जिन्हें स्मार्ट लोग छोड़ गए उनके किस्से: वार्षिकांक विशेष कथेतर / Lives and Texts without Smart People: Anniversary Special Non-Fiction
नोबडीज़ डिट्रॉइट में पुलित्ज़र पुरस्कार से सम्मानित अमेरिकी कवि फिलिप लवीन अपने छोटे शहर लौटते हैं अपने एक अध्यापक के सेवानिवृति समारोह में ‘सरप्राईज स्पीकर’ बन कर, एक ऐसे शहर जहाँ से ‘सारे स्मार्ट लोग चले गये’. भारतभूषण तिवारी के हिंदी अनुवाद में. अंग्रेज़ी उपन्यासकार अमिताव कुमार का गद्य भी अंशतः संस्मरणात्मक है और हमारा परिचय अनुनय चौबे की चित्रकला से कराता है जिसमें स्मार्ट लोगों द्वारा पीछे छोड़ दिये गये शहर और चरित्र अपनी हार्डकोर यथार्थमयता से सीधे हमारी आँखों और दृष्टि को बींध देते हैं. इन दोनों से बहुत भिन्न एक पाठ में कवि-दार्शनिक रुस्तम (सिंह) ‘सौभाग्य’ पर, और इस तरह ‘दुर्भाग्य’ पर, मनन करते हैं. यह काव्यमय और दार्शनिक के मेल से नहीं, उनकी एक दूसरे से प्रति बहुत बारीक घृणा से उपजता हुआ आत्म-प्रतिष्ठ लेखन है जिसे पढ़ने की खुद उसी के फरेब में आ जाने के अलावा कोई और विधि शायद नहीं है. भारत के दो अग्रणी चित्रकारों हकु शाह और अखिलेश के साथ हिन्दी लेखक-सम्पादक पीयूष के संवाद की दो अत्यंत मौलिक और महत्वपूर्ण पुस्तकों पर आशुतोष भारद्वाज की समझदार टिप्पणी इस खंड की अंतिम पेशकश है.
In Nobody’s Detroit, Pulitzer Prize winning poet Philip Levine returns to the city of his childhood – a city from which all the smart people have left – as a surprise speaker at his teacher’s retirement ceremony. (In Bharatbhooshan Tiwari’s Hindi translation.) Amitava Kumar’s memoir-ish piece introduces us to the art of Anunaya Chaubey in which a city and characters left behind by the smart people stare at us with a piercing, uncompromising verisimilitude. Very different from those two texts is Rustam’s poetic-philosophic reflection on ‘fortune’ and, therefore, on ‘misfortune’. This is a ‘self’-rooted text that comes not from the meeting of the poetic and philosophical but from their mutual disdain, and the only way to read it is perhaps to let yourself be completely beguiled by its delicate forgeries. The last piece in the feature is Ashutosh Bhardwaj’s commentary on Piyush Daiya’s two original and important books of conversations with leading Indian painters, Haku Shah and Akhilesh.
*
Click to Read
Private Faces in Public Spaces: Amitava Kumar