आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

गाँव और नये लेखकः कविता / Village and the New Writers: Poetry

ज्यादातर समकालीन लेखक शहरों में रहते हैं, उनमें से कई गाँवों से आये हैं. संसार को एक गाँव की तरह देखने वाली कल्पना और गाँव को भविष्य के स्थापत्य की तरह देखने वाली कल्पना के धीरे धीरे लुप्त होने के साथ साथ लेखन की संवेदन-भूमि के रूप में भी गाँव विस्थापित हुआ है. बोधिसत्व, एकांत श्रीवास्तव, विनोद पदरज हिन्दी में इस संवेदना के जाने माने कवि हैं; रॉबर्ट हक्सटेड के अंग्रेज़ी अनुवाद में कृष्ण मोहन झा की और मूल में प्रभात, मनोज कुमार झा और शरण्या की कविताएँ जहाँ संसार को एक गाँव की तरह देखने वाली कल्पना का सशक्त पुनराविष्कार हैं वहीं उमाशंकर चौधरी की कविता में एक व्यक्तिगत, सबऑल्टर्न संघर्ष को कवि एक राष्ट्रीय आख्यान से मिला देता हैः गाँव में पिता बहादुर शाह जफ़र हो जाते हैं और उनका संघर्ष 1857 का असफल विद्रोह.
Most contemporary writers live in the city; many of them have come from villages. While the imagining of the world as a village, or the village as a part of the future, has slowly disappeared, the village as the site of creative imagination has also been displaced. Bodhisattva, Ekant Srivastav and Vinod Padraj are the famous Hindi writers of this sensibility. The poems presented here, by Krishnamohan Jha (in Robert Hueckstedt’s translation), Prabhat, Manoj Kumar Jha and Sharanya Manivannan are a powerful rediscovery of an imagination that sees the world primarily as village, while Umashankar Chaudhary’s poem conflates an individual, subaltern struggle with the national narrative: the father in the village becomes Bahadur Shah Zafar, and his struggle the unsuccessful revolt of 1857.

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भिखारी रामपुर : बोधिसत्व

पैदल पुलः एकांत श्रीवास्तव

कचनार का पीत पातः विनोद पदरज

Between Tongue and Blood: Krishna Mohan Jha

पानी की तरह कम तुमः प्रभात

जहां रोउं तो गिरे आंसू: मनोज कुमार झा

The Distance of a Temple Bell: Sharanya Manivannan

गाँव में पिता बहादुर शाह ज़फ़र थे: उमा शंकर चौधरी

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