यहाँ मेरा आदमकद कोई नहीं: मनोज कुमार मीणा
1. भीरू
इतने सारे विशालाकारों से
घबराकर
हारकर
आ दुबका हूँ
इस कोने में
और सचमुच
बहुत खुश हूँ मैं
यहाँ मेरा आदमकद कोई नहीं
2. आँत और कौतूहल
तमाशा हो चुकने के बाद
बाजीगर ने समेट लिया
एक-एक करके एक-एक कौतूहल
भर लिया उस झोले में
जिसमें नहीं भरा था कौतूहल
वहाँ कुछ आँते ऐंठी हुई थीं
बिना किसी कौतूहल के
3. उपयोगी न रहने पर
गिरते गिरते
पहचान रहा हूँ
गिरने के गौरव में नहीं गिर रहा
थक जाने के पराभव में गिर रहा हूँ
4. गुब्बारा-उम्र बच्चा
वो एक सुबह थी
जबकि धूप अभी आई ही थी
शायद उस दिन रविवार हो
इसलिए कुछ अलसाई सी थी
एक गुब्बारा उम्र बच्चा
अपने बाँस में टांके रंगीन गुब्बारे
और अपनी पींपनी का मुँह उठाए
स्वर लहराता गलियों में फिर रहा था
जिन्हें लुभाते नहीं थे गुब्बारों के लहराते रंग
उन्हें वो पींपनी के सुर से बुलाता था
और वो निकल आए थे कई गुब्बारा-उम्र बच्चे
अपने पिताओं की उंगलियां पकड़े, कुर्तों का कोना थामे
और वो अपने बाँस से तोड़ एक एक गुब्बारा
थमाता था
ठहरो ठहरो
देखो देखो
क्लोज़-अप में लो
उन चार हथेलियों के बीच हुए विनिमय को
एक हथेली गुब्बारा थामे बढ़ती थी
दूसरी हथेली को थमाने
और एक जोड़ी आँखे
उन तिरते रंगों पर तैरती थामती थी उन्हें
एक जोड़ी आँखे अगोरती उन्हें
थाम लेती थी
जबकि फूल और पत्तियों से ओस उड़ गई थी
एक गुब्बारा उम्र बच्चा
फिरता था गलियों में गुब्बारा बेचते
गलियों में; जहाँ कटखने कुत्ते थे
गाऐं थी मरखनी, शोहदे थे मुस्टंडे थे
उसकी कमसिनी को ठगने के लिए पा आह्लादित
एक गुब्बारा-उम्र बच्चा
तोड़-तोड़
एक-एक रंग
थमाता था
वहाँ बदलियों से ढँका था सूरज
और सुबह फूट पड़ने को कसमसा रही थी
उस गुब्बारा उम्र चेहरे पर
5. नमक
नमक की जरुरत थी
और रसोई में नमक नहीं था
और यह कुछ यूँ दिखता था
जैसे संकट के किन्हीं क्षणों में साहस की जरुरत हो
और साहस न हो
मैंने उसे आवाज दी
नमक ! नमक !
जैसे कोई अपने साहस को गुहारे
बस एक चुटकी भर ही चाहिए था वह
जिसके अभाव में स्वाद का यह सारा आयोजन
फीका हुआ जा रहा था
अच्छी कविताएं! सुंदर!
Dear Manoj ji,
Read all your heart touching contribution to Pratilipi. Writings represent your true character.People at your position do not have time even for their close one , while you write on such topics. Great !