आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

मैंने फिराक़ को देखा था / I Saw Firaq

फिराक़ गोरखपुरी एक महान लेखक से कुछ अधिक थे. फ़ैज, प्रेमचंद और निराला की तरह वे उस दौर में हुए जो लेखकों को ‘लेखक से कुछ अधिक’ होने का मौका देता था. फिराक़ अपने इर्द-गिर्द फैले किस्सों में भी उतने ही जीवित हैं जितने उस शायरी में जिसने उन्हें उपमहाद्वीप के महानतम लेखकों में से एक बनाया.

फिराक़ की शायरी और उस पर खुद उनके एक बयान के फिराक़ के शागिर्द रहे नुरूल हसन द्वारा किये गये ख़ूबसूरत अंग्रेजी अनुवाद हमें इन सारी चीज़ों से फिर से गुजरने का मौका देते हैं उस अंग्रेजी जबान में जिसे खुद फिराक़ ने, नुरूल हसन की तरह, बरसों पढ़ाया.

Firaq Gorakhpuri was more than a great writer. Like Faiz, Premchand and Nirala, he lived in an era that allowed writers to be more than just writers. Firaq continues to live as much in the aura of the anecdotes around him, as in the poetry that made him one of the greatest writers in the subcontinent.

Firaq’s poems (translated by his former student Noorul Hasan), followed by a piece Firaq wrote about his poetry, give us a chance to relive all this in English — a language Firaq, like Noorul Hasan, taught for many years.

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Introducing Firaq Gorakhpuri (1896–1982): Noorul Hasan

My Poetry: Firaq Gorakhpuri

If There Are No Flowers: Firaq Gorakhpuri

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