आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

एक ‘अकथ’ शब्द की जीवनीः मनीषा पाँडेय

Art: Samia Singh

ये शब्‍द, बलात्‍कार, मेरी जिंदगी में पहली बार कब आया? मैंने कब जाना कि ठीक-ठीक इसके  मायने क्‍या हैं? ठीक-ठीक याद नहीं. तब मैं शायद कुछ बारह साल की रही होऊंगी. शहर में एक गैंग रेप की घटना हुई थी. अखबार में पहले पन्‍ने पर बड़ी-सी खबर थी. उस दिन मां ने मुझे मेरे उठने-बैठने-चलने के तरीके पर कई बार टोका. छत पर जाने पर नाराज हुईं,  शाम को एक सहेली के यहां जाने के लिए मना कर दिया,  जिसका घर थोड़ी दूर था. बिना दुपट्टा बाजार में दूध लेने जाने के लिए जोर से डांटा भी.

हम दोनों में से किसी ने अखबार में छपी उस घटना का कोई जिक्र नहीं किया. लेकिन उस उम्र में भी मैं ये समझ गई कि इन आदेशों का संबंध उसी घटना से था. मैं ये भी समझ गई कि मां के हिसाब से न चलने वाली लड़कियों के साथ बलात्‍कार होता है. कि बलात्‍कार से खुद को बचाने के लिए दुपट्टा ओढ़ना चाहिए, सड़क पर घूमना नहीं चाहिए और दूर सहेली के घर नहीं जाना चाहिए.

लेकिन तब भी ठीक से मालूम नहीं था कि बलात्‍कार दरअसल होता क्‍या है? मैं बड़ी हो रही थी. जब मैं पांच साल की थी तो एक दिन खेलने के लिए पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली को बुलाने उसके घर गई. उसके घर में कोई नहीं था. उसके चाचा ने किसी के न होने का फायदा उठाकर मेरे सामने अपनी नीले रंग की चेक वाली लुंगी खोल दी. मैं बुरी तरह डर गई और वहां से भाग आई. क्‍या वो बलात्‍कार था?

उसी मुहल्‍ले में हमारे एक कमरे के किराए के घर के बगल वाले कमरे में जो आदमी रहता था, वो अपनी पत्‍नी के न होने का फायदा उठाकर बेटा-बेटा कहकर मुझे अपनी गोदी में बिठा लेता और फिर जो करता,  उससे मुझे डर लगता और उबकाई आती. मैंने किसी से कहा नहीं,  लेकिन एक अजीब से डर में जीने लगी. क्‍या वो बलात्‍कार था?

पहली मंजिल पर रहने वाली मारवाड़ी आंटी के बीस साल के लड़के ने एक दिन जब छत पर मुझे गोल-गोल घुमाने के बहाने मुझे कंधे से पकड़कर नचाते हुए मेरे पैरों के बीच अजीब तरीके से छुआ था और मैं फिर डर गई थी तो क्‍या वो बलात्‍कार था?

फिर एक बार जब मैंने छठी क्‍लास में थी और मां ने शक्‍कर लेने के लिए दुकान पर भेजा था और दुकान वाले ने मेरी छाती को अजीब ढंग से छुआ था, तो क्‍या वो बलात्‍कार था?

और उसके बाद हिंदुस्‍तान के हिंदी प्रदेश के इलाहाबाद शहर में बड़ी हो रही एक लड़की की जिंदगी में आए दिन पड़ोस,  मुहल्‍ले, परिवार, गांव, बाजार और स्‍कूल के रास्‍ते में ऐसी जाने कितनी घटनाएं हुईं,  जिन्‍होंने दिल में एक अजीब-सा डर बिठा दिया,  तो क्‍या वो सब बलात्‍कार था?

उन घटनाओं के बाद अंधेरे से डर लगने लगा.

सूनसान गलियों और सड़कों से डर लगने लगा.

पुरुषों से डर लगने लगा.

अपने शरीर से डर लगने लगा. तो क्‍या ये सब बलात्‍कार था?

