आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते: भूतनाथ

नन्हें बहुत छोटा था. उसकी एक बड़ी दीदी थी. दीदी बहुत बड़ी थी, माँ से लंबी और पापा से छोटी. नन्हें दीदी की कमर तक आता था. दीदी आठवीं में पढ़ती थी, नन्हें तीसरी में पढता था. नन्हें को स्कूल जाना कभी पसंद नहीं था, लेकिन दीदी हमेशा स्कूल जाती थी. नन्हें बिचारा स्कूल में हमेशा या तो फेल करता था या फ़िर किसी तरह पास कर दिया जाता था. स्कूल की गाड़ी में लदे लदे वापस घर आ जाता था. घर में माँ काम कर रही होती, या सो रही होती. उसे लगता कि बड़े होने में कितना आराम है, आराम से घर में बैठने को मिलता है. पापा अपने मन से सोते हैं, उनको कोई पढने को नहीं कहता. दीदी को पढने में पता नहीं क्या मज़ा आता था.

आज दीदी पढ़ रही थी,

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।
यत्रास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रिया:।।

अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता बसते हैं, और जहाँ पूजा नहीं होती है वहाँ पे सारे काम बेकार हो जाते हैं.”

दीदी बार बार दोहरा रही थी. नन्हें ने माँ से जा के अर्थात् का मतलब पूछा. माँ ने बताया कि अर्थात् का मतलब मतलब होता है. नन्हें को समझ में ही नहीं आया, ये क्या मतलब है. लेकिन डर के मारे उसने कुछ पूछा नहीं. आखिरी बार उसने आश्चर्य का मतलब पूछा था, लाख बताने पे भी समझ नहीं आया. कुछ होता होगा. लेकिन एक बात नन्हें को समझ में आ गयी कि नारी की पूजा होती है. नन्हें ने गौर किया, तो देखा कि दुर्गा जी, काली जी, सरस्वती जी, लक्ष्मी जी सब की पूजा होती है. लेकिन आदमी भगवान कितने कम हैं. एक गणेश जी है लेकिन वो तो हाथी जैसे हैं. आदमियों की कोई पूछ नहीं.

सच में, आदमियों की कोई पूछ ही नहीं होती. क्लास में किशमिश को टीचर कितना मानती है, और उसको हमेशा डांट सुननी पड़ती है. किशमिश कितनी सुंदर है. माँ कितनी सुंदर है, दीदी कितनी सुंदर है, और नन्हें है जो हमेशा गन्दा रहता है. कभी धूल में गिर पड़ता है तो कभी मैदान में चोट लग जाती है. कपड़े हमेशा गंदे हो जाते हैं. मामा जी आते हैं तो दीदी को कितना प्यार करते हैं, कितनी टॉफी देते हैं. नन्हें को सब की बात सुननी पड़ती है. दूध नहीं पीता है, क्लास में फेल कर जाता है, पता नहीं बड़ा हो के क्या बनेगा. नन्हें रिक्शा चलाएगा. दीदी और माँ सब उसके रिक्शा पे घूमेंगे. नन्हें माँ से पैसा नहीं लेगा, ये सुन के लोग हँसते हैं और फ़िर बाद में मारते भी हैं. किसलिए?

लडकी होने के कितने आराम हैं, शादी कर लो और घर में बैठो. दीदी पढ़ रही है.

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।”

दीदी माँ से बोल रही है, “माँ, मेरा डीबेट है. और कुछ बात बताओ? नारियों की महत्ता पर कुछ बोलना है. ये साल बालिका वर्ष है. बोलो न.”

नन्हें माँ के पास पहुँच गया, “माँ डीबेट क्या होता है?”

“वाद विवाद”, माँ ने कहा.

“मतलब?” नन्हें को नहीं समझ में आया.

“तुम चुप रहो, बस घड़ी घड़ी पहुँच जाते हो. शब्दकोष है न. जाओ देखो.” दीदी कस के चिल्लाती है.

नन्हें चुप से बाहर चला आता है. माँ बोल रही थी, “पापा से पूछना. तुम वो श्लोक और डाल सकती हो…..”

नन्हें को डांटा तो कोई कुछ नहीं बोलता है. नन्हें की दोस्त थी प्रीति. उसको सब बहुत मानते थे. उसके पापा रोज़ उसको टॉफी देते थे, भले ही वो हर बार फेल कर जाती थी. लड़का होना ही ग़लत बात है.

