उनके किस्सों में थी तुम गौरैया: प्रमोद
1. अकेला
मैंने तुम्हें फोन किया और पूछा कि मुझ पर भरोसा है ?
तुमने ईश्वर में विश्वास जताया
और कहा वह सब कुछ ठीक करेगा
अचानक भीड़ में मैं अकेला हो गया
2. समय
आज चाँद था
लगभग गोल
तारों भरे आकाश
पर छाता हुआ
छाता हुआ मुझ पर
झरता था आसमान
बूँद बूँद
मैंने फैला दी हथेली
हथेली के बीच
मिलती थी
बूँद में बूँद
हथेली के बाहर थी हवा
हवा से बाहर था समय
रिसकर हथेली से
बूँद मिलती थी हवा में
हवा से टपक कर
फैल जाती जमीन पर
और बीतता जाता था समय
चाँद तारों हवा आसमान
हथेली और बूँद से परे
3. तुम्हारे किस्से
मैंने उन्हीं के मुख से खूब-खूब
सुने थे तुम्हारे किस्से
जिनकी कामनाओं में तुम बसी थी
और जो किसी भी पल हो जाया करते थे
आह्लादित तुम्हारे जिक्र भर से
उनके किस्सों में थी तुम गौरैया वो भी चंचल
ओस से भगी हरी घास सी सघन
pramod tumahari kavita behad khoobsurat hain.