अगर वो सब बलात्‍कार था तो मैंने कभी इसके बारे में किसी को बताया नहीं. मां से कभी पूछा भी नहीं कि वो क्‍या था ?

फिर एक साल बाद  एक दिन अखबार में एक स्‍त्री डाकू की तस्‍वीर छपी. उसके बारे में लिखा था कि उसने बहमई के 22 ठाकुरों को मार डाला था क्‍योंकि उन सबने मिलकर उसके साथ सामूहिक बलात्‍कार किया था. शायद तब उस पर लगे सारे आरोप वापस ले लिए गए थे. तो क्‍या बलात्‍कार करने वालों को गोली मार देनी चाहिए? सोचकर अच्‍छा लगा. क्‍योंकि मैं भी शायद मेरी सहेली के उन चाचा, बगल वाले अंकल, मारवाड़ी आंटी के बेटे और दुकान वाले लड़के को मार ही डालना चाहती थी. हालांकि उस वक्‍त न हिम्‍मत थी और न ठीक-ठीक ये आइडिया कि मैं क्‍या करना चाहती हूं. मां ने उसके बारे में इतना ही कहा कि वो फूलन देवी थी, वो डाकू थी और उसने 22 ठाकुरों को मार डाला था. दूर के रिश्‍तेदार शुक्‍ला जी इस बात का जिक्र करते हुए दुखी नजर आए कि उसने 22 ठाकुरों को मार डाला. किसी ने बलात्‍कार का नाम भी नहीं लिया. फूलन के लिए न इज्ज़त दिखाई,  न प्‍यार. उस दिन छत पर भी पड़ोस के कुछ लोग उन 22 ठाकुरों की मौत के लिए दुखी होते नजर आए. किसी ने फूलन को मुहब्‍बत से सलाम नहीं किया.

उस दिन मुझे एक बात और समझ में आई.

बलात्‍कार बुरा होता है, लेकिन बलात्‍कार करने वालों को गोली मार देना उससे भी बुरा होता है. और ठाकुरों को गोली मारना तो उससे भी ज्‍यादा बुरा.

वो चाचा, बगल वाले अंकल, मारवाड़ी आंटी के बेटे और दुकान वाले लड़के और इलाहाबाद के तमाम सारे मर्दों ने मेरे साथ और मेरे जैसी शहर की तकरीबन हर लड़की के साथ जो किया, हो सकता है, वो बुरा हो. लेकिन उस बात को किसी को बताना और उन्‍हें बदले में गोली मारने की बात सोचना तो और भी बुरा होता है.

मैंने बुरी बातें सोचना बंद कर दिया.

लेकिन हम जो इस धरती पर,  इस देश में एक लड़की का शरीर लेकर  पैदा हुए थे, बुरी बातों, बुरी घटनाओं और बुरी हरकतों ने हमारा पीछा नहीं छोड़ा.

ये बुरी बातें सिर्फ उत्‍तर प्रदेश में नहीं होती थीं.

मुंबई में एक बार गर्ल्‍स हॉस्‍टल के एक कमरे में हम 10-12 लड़कियां बैठकर रात को दो बजे बातें कर रहे थे. हमने चोरी से वाइन की तीन बोतलों का जुगाड़ किया था और उस कमरे में उस वक्‍त सिर्फ वही लड़कियां मौजूद थीं, जिन पर ये भरोसा किया जा सकता था कि वो वाइन की खबर कमरे के बाहर लीक नहीं होने देंगी. अपनी स्‍टील की गिलासों में वाइन पीते हुए हम जिंदगी के प्रतिबंधित इलाकों की बातें करते रहे. बचपन की बुरी बातों का भी जिक्र हुआ. कुछ देर के डर, शर्म और संकोच के बाद बारहों लडकियों ने ये स्‍वीकार किया कि उनके बचपन में भी डरावनी घटनाएं हुई हैं. पड़़ोस के अंकल, दूर के रिश्‍तेदार, पापा के दोस्‍त ने सबसे पहले पुरुषों और अपने शरीर के प्रति डर और नफरत का भाव पैदा किया.

मैं उस वक्‍त भी ये तय नहीं कर पाई कि क्‍या वो बलात्‍कार था ?

