आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

वाणी का भूषण: भर्तृहरि

अनुरचना: पंकज चतुर्वेदी

एक

संसार ! तव पर्यन्तपदवी न दवीयसी।
अन्तरा दुस्तरा न स्युर्यदि ते मदिरेक्षणाः॥१०३॥

संसार !
तुमसे पार पाना
असंभव न था
अगर बीच में
मदिर नेत्रोंवाली
अनिन्द्य सुन्दरियाँ
न होतीं

दो

सत्यं जना वच्मि न पक्षपाताल्लोकेषु सप्तस्वपि तथ्यमेतत्।
नान्यन्मनोहारि नितम्बिनीभ्यो दुःखैकहेतुर्न च कश्चिदन्यः ॥८१॥

मनुष्यो !
मैं पक्षपात से नहीं
वरन् सच कहता हूँ
कि सातों लोकों में
यही यथार्थ है
कि सुन्दर और पृथुल नितम्बवाली
स्त्रियों से
सुन्दर
कोई दूसरा नहीं
न कोई और
उनसे बढ़कर
दुख का
एकमात्र कारण है

तीन

रविनिशाकरयोर्ग्रहपीडनं गजभुजंगमयोरपि बन्धनम् ।
मतिमतां च विलोक्य दरिद्रतां विधिरहो ! बलवानिति मे मतिः॥९१॥

सूर्य और चन्द्रमा को
ग्रहण के
हाथी और साँप को भी
बन्धन के
और विद्वानों को
ग़ुर्बत के
सन्ताप में
पड़ा देखकर
मुझे लगता है-
आह ! समय ही
बलवान् है

चार

सिंहः शिशुरपि निपतति मदमलिनकपोलभित्तिषु गजेषु ।
प्रकृतिरियं सत्त्ववतां न खलु वयस्तेजसो हेतुः ॥७५॥

सिंह का
शिशु भी
हमला करता है तो
मतवाले हाथियों के
झरते हुए मदजल से
श्यामल
गंडस्थल पर ही
पराक्रमियों का
यही स्वभाव है
निश्चय ही
प्रतिभा
उम्र पर
आश्रित
नहीं होती

पाँच

केयूरा न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वला
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालंकृता मूर्धजाः ।
वाण्येका समलंकरोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्ते अखिल भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम् ॥७६॥

न भुजबन्ध
मनुष्य की शोभा
बढ़ाते हैं
न चन्द्रमा के समान
धवल हार
न स्नान
न अंगराग
न पुष्प
न अलंकृत
केश-पाश
एक वाणी ही
मनुष्य को
समलंकृत
करती है
अगर वह
सुसंस्कृत रूप में
धारण की जाय
समस्त आभूषण
क्षय को
प्राप्त
होते हैं
पर वाणी का
भूषण
अमर भूषण है

(सभी श्लोकों के क्रमांक डी.डी. कोसम्बी द्वारा संपादित भर्तृहरि-विरचितः शतकत्रयादि-सुभाषितसंग्रह के अनुसार दिये गये हैं। सिर्फ़ तीसरे श्लोक का क्रमांक श्रीकृष्णमणि त्रिपाठी द्वारा संपादित भर्तृहरि के नीतिशतकम् के अनुसार है।)

2 comments
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  1. एक साथ, एक ही वक़्त में इन अनुरचनाओं की भाषा व्याकुल और नियोजित हैं. गद्य में निहित ‘टेंशन’ को इस हद तक आज़माया गया है कि उसी के भीतर से एक विरल स्थाई शांति का निर्माण होने लगता है. यही हासिल है, यही सार्वजनिकता है, यही कविता है जो ख़ुद लिखी जाकर कवि और पाठक को भी बनाती बढ़ाती चलती है.

  2. एक वाणी ही
    मनुष्य को
    समलंकृत
    करती है
    अगर वह
    सुसंस्कृत रूप में
    धारण की जाय
    समस्त आभूषण
    क्षय को
    प्राप्त
    होते हैं
    पर वाणी का
    भूषण
    अमर भूषण है
    …maine aksar inhen antardrishtiyon ke gadya sankalan me padha ( kharab anuwad me )….pahli dafa bhrtrihari k kawya-vaibhaw se pankaj k marafat hi pahal me parichay mila tha, ab yahan bhi…

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