वह / That
कविताओं की तरह ही, यहां प्रस्तुत कहानियाँ भी आतंक के कई रूपों, स्रोतों को कई विधियों से अभिव्यक्त करती हैं – गुलज़ार की कहानी अन्तरसामुदायिक हिंसा की अंधता को आदिम हिंसा के सहजात की तरह व्यक्त करती है जैसे कि एक दूसरी तरह से मंजुला पद्मनाभन का गद्य भी; प्रीता समरासन की कहानी 1948 में जापानी आधिपत्य वाले मलाया में घटित होती है; गीतांजलि श्री का उपन्यास खाली जगह बम धमाके में मर चुके एक लड़के की विचलित करने वाली मरणोत्तर उपस्थिति का आख्यान है जिसकी कुछ झलक प्रकाशित अंश में है; और निताशा कौल की आतंक-फंतासी में जिसका आतंक है उसका कोई नाम नहीं, वह एक सर्वनाम है – वह. | Like the poems, the stories presented here also express in various forms the various faces and sources of terror – Gulzar’s story presents the blindness of communal violence as the spontaneity of an atavistic violence, which, in its own way, Manjula Padmanabhan’s monologue also does; Preet Samarasan’s story takes place in the Japan-occupied Malaya of 1948; the excerpts from Geetanjali Shree’s novel Khali Jagah tell of the disturbing presence of a boy killed in a bomb blast; and Nitasha’s terror-fantasy presents an unnamed terror, a terror that is know only by the pronoun That.
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