फिर वर्किंग वुमेन हॉस्‍टल में एक बार एक लड़की नाइट आउट से लौटी तो उसके आंखों के नीचे नील पड़े थे. चेहरे पर चोट के निशान थे. मुझे बाद में पता चला कि उसके ब्‍वॉयफ्रेंड ने उसके साथ जबर्दस्‍ती सेक्‍स करने की कोशिश की थी. उसने किसी थाने में रिपोर्ट नहीं लिखाई. दस दिन बाद उसी लड़के के साथ फिर घूमने चली गई.

क्‍या वो बलात्‍कार था ?

मुंबई में ही एक महिला संगठन में काम करने वाली मुंबई हाइकोर्ट की वकील महिला ने कहा कि बहुत बार वो इच्‍छा न होने पर भी उन्‍हें मजबूरन अपने पति के साथ सोना पड़ा है. उन्‍होंने ये बात ऐसे कही कि मानो ये बहुत सामान्‍य चीज हो. ये सामान्‍य-सी बात क्‍या बलात्‍कार था ?

मेरे घर बर्तन धोने वाली वो औरत, जिसका पति उसकी बहन के साथ सोता था, लेकिन वो कुछ बोल नहीं पाई क्‍योंकि पति को छोड़ देती तो जाती कहां? कहां रहती, क्‍या खाती, कैसे जीती ? तो क्‍या वो बलात्‍कार था ?

इलाहाबाद की वो औरत ये जो कहती थी कि अपनी बीस साल की शादीशुदा जिंदगी में उसने कभी बिस्‍तर पर पहल नहीं की. वो लड़की, जिसे लगता था कि सेक्‍स में रुचि दिखाने वाली लड़कियों को उनके पति स्‍लट समझते हैं, कि शादी के पहले सेक्‍स के लिए हामी भरने वाली औरतों के उत्‍तर भारतीय पति उन पर शक करने लगते हैं, वो पढी-लिखी मॉडर्न, नौकरी करने वाली लड़की, जो हसबैंड के साथ सुख न मिलने पर भी ऑर्गज्‍म होने का दिखावा करती थी. वो ब्‍वॉयफ्रेंड, जो सेक्‍स के समय खुद प्रोटेक्‍शन लेने के बजाय लड़की को पिल्‍स खाने के लिए कहता था, जिसके कारण उसे चक्‍कर आते और उल्टियां होतीं थीं, जो पहले अबॉर्शन के समय लड़की को अकेला छोड़कर शहर से बाहर चला गया था.

क्‍या वो सब बलात्‍कार था ?

ऑफिस के वो लड़के, जो स्‍कर्ट पहनने वाली, मर्द सहकर्मियों से आंख मिलाकर तेज आवाज में बात करने वाली, सिगरेट-शराब पीने वाली लड़की को पीठ पीछे स्‍लट बुलाते थे. जो अब तक तीन ब्‍वॉयफ्रेंड बदल चुकी अपनी सहकर्मी लड़की के बारे में कहते थे, “उसकी तो कोई भी ले सकता है,” और ये ले लेने के लिए आपस में शर्त लगाते थे, कि जो अपनी मर्जी और खुशी से बिना शादी के किसी पुरुष के साथ संबंध बनाने वाली स्‍त्री को “एवेलेबल” समझते थे, तो क्‍या वो सब बलात्‍कार था.

दूर के रिश्‍ते की वो बुआ, जिनकी 35 बरस तक शादी नहीं हुई और जो अच्‍छी औरत कहलाए जाने के लिए पुरुषों की परछाईं तक से दूर रहती थीं, जो अच्‍छी औरत कहलाए जाने के लिए जिंदगी में कभी किसी पुरुष के साथ नहीं सोईं, जिनका शरीर प्रेम के बगैर मुर्दा अरमानों का मरघट बन गया, 38 साल की उमर में जिन्‍हें मेनोपॉज हो गया और बदले में परिवार और समाज ने उन्‍हें “अच्‍छी औरत” के खिताब से नवाजा तो क्‍या वो बलात्‍कार था.