पापा शाम में आ गए. नन्हें पापा से जा कर पूछता है, “पापा, नारी महान होती है?”

पापा ने कहना शुरू किया, “जगद जननी होती है. शक्ति का रूप होती हैं. उनका आदर करना चाहिए. तुम माँ को कभी तंग मत किया करो, दीदी को भी नहीं. अच्छे से पढो और कपड़े मत गंदे किया करो इतना.”

नन्हें क्या पूछे, “जगद जननी का मतलब क्या होता है?”

नन्हें कमरे में आ कर गुमशुम बैठ गया. “छी, वो लड़का क्यों हुआ? भगवान ने कितना बड़ा धोखा दिया है उसे? न वो सुंदर है, न ही पूजने लायक. अब क्या किया जा सकता है.” नन्हें की रुलाई छूट गयी. नन्हें पहले सिसकने लगा. लेकिन कोने में कोई उसे देख ही नहीं रहा था. अगर दीदी रोती तो सब दौड़ के देखने आते. लड़के होने पे कोई रोना भी नहीं देखता. नन्हें से बर्दाश्त नहीं हुआ, और वो ज़ोर ज़ोर से रोने लगा.

“बु हू हू हू…. आँ आ आँ या ऊऊँ … हु हु. ”

घर ने हड़कंप मच गया.

“क्या हुआ? किसने काट लिया? साँप है क्या?” पापा दौड़ते हुए आए.

“क्या हुआ, क्या हुआ? पिंकी तुमने नन्हें को मारा है क्या?” माँ किचन से भागी हुई आई.

“नहीं माँ. मैं तो डीबेट के लिए पढ़ रही हूँ. क्या हुआ नन्हें को?” पिंकी दीदी भी आयी.

“क्या हुआ नन्हें? बोलो?” पापा ने पूछा.

नन्हें नहीं बोलेगा. सब सोचते रहो, नहीं बताया जायेगा.

“क्या हुआ?” माँ ने पूछा. नन्हें और जोर से रोने लगा.

“क्या हुआ रोंदु? क्यों गला फाड़ रहा है?” पिंकी दीदी ने पूछा.

“तुम चुप रहो. जब देखो तब इसको तंग करती हो. तुम ने ही कुछ किया होगा.” पापा ने पिंकी दीदी को थप्पड़ दिखाया. पिंकी दीदी इशारा समझ के चली गयी.

“नन्हें कुछ बोलो?” माँ ने पूछा. फ़िर थोडी देर में वो सब समझ गयी जैसे. “अच्छा तुम बैठो, खाना परोस के तुम्हारे पास आती हूँ.”

नन्हें चुप हो गया. माँ कभी धोखा नहीं देती.

खाना खाने के बाद माँ नन्हें के पास आ कर बिछावन पर लेट गयी.

“क्या हुआ? तुम क्यों रो रहे थे?” माँ ने पूछा.

नन्हें थोड़े धीरे बोला, ” माँ, मैं लड़का क्यों पैदा हुआ?”

“क्यों?”

“लड़की होना कितनी बड़ी बात है. है ना?” नन्हें ने धीमें से टुकुर टुकुर ताकते हुआ कहा.

माँ हँसने लगी. “ऐसा कुछ नहीं है. कौन कह दिया. अरे देखो कितने बड़े लोग सब, सब लड़के ही तो होते हैं.” फ़िर माँ की आवाज़ थम सी गयी. पता नहीं कहाँ सोचने लगी थी, “मेरा राजा बेटा, तू बड़ा हो कर राज करेगा. लड़के ही तो सब कुछ करते हैं.” माँ की आवाज़ कैसी धीमी- घुटी सी हो गयी. माँ जल्दी-जल्दी नन्हें को हलकी-हलकी थपकियां देने लगी. कहीं और देख रही थी.

नन्हें को समझ में ही नहीं आया कि क्या हुआ. “माँ, जगद जननी मतलब?”

“सब को पैदा करने वाली…” माँ ने कहा.

नन्हें को नहीं समझ में आया. नन्हें ने फ़िर से पूछा, ” माँ, अर्थात् का मतलब…”

माँ ने कुछ नहीं कहा. फ़िर नन्हें को देखा, और कहा,” अभी सो जाओ. कल बताऊँगी.”

नन्हें ने आंखें मूंदी और गहरी नींद में खो गया.

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  1. ‘कल’ जानेगा नन्हे जगद जननी का अर्थ . बहुत सुन्दर कहानी !

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