसके लिए कफ़-सिरप लेकर आयेगा. कफ़ सिरप उसे खुद बहुत पसंद है. गाढ़ा सिरप मुंह से उतारो तो मुंह का स्वाद कैसा ही हो जाता है, यह कैसा स्वाद उसे बाद में अच्छा लगता. कफ़ सिरप पीने के बाद तुरंत जरा सी जो राहत मिलती है-वह कितनी बड़ी होती है. दूसरे दिन घर लौटते हुए वह कफ़ सिरप की शीशी ले आया. उसने डिब्बे से शीशी निकाली-शीशी छोटी और साफ़-सुथरी थी. उसे अच्छी लगी. उसने उसे छोटी मेज़ पर रखा. आकर बिस्तर पर बैठ गया और गर्दन घुमा कर उसे देखा-शीशी वहां रखी थी और दूर से भी अच्छी लग रही थी. रात को सोने के पहले उसने पत्नी से कहा कफ़ सिरप ले लो. कफ़ सिरप का अपना अंग्रेजी उच्चारण उसे खुद अच्छा लगा. शीशी उठा, ढक्कन घुमाकर उसने उसे कट्-कट् खोल दिया. पत्नी ने उसके हाथ से शीशी ले ली और दो चम्मच कफ़ सिरप मुंह में डाल लिया. निगलने में उसे तकलीफ़ हुई और उसने मुंह बिचकाया. पत्नी का मुंह बिचकाना उसे सुहाया और करीब से स्मृति-सा कुछ घूम गया. उसने खुद भी एक चम्मच कफ़ सिरप यों ही ले लिया. पत्नी की सवालिया निगाह के सामने वह धीरे से हंसा. फिर वह लेट कर पत्नी की जरा-सी कम खांसी का इंतजार करने लगा.

गिटार बजाता लड़का

जब सपनों को भी नींद आने लगती वह लोगों के सपनों में जाकर गिटार बजाया करता. अपनी स्पेनिश गिटार गले में झुलाये और अपना लैंडस्केप साथ लिये वह लोगों के सपनों में दाखिल होता. लैंडस्केप दो-तीन छोटी उठानों से बना था. पीछे आसमान पर फीकी सी एक रोशनी फैली रहती. उसके सम्मुख अपनी काली पतलून और उड़ती-सी मैली नीली शर्ट में वह बहुत धीमी-सी एक धुन निकालता-पुरानी उदास दुनिया बदलने की हसरत के दिनों की धुन धीरे-धीरे फैलती जाती फिर वह गीत शुरू करता हल्की दाढ़़ी वाला उसका चेहरा कांपता-सा ऊपर आसमानों को देखता. गीत के बोल साफ समझ में नहीं आते पर वह धुन पूरे महौल पर छा जाती. बहुत रात गये जब सपनों को भी नींद आने लगती, वह लड़का लोगों के बचे-खुचे सपने तलाश करता अपने लैंडस्केप के लिए-फिर सोचता उसे अपने बनाने की कोई नई धुन निकालने के बारे में सोचना चाहिए.

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