आज तक ये तय नहीं हो पाया कि इसमें से कौन सा बलात्‍कार था और कौन सा नहीं था ? इस देश का कानून नहीं तय कर पाया. इंडियन पीनल कोड की धाराएं और संहिताएं नहीं तय कर पाईं, अरबों रुपए के बजट वाली हिंदुस्‍तान की न्‍याय व्‍यवस्‍था नहीं तय कर पाई, इस देश की सबसे ऊंची कुर्सियों पर बैठी औरतें नहीं तय कर पाईं. कोई नहीं तय कर पाया. किसी को तय करने की जरूरत नहीं थी. तय होने या न होने से उनका कुछ बिगड़ता नहीं था.

लेकिन अभी कुछ दिन पहले दिल्‍ली में एक लड़की के साथ सात लोगों ने गैंग रेप किया, उसके साथ बर्बर, अमानवीय, अकल्‍पनीय हिंसा की और दिल्‍ली की ठिठुरती ठंड में उसे सड़क पर बिना कपड़ों के लिए मरने को छोड़ दिया तो हजारों की संख्‍या में लड़के और लड़कियां सड़कों पर उतर आए हैं. वो कह रहे हैं कि बलात्‍कार की सजा फांसी होनी चाहिए.

सजा क्‍या होनी चाहिए, वो तो अलग से बहस का मुद्दा है. लेकिन ये तय है कि ये  जघन्‍य हिंसा है, ये भयानक है, ये अमानवीयता और क्रूरता का सबसे वीभत्‍स रूप है. 23 साल की उस लड़की की कुर्बानी इस रूप में सामने आई है कि स्‍त्री से जुड़े बहुत से जरूरी सवाल आज दिल्‍ली की कुर्सी को हिला रहे हैं. औरत इस देश के मर्दवादी चिंतन और आंदोलनों के इतिहास में पहली बार सबसे केंद्रीय सवाल बन गई है. वरना बलात्‍कार तो पहले भी होते थे, घरों के अंदर और घरों के बाहर होते थे. हिंदुस्‍तान की आर्मी बलात्‍कार करती थी, पुलिस बलात्‍कार करती थी, अपने और अजनबी लोग बलात्‍कार करते थे, पिता, भाई, मामा, चाचा, काका, ताया बलात्‍कार करते थे, लेकिन कभी ये मुख्‍यधारा का सवाल नहीं बना. कभी इसके लिए लोग लाठी, वॉटर कैनन और टीयर गैस खाने सड़कों पर नहीं आए.

लेकिन अब जब आ ही गए हैं तो सिर्फ इस सामूहिक बलात्‍कार के बारे में बात नहीं करेंगे. अब हम बलात्‍कार के समूचे इतिहास के बारे में बात करेंगे. उस संस्कृति के बारे में, उन धर्मग्रंथों के बारे में, उन परिवारों, उन रिश्‍तों के बारे में, उन पितृसत्‍तात्‍मक नियमों और कानूनों के बारे में बात करेंगे, जिसने इस समाज में बलात्कार को ‘संस्कृति’ बनाया है. हम उस दुनिया के बारे में बात करेंगे, जिसने पुरुष को बलात्‍कार करने और स्‍त्री को बलात्‍कृत होने और फिर मुंह बंद रखने का सबक सिखाया. जिसने पुरुष को सेक्‍चुअल बीइंग और औरत को सेक्‍चुअल ऑब्‍जेक्‍ट बनाया. जिसने पुरुषों की शारीरिक जरूरतों को महान बताया और औरत को उसे पूरा करने का साधन. जिसने लड़कियों को ‘’बलात्‍कार से कैसे बचा जाए’’ के सौ पाठ पढ़ाए, लेकिन पुरुषों को एक बार भी ये नहीं बताया कि वे किसी भी स्‍त्री के साथ बलात्‍कार न करें. जिसने पुरुषों को बलात्‍कार तक करने की छूट दी, लेकिन औरतों को अपनी सेक्‍चुअल डिजायर को स्‍वीकार तक करने की जगह नहीं दी. जिसने औरत को हर तरह के इंसानी हक और बराबरी से अछूता रखा. जिसने उसे पिता, भाई, पति और पुत्र की निजी संपत्ति बनाया. जिसने उसे वंश चलाने के लिए पुत्र पैदा करने की मशीन बनाया. जिसने उसे संपत्ति के हक से, फैसलों के हक से वंचित रखा. और जिसने ये सब करने के लिए महान धर्मग्रंथों की रचना की. उसकी कुतार्किक व्‍याख्‍याएं गढ़ी.

