अज्ञेय: अथ छवि कथा/Ajneya: The Urban Legend
अपने जीवन में और उसके बाद के इन २५ पच्चीस बरसों में सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय’ (१९११-९८७) से अधिक विवाद और विरोध शायद ही किसी और हिंदी लेखक को लेकर रहे हों. २०११ में उनकी जन्म-शती भी उनकी सार्वजनिक छवि को मिथकीय बनाने वाले चरम विरोधी आकलनों का एक मुकाबला बन गई – एक तरफ वे हर विधा के आधुनिक प्रवर्तक की तरह याद किये गये तो दूसरी तरफ दक्षिणपंथी रुझान वाले इलीट अहंवादी की तरह जो शायद सी.आई.ए.का अंडरकवर एजेंट भी था. प्रसिद्ध आलोचक प्रणय कृष्ण, स्विस अध्येता निकोला पोजा, कथाकार आशुतोष भारद्वाज तथा कविद्वय कृष्ण मोहन झा और महेश वर्मा के लेख अपने-अपने अद्वितीय पठन में, उनकी एक कविता-विशेष पर एकाग्र होते हुए, उस मिथकीय छवि का संधान, समर्थन और भंजन करते हैं.
During his life and 25 years since then Satchidanand Hiranand Vatsyayan ‘Ajneya’ (1911-1987) has remained one of the most controversial and perhaps the most resisted figure among the modern greats in Hindi. His birth centenary in 2011 proved to be a clash of the oppositional extremes that have come to form his mythical public image – a stalwart who pioneered modern tendencies in just about everything he wrote and did to an egoist, elitist, right-leaning patriarch who perhaps was also an undercover CIA agent. The pieces here on his poems by Pranay Krishna, Nicola Pozza, Krishna Mohan Jha, Ashutosh Bhardwaj and Mahesh Verma in their own unique way explore, confirm and counter the mythical and bring us closer to his work.
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नदी के द्वीप: प्रतीक और विचार – प्रणय कृष्ण
Tension as a Bridge towards Release: Ajñeya’s Poem “Nāc”[i] – Nicola Pozza