ओपन डिबेट II / Open Debate II
इस बार प्रस्तुत है इतिहासकार रामचंद्र गुहा का व्याख्यान द राईज एंड फॉल ऑव द बायलिंगुअल इंटेलैक्चुअल, प्रेमचंद गाँधी के हिंदी अनुवाद में. गुहा का यह लेख इस तथ्य की एक व्याख्या करता है कि कैसे भारत में 1920-1970 के बीच राजनीति, समाज विज्ञानों, कला और साहित्य में द्विभाषी बुद्धिजीवियों की एक मजबूत, लगभग केन्द्रीय भूमिका के बाद हाल के वर्षों मे जब कामचालऊ द्विभाषियों की संख्या लगातार बढ़ी है, बौद्धिक और संवेदनात्क द्विभाषीयता का क्षरण हुआ है. उनके अनुसार द्विभाषीयता के क्षरण के परिणामों में उच्चस्तरीय ज्ञानोत्पादन में कमी के के साथ साथ समाज में कट्टरता का मजबूत होना भी शामिल है. उन्होंने इस क्षरण के विभिन्न कारणों पर भी विचार किया है.
आपकी लिखित प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित हैं. इसके लिये कोई निश्चित अंतिम तिथि नहीं है, ओपन डिबेट I में प्रकाशित डी. वेंकट राव और व्योमेश शुक्ल के निबंधों पर भी प्रतिक्रियाएँ भेजी जा सकती हैं. |
The Rise and Fall of the Bilingual Intellectual, a lecture by historian Ramchandra Guha, in Premchand Gandhi’s Hindi translation, is open for debate. The lecture attempts an interpretation of how bilingual intellectuals who played a central/pivotal role in politics, social sciences, art and literature during 1920-1970 hardly have any competent successors now; how intellectual and emotional bilingualism has gradually become rare, parallel to a phenomenal increase in functional bilingualism. A marked downfall in high quality knowledge production and growing intolerance in society may well be outcome of this decline, Guha suggests.
Your comments and responses are welcome; we’ll publish them in the next issue(s). You can also send in your comments on the inaugural Open Debate essays by D. Venkat Rao and Vyomesh Shukla. * Click to Read |