कि जिस दुनिया में मांओं ने अपनी बेटियों को बलात्‍कार से बचाने के लिए उनके सड़कों पर घूमने पर पाबंदी लगाई, लेकिन अपने बेटों को बलात्‍कार करने के लिए सड़कों पर खुला छोड़ दिया. कि जिसने बलात्‍कार से बचने के लिए लड़कियों को अपने शरीर की पवित्रता बनाए रखने का पाठ पढ़ाया, लेकिन मर्दों के शरीर की भूख मिटाने के लिए चकलाघर खोल दिए. कि जिसने बलात्‍कार की वजह लड़कियों का शरीर दिखना बताया, लेकिन लड़कों के सडकों पर नंगे घूमने, कहीं भी अपनी पैंट की जिप खोलकर खड़े हो जाने पर सवाल नहीं किया. कि जिसने लड़कियों के बलात्‍कार की वजह चार ब्‍वॉयफ्रेंड रखना बताया, लेकिन मर्दों के सौ औरतें के साथ संभोग करने को मर्दानगी कहा. कि जिसने मर्दों को जूता मारने और औरत को जूता खाने की चीज बताया.

अब जब सवाल उठ ही गया है तो इन सब पर उठेगा.

मैंने जिंदगी में जितनी बार इस ना बोले जाने वाले शब्द को, इस ‘अकथ’ को नहीं बोला उतनी बार इन दिनों बोला, इस एक आलेख में बोला है.

अब जब बात निकल ही पड़ी है तो दूर तलक जाएगी.

116 comments
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  1. क्या कहूँ… इस मसले पर इतना तीखा आलेख दूसरा नहीं पढ़ा। पढ़कर भीतर न जाने कैसा महसूस कर रहा हूँ। भीतर बहुत शोर सा हो रहा है। प्रतिलिपि का आभार। और मनीषा के प्रति आदर और आभार दोनों…

  2. Manisha ji ne bada gambhir or sateek aalekh likha hai, jiski aaj ke samay mein jarurat bhi thi, is purush pradhan desh mein aurat ke astitv or samman ki roop rekha kab badlegi..

  3. भीतर तक झकझोरने वाला आलेख…

  4. Dear Manisha Ji,
    Namaste!

    I fully agree with you. Many of us have undergone / undergo the situation that you have mentioned. Nobody reveals it. To whom can reveal it-Mother, father, brothers/ sisters or friends????

    Balatakar is not only RApe. Rape is extreme, Every abusing move leading to it is Balatkar.

    We need to build up a strong support group among our self and protect, rescue and safe guard young girls and women from this dreadful crime.

    Regards

    Sphoorthi

  5. आपने गिना दिये बहुत सारे चीजे जो हम या देख नहीं पाते या जानते बुझते अनदेखा कर देते हैं, हमें लगता है आँखे बंद करने से दुनिया सपनों से सुन्दर हों जायेगी| उत्पीड़न और बलात्कार के अनगिनत उदाहरण आपको अगल बगल झांकने पर मिल जाते हैं| बलात्कार तो चरम सीमा है , और न जाने कितने उदाहरण जो वहां तक न पहुच पाए हों पर उनकी वीभत्सता शायद ही कुछ कम हो| हम गिनना नहीं चाहते न|

  6. एक बढ़िया आलेख..
    लड़ाई बहुत लम्बी है..मर्द आत्मस्वीकृति के मामले में, खासकर जब अपनी गलतियों से जुडी हों ज्यादातर इमानदार नहीं होते.
    उम्मीद है की यह बात सोशल साइट्स के दिखावों से बाहर अपनी एक जगह बना ले.
    बाकी तो उम्मीदे सहर तो है ही..

