आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

मृत्युरोग: मार्ग्रीत द्यूरास

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वह हमेशा तैयार रहेगी, वह चाहे या न चाहे। यह वही है जिसका पता तुम्हें कभी नहीं चलेगा। वह ऐसी किसी भी अन्य बाहरी चीज़ से ज़्यादा रहस्यमय है जिसे तुमने अब तक जाना है।
न तुम जान पाओगे, न कोई और ही जान पायेगा, वह कैसे देखती है, कैसे सोचती है, दुनिया के बारे में या तुम्हारे बारे में, तुम्हारे जिस्म के बारे में, तुम्हारे मन के बारे में, या उस रोग के बारे में जिससे वह कहती है कि तुम पीड़ित हो। उसे मालूम नहीं, खुद भी। वह तुम्हें बता नहीं पायेगी। इसके बारे में तुम उससे कुछ जान नहीं पाओगे।
तुम कुछ भी नहीं जानोगे, न तुम न कोई और, कि वह तुम्हारे बारे में या इस प्रेम के बारे में क्या सोचती है। कितने भी युग तुम्हारी विस्मृत हस्तियों को दफ़ना डालें, कोई नहीं जान पायेगा। वह इस क़ाबिल नहीं है कि जान जाये।
क्योंकि तुम उसके बारे में कुछ नहीं जानते तुम कहोगे वह तुम्हारे बारे में कुछ नहीं जानती। तुम इस बात को यहीं छोड़ दोगे।

वह लम्बी रही होगी। लम्बी देह जो एक ही झोंक में बन गयी होगी, एक ही रेखा में, जैसे ईश्वर ने खींची हो, शख़्सियत की अपरिवर्तनीय पूर्णता लिये हुए।
क्योंकि वह किसी से भी मेल नहीं खाती होगी।

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