आज़ादी के मज़मून / Freedom Posts
इस बार शीर्ष कथा में जितने और जितनी तरह के – कविता, कथा, आत्मकथा, दार्शनिक निबंध, साहित्यालोचना – मज़मून शामिल हैं उतने कभी नहीं रहे. यह शायद इस बार की थीम – आज़ादी – का असर है जिसके बारे में कभी भी सर्व-समावेशी ढंग से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है. उदारवादी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में भीतर छुपे अधिनायकत्व के बार-बार, कभी ‘अपने’ लोगों और कभी ‘अन्यों’ के सन्दर्भ से, उजागर होने की पृष्ठभूमि में यहाँ एकत्र पाठ अक्सर सामान्यीकरणों से बचते हुए ‘गल्पात्मक जीवनियों’ में प्रवेश करते हैं – और उनके किरदारों के जीवन को, आस-पास को, उपलब्ध और अनुपलब्ध स्पेस को अपना विषय बनाते हैं. ये ऐसे निजी वृतांत हैं जो न सिर्फ हमारे सामाजिक को बनाते हैं या उससे बनते हैं बल्कि मानवीय अस्तित्व के उन अस्तरों को भी उद्घाटित करते हैं जिन्हें किसी समग्रतामूलक आख्यान में नहीं पाया जा सकता. एक अर्थ में इन सबको इन्हीं में शामिल एक पाठ के शीर्षक को भिन्न बलाघात से प्रयोग करते हुए ‘आज़ादी के मज़मून’ (फ्रीडम पोस्ट्स) कहा जा सकता है.
The lead feature this time has more texts and more genres – poetry, fiction, autobiography, philosophical essay, literary criticism – than we have ever had; a reflection perhaps of its theme, which prohibits totalizing narratives of all kinds. Set against the consistent failure of liberal democracies in ensuring civil liberties – both at home and away, these texts explore ‘fictional biographies’ and map the movements and surroundings of the individuals they belong. These ‘personal’ narratives, while partly corresponding with the collective ones, also relate experiences which refuse to be completely appropriated by the dominant narratives of collectivities. As suggested by the title of an essay included in the feature, these are Freedom Posts, exploring freedom and its adversary in contemporary life and beyond.
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Freedom is a Slippery Fish (An Introduction to the Lead Feature): Trisha Gupta
The Leisure Class: Ambarish Satwik
Freedom, we couldn’t write your name: Aruni Kashyap
Farewell to Spring: Ashapurna Debi
Perish her intellect: Four Tamil Women Poets
राग सुहा (आत्मकथा-अंश): गंगूबाई हंगल
एक ‘अकथ’ शब्द की जीवनीः मनीषा पाँडेय
Here and Hereafter: Nikhil Govind
The Gentle Reader: Nisha Susan
Rethinking Aurangzeb (Excerpt from a novel in progress): Parvati Sharma
A Good Woman (Excerpt from a novel in progress): Ratika Kapur
काव्य रहस्य और सौंदर्य के भयावह फूल: ‘टूटी हुर्इ बिखरी हुर्इ” का एक स्त्रीवादी पाठ – सविता सिंह
A Patron Saint for Broken Homes: Shahrukh Alam
बीसवीं शताब्दी के हिंदी-उर्दू अदब में तरक्कीपसंद तहरीक और उसके द्वारा प्रोत्साहित यथार्थवादी सौंदर्यशास्त्र की लोकप्रियता और प्रभुत्व के बरक्स उससे नाइत्तिफाकी रखने वाले लेखकों को अपने ढंग से लिखने के लिए और अदबी पहचान पाने के लिए अपने तरक्कीपसंद हमसफरों से ज्यादा हौसला दरकार था. उर्दू के बेमिसाल अफ़सानानिगार नैयर मसूद ऐसे ही लेखकों में से हैं और उनका काम अभी उर्दू से बाहर उतना नहीं जाना जाता जितना उसे जाना जाना चाहिए. नज़र अब्बास और महेश वर्मा द्वारा हिंदी में लिप्यंतरित तीन कहानियाँ साधारण जीवन को बिल्कुल नामालूम तरीके से असाधारण कला में बदल देने के उनके हुनर की एक बानगी हमारे सामने पेश करती हैं.