  7. बेहतरीन मनीषा इससे बेहतर नही हो सकता

  8. कुछ कहने की हिम्मत नहीं रह गयी है जी.
    अभी अभी कुछ देर पहले मंटो की एक कहानी पढ़ी ” खोल दो ”
    और फिर फेसबुक पर आपकी पोस्ट में ये लिंक देखा तो यहाँ चला आया.
    मन पहले ही कहानी के कारण ख़राब था अब और खराब हो गया है ., कितना सच है ये सब कुछ . ऐसा ही तो होता है .
    देखते है . कब सबेरा होता है .

    विजय

  9. पूरा का पूरा पढ़ गया एक सांस में……. असहमति की तो कोई गुंजाईश ही नहीं………

  10. Manisha
    I read this article. I felt that the time has come to pull up our shocks. very heart-touching story. I hope the time will change. I m with u.

    Regards
    Anurag Misra

  11. umeed hai yah lekh apne uddeshya me safal hoga.manisha ji ko behtarin rachna ke liye badhai…

  12. ji han, aalekh antratma ko jhkjhor kar rakh deta hai.

  13. Just Can’t describe.. Manisha …shook all parts of brain..!!

  14. बधाई , सुंदर लेखन

    बहुत समय से एक कहानी की खोज मे हूँ “कौन सिखाये” शायद जयनन्दन ने लिखी थी , अगर आपके पास उपलब्ध हो तो कृपया भी प्रदान करें

    उस कहानी मे एक बालक के साथ बलात्कार होता है , मैं पुनः पढ़ना चाहता हूँ

  15. Very True…

  16. manisha bahut jaandaar or ek dam satik sabdo kai saath wo sab baate ismai hai jo wakai mai har kissi kai saath hoti hai…..baat nikali hai to door talak jayegi sahi hai or jana bhi chahiye….jin sawaalo ko aapnai apanai is lekh mai garamjoshi kai saath uttaya hai wo aaj tak mujhe bhi samjh nahi aaye….jabki aise kayi ghatnao ki jaankaari mujhe bhi mere aaspass sai mili thi.thanx a lot manisha 4 such a grt article i share it on my wall…………

  17. sacchai ………..hats off Manishaji….ye duniya ki kadwi sacchai hai ……

  18. मनीषा,
    तुम्हारी पोस्ट तक मैं इत्तेफाकन ही पहुंचा। अभी कुछ दिन से ही तुम्हारी पोस्ट पढनी शुरू की है फेसबुक पर। तुम्हारे लेखन में एक जादू है। तुम्हारा शब्द विन्यास, विषय पर पकड और विभिन्न घटनाओ को एक सूत्र में पिरोने की कला ने मुझे तुम्हार लेखन का फैन बना दिया है। उम्मीद है भविष्य में और भी विचारोत्तेजक लेख पढने को मिलेंगे।

  19. आप ऐसे ही हमे झकझोरती रहिये यही इच्छा करता हूँ, हम पुरुष केवल पुरुषों की तरह ही सोच सकते हैं, ऐसा कम ही होगा की कोई पुरुष आपकी तरह इतना संवेदनशील होगा वो भी ऐसे विषय पर जो की स्त्रीत्व से जुड़ा हो,…पर आप हैं तो आशा भी है की कोई कह रहा है, कभी तो सब सुनेंगे, लिखती रहिये, कहती रहिये,…

  20. :)Mujhe is baat Ka Garv Hai Ki Maine Aap Jesi Mahila K Sath Maine Ek Student (chatr) K Roop Main Kuch Pal Bitaye Pr Iss Baaat Ka Dukh Bhi Hai Ki Maine Aapke PairNai ChuA Or Aapke Ashirvad Se Vanchit Rha
    Aap Ko Ye Baat Jarur Batta Doon Ki Main Aaj 25year ka Hoon Or Mere Doston K Sath Main KAi Baar Aasai Jagha Gya Jahan Sabhya Smaj K Log Us JGha Ko Galat Battatai Hai…
    Pr Meri Himmat Nahi Hui Ikccha Thi Pr Maa Ki Batai Hui Batain Samne Aa Gain Main Or Mere Dost Sab Drink Kiye Thay Pr Us Isstithi Main Bhi Main Aapni Maa Duara Diye Sanskaron Ko Nahi Bhola…
    Or Aab Bhi Aapne Man Ko Marke Main Version Hoon…
    Kya Ye Mere Sath Anyae Nahi Hai ?:(

