आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

मृत्युरोग: मार्ग्रीत द्यूरास

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कभी तुम कमरे में चहलकदमी करते हो, पलंग के इर्द-गिर्द या दीवारों के साथ-साथ समुद्र के क़रीब।
कभी तुम बढ़ती हुई ठण्डक में छत पर चले जाते हो।
तुम्हें नहीं मालूम बिस्तर पर पड़ी लड़की की नींद में क्या है।
तुम उस जिस्म से शुरू करना पसन्द करोगे और दूसरों के जिस्मों तक वापिस जाना चाहोगे, अपने जिस्म तक, अपने तक वापिस, जाना चाहोगे। और फिर भी क्योंकि तुम यह करना पड़ता है तुम रोते हो।

और वह, कमरे में, सोती रहती है।
सोती है, और तुम उसे जगाते नहीं हो।
उसकी नींद के चलते कमरे में अवसाद बढ़ने लगता है। तुम सोते हो, एक बार, उसके पलंग के पास, ज़मीन पर।

वह सोयी रहती है, एकसार। इतना गहरा, कि वह कभी-कभी मुस्कुरा उठती है।

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