आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

मृत्युरोग: मार्ग्रीत द्यूरास

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वह पूछती है क्या वह तुम्हारे जिस्म को कम अकेला कर पा रही है। तुम कहते हो, यह शब्द जैसे तुम पर लागू होता है, तुम समझ नहीं पाते हो। कि तुम यह सोचने में कि तुम अकेले हो और दरअसल अकेला हो जाने में फ़र्क नहीं कर पाते। जैसे तुम्हारे साथ, तुम कहते हो।
और फिर एक बार बीच रात वह पूछती है: वर्ष का क्या समय चल रहा है?
तुम कहते हो: अभी सर्दियाँ नहीं आयीं। पतझड़ ही है अभी।
और वह पूछती है: यह आवाज़ कैसी है?

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