  21. ”कि जिस दुनिया में मांओं ने अपनी बेटियों को बलात्‍कार से बचाने के लिए उनके सड़कों पर घूमने पर पाबंदी लगाई, लेकिन अपने बेटों को बलात्‍कार करने के लिए सड़कों पर खुला छोड़ दिया. कि जिसने बलात्‍कार से बचने के लिए लड़कियों को अपने शरीर की पवित्रता बनाए रखने का पाठ पढ़ाया, लेकिन मर्दों के शरीर की भूख मिटाने के लिए चकलाघर खोल दिए.”

    बहुत ही मार्मिक लेख .जो पुरे परिदृश्य को सजीवता से प्रकट कर रहा है .मनीषा जी सामाजिक विकृतियों के पुरे ताने बाने को बड़े ही सवेंदनशील तरीके से रखा है .जितनी तारीफ की जाये कम होगा …

  22. Main Himalaye Chala Jaoo ? Iikchaye Martin Ja Rahin Hai..Aab To
    Or Jahan TK Inn Sab Baton KI Baat Hai Ki Log Tavaifho Ko Galat oR Na Jane Kya Kya Gandhi Batain Nahi Bolte Pr Kya Ye Sahi Nahi hai ki Aaj Jo Samaj K Dhongi Log Aapne Ko Iijjatdar kehlane Ka Ek Moka Nahi Chodte Un Logo Ki Ghar Ki Ijjat Un Tavaifh Khano Ki Vajha Se Hi Bachin Hai ?

  23. Or Nari Naa ho to Mardo Ka Astiv katare Main Aa Jaye.

  24. Ek….sahi kataksh….itna sahi kmujhe purush hone par aatmglani si mahsoos ho rahi h…..aisa lekh aur partikirya maine kabhi nahi padhi…aapko mera naman….

  25. मैं एक लड़का हूँ एक बात…दूसरा मैं कवि हूँ….तीसरा मैं लेखक बिरादरी का हूँ..और चौथा मैं सोशल एक्टिविस्ट हूँ….इसी लिए मैंने इस आर्टिकल का चार कोनो से अवलोकन किया….
    मैंने इस आर्टिकल मैं आधी आबादी की छटपटाहट को महसूस किया है….
    ऐसे लेख लिखने के लिए वाकई एक जिगर चाहिए…..

  26. this is one of the best write ups i have ever read on women’s subordination…..a million thanks Manisha ma’m!….i’m following your posts for last 3-4 months and i must say i have learnt a lot about the various facets of gender inequalities……better than 100 books!

  27. कुछ कहने की स्थिति मे नहीं हूँ…. लेकिन लेख की एक एक पंक्ति छेद डालती है….

    इतना निर्मम इतिहास
    इतने गह्वर उपहास
    घर के डसते वनवास
    छिनते लुटते विश्वास
    जब किरण एक फूटी है तो
    कुछ न कुछ तो दिखलाएगी
    अब जब बात निकल ही पड़ी अगर
    तो दूर तलक भी जाएगी.

  28. hello manisha ji,

    i have read u first time. u write so well.
    ur writing has truth and strength which r must for a article. so surpb thought and thanx for sharing it to us. keep on writing

  29. Kya kahe… Vakei Balatkar ko paribhashit karna ya shabdo me bandhna kathin he, par itana to jarur vicharniy he ki Soch agar badli jae to kahi niyantrad sambhva ho paega, dil ki gehraiyo ko chhu jane vala aalekh he….,

  30. सबसे पहले मेरी बधाई सच को बेबाकी से खोल कर रख दिया
    हर शहर गाँव में इन सब से गुजरती है और मुंह बंद रखती है
    एक एक शब्द झकझोर के रख देता है —इस खोखले समाज को
    आइना दिखाती हुई पोस्ट —-

