एक गाँव-विहीन भविष्य की ओर / Towards a Village-Less Future
शीर्ष कथा की उपलब्धि है इसके दो कथात्मक मज़मून. बीसवीं शताब्दी में जिन थोड़े-से भारतीय लेखकों ने आधुनिकता को अपनी देशज शर्तों और परंपरा से उत्तीर्ण किया, उसे लेखन और जीवन में परिवर्तन की प्रणाली बनाया उनमें नागार्जुन अग्रणी हैं. यह नागार्जुन का जन्म शताब्दी वर्ष है और इस अवसर पर उनके पुत्र शोभाकांत द्वारा लिखी जा रही उनकी जीवनी का एक अंश बाबा की स्मृति में नमनपूर्वक प्रकाशित है. शोभाकांत के सघन सान्द्र और उतप्त गद्य के कारण यह जीवनी स्वयं को तत्क्षण एक उपन्यास में बदलती रहती है.
मैट रीक और आफ़ताब अहमद के अंग्रेज़ी अनुवाद में कथाकार मेराज अहमद की हिन्दी कहानी विभाजन की पृष्ठभूमि में उजाड़ हो रहे गाँवों के एक पात्र की असाधारण प्रेमकथा है जो अपनी रिहाईश ही नहीं अपनी पहचान और धर्म से भी लगातार विस्थापित होता रहता है. शीर्ष कथा की अंतिम प्रविष्टि भज्जू श्याम की कला है जो इस पूरे अंक के पीछे कार्यरत दृष्टि के बहुत नजदीक है.
Among the few Indian writers of the twentieth century who managed to qualify, in their writing, the colonial modernity on their own terms and tradition, and turned it into a system for bringing about change in writing and in life, was Nagarjun. This year is the birth centenary of Nagarjun, on the occasion of which we present an excerpt from the dense, passionate and novelistic biography, being written by his son Shobhakant.
Meraj Ahmed’s story, in Matt Reeck and Aftab’s translation, set against the backdrop of the Partition, tells the unusual love story of a character who is constantly displaced not just from his village, but from his religion and identity. The lead feature is completed by the art of Bhajju Shyam which comes very close to the vision behind this entire issue.
*
Click to Read
An Ambiguous Journey to the City: A Dialogue with Ashis Nandy
A Counter-Enlightenment of Sorts: Purushottam Agrawal
जो फड़ा सो झड़ा, जो जला सो बुझा: सच्चिदानंद सिन्हा से मनोज कुमार झा की बातचीत
a very good article.
Sahitya premiyon ka swarg he, very-very thanks to all your team.