जनपद में बारिश अभी अभी थमी है : सुधांशु फिरदौस
अन्दर या बाहर
विरह की इस अंधेरी रात में
अब तो जुगनुओं ने भी रास्ता दिखाने से इनकार कर दिया है
मंजिल बहुत दूर है और आवारा सड़कें मुझे कब की रौंद चुकी हैं
कड़कती हड्डियों का दर्द, ज़र्द त्वचा की सारी चमक
और जमाने भर की हैरत अपने आँखों में समेट
घर की दहलीज़ पर पशोपेश में बैठा हूँ कि तुम्हारा इंतज़ार
किस ओर मुँह कर के करूँ अन्दर या बाहर
शाम का साथी
डूबते सूरज के साथ
रक्ताभ होते आकाश का हल्का नीलापन
मुझे मेरे अन्दर,किन्ही अतल गहराइओ में डुबो रहा है
लगभग सारे पक्षी अपने बसेरों की ओर उड़ चले हैं
नदी किनारे मछलियों से बात करने में मसरूफ़
एक छुट गया है अपने झुण्ड से
अपनी व्याकुलता और उदासी के साथ
आज की शाम मेरे साथ वही है
पागुर
ये दुनिया बिछी रहती है
खेसारी के फूनगे की तरह
वह एक गाय,जिसके मुँह पे जाब लगा दिया गया है
लौट आती है आँखों के पानी को समेटे हुए
दरवाजे पे आते ही खोला जाता है उसका जाब
और सामने रख दिया जाता है बाल्टी भर दाना
सुड़क जाती है जिसे वह एक हीं साँस में
लगाया जाता है फिर पछावट
दूहा जाता है उसको
रात को पागुर करते हुए जब वह अपने आँखों को बंद करती है
खुद को पाती है खेसारी के खेत में चरते हुए
एक पुराने दोस्त का इंतज़ार करते हुए
शाम ईंट के झाँवे पर रगड़ रही है एड़ियाँ
अभी अभी डूबा है सूरज
कुछ लालीमा बादलों में उलझी रह गयी है
रात चढ़ने से पहले हीं,आज फिर से आकाश में आ चूका है बेसब्र चाँद
चकवों का झुण्ड अपने गंतव्य की ओर उड़ा जा रहा है
परती में चर रहे गाय को अभी तक कोई वापस नहीं ले गया
वह खूंटा उखारने को बेचैन खिसियानी चक्कर काट रही है
खेतों से साग खोंट घर को लौटती लड़कियां
अपने खोइंचा को संभाले झटकती भागी जा रही है
बहुत देर हुई बाट जोहते वह आज भी नहीं आएगा शायद
अब तो आँखों के आगे रोशनी भी धुंधली पड़ने लगी है
रात घिरने वाली है घर को लौट जाना चाहिए
तबरने में रात
आज देर रात तक वह पीते रहेगा तारी
चाँद उतरेगा पहले लबनी में
फिर कटिया में
फिर देखते देखते पूरे तबरने में
जब तक वह घर लौटने को उठेगा
तब तक तारी उसे पूरी तरह निढाल कर चूका होगा
चलने की हिम्मत न पाकर वह लड़खडा वहीं बैठ जायेगा
फिर ये सोच कौन जाये इतनी रात दरवाजे की जंजीर खटखटाने
बीवी के साथ सर खपाने,फिर से नए बहाने बनाने,पड़ोसियों को जगाने
वह लेट जाएगा वहीं घास पर आसमान की चादर ओढ़
कल सुबह घर लौटने से पहले पूरा गाँव जान चूका होगा
रात फिर उसने तबरने में ही बिताई है
भूख
ट्रेक्टर से खेत जोतवाते किसान ने बांटा सबसे अपना दुःख
बैलहट्टा से लौटते बैलों के गले में बजती घंटीओं की आवाज से संगीतमय कोई ध्वनि नहीं होती
मुझे लगा यह तो सुख है और मै दौड़ गया उस गाँव की ओर
जहां बैलों का मेला लगता था
वहाँ सिर्फ़ रक्त से सनी धरती दिखी
जिसके ऊपर भांग के झार उग आये थे
जनपद में बारिश अभी अभी थमी है
गुलाब की पंखुरियों ने
आज धो डाले अपने ऊपर के सारे धूल
तेज हवा के झोंको ने सुला दिए मक्के के सारे पौधे
झिंगुरों के साथ मिलके गा रही है गीत अशोक की टहनियाँ
छप्पर की ओरियानी से अभी भी टपक रही हैं बूंदों की लड़ियाँ
नए नए रोपे गए धान के खेतों में चल रही है बगुलों की पंचायत
मिट्टी की सोंधी महक से मत गया है पूरा जनपद
साफ़ कोरा आकाश फिर से बादलों को
दे रहा है निमंत्रण
नदी के उस पार शाम आज कुछ जल्दी ढल चुकी है
एक बूढ़ा चरवाहा सर पे घास का बोझा उठाये बिलकुल भीगा हुआ
अपने पैरों को फिसलने से बचाते मवेशियों को हांकते चला आ रहा है
जनपद में बारिश अभी अभी थमी है