  31. विश्व के ज्यादातर जगहों पर महिलाओं को दोयम दर्जा दिया जाता हैं । हमारे देश में तुम्हारे विचार निश्चित र्मदो को सोचने पर मजबुर करेगा ।विकास के साथ सामाजिक बदलाव जरुरी हैं । तुम्हारा पृयास जरुर सफल होगा

  32. Bahut hi sunder aalekh. kayal hun main aapki lekhni ki. dhanya hain aap aur aapki kalam ki dhar. dhero subhkamnayen, likhte rahiye isi tarah bebak, tut jane dijiye pariwar ki sanskriti, nasta ho jane do, aastha se bandhi wah sanstha, jo asankhaya jakhmo ke sath jine ko vivas karta hai,…………………..aapki baaat sure 21win sadi ka ek naya geet hai. salam ek baar fir aapko aur aapki lekhni ko.

  33. शब्द नहीं हैं बयां करने को .पर इतना तो जरूर है की आपने सच सच लिखा है वही सच जो सब कहीं न कहीं छुपा जाते हैं अपने भीतर .यह दुखद है पर उतना ही सच भी ..आपका आभार मनीषा जी .आपके लिखे का हमेशा इन्तजार रहता है .

  34. Kafi acha likha aapne keep it up

  35. they should get death certificate

  36. manisha ji Aapka lekh bahut accha laga Aapka bahut bahut Aabhar

  37. कटु यर्थाथ ….भीतर तक झकझोरने वाला आलेख…

  38. मनीषा जी !
    समाज का उत्तम चित्रण पेश किया आपने ।
    समाज में यही हो रहा है, बलात्कार के दोषी पुरुष है और गलत नजरिये से सिर्फ महिला को देखा जाता है ।
    आलेख में समाज का सही चित्रण है ।

  39. manishaji! apke is sach ko padhkar man me ajeeb si duvidha paida ho gayee hai khud purush hote huye bhi mujhe purusho se nafrat karne ka man karta hai aisa nahi hai ki sirf ladkiya hi chhote me in sabka shikar hoti hai balki chhote ladke bhi in ghatnao ke shikar hote hai, par mai aapse ye jaroor kahna chahunga ki har aadmi ek jaisa nahi hota isliye ham har purush se nafrat nahi kar sakte aur apke sawalo ka dawab ye hai ki ha vo sab balatkar tha aur aaj hamare samaj me har taraf har kahi aisi ghtnaye jaroor hoti hai hame jaroorat hai apni mansikta ko badlne ki aur ham agar apne dhrmgrantho ko bilkul sahi tarike se padhe to har dharmgranth me aurto ko bahut hi uncha sthan diya gaya hai, par hamara ye samaj jisme aurat aur mard dono shamil hai in bato ko tak pe rakh kar aisi ghatnao ko janm deta hai aur ant me apko badhai ki apne itna katu satya bina kisi hichak ke sabke samne rakha aur sabko sochne par vivash kar diya.

  40. nice

  41. Kadachit isi praker ki ghatanau ke karan hi (child girl) miritu dand ki mang utoha rahi hai

  42. आज औरत का दर्द पूरी तरह बाहर आ गया है।

  43. Sahi kaha aapny mahilaon sambandhi apradh rokny ky liye hamy apny bacchono ko khaskar ladko ko acchy sanskar dana hoga , ladko ko mahilaon ki ijjat karna sikhana hoga, bahut lambi ladai hay, par mye jarur ic ladi ko jetunga .

  44. इससे अच्छा, सच्चा और तीखा प्रहार नहीं हो सकता है……..आपके लेख को पढ़ कर पूरी जीवनी सामने घूम गई……ऐसा नहीं है की ऐसा केवल लड़कियों के साथ ही होता है…….ऐसा छोटे बच्चों के साथ भी होता है और दोनों, लड़कियां और छोटे बच्चे बहुत बार लोक-लाज के भय से या अपने घर वालों के मान को रखने हेतु अपने होंठों को सील लेती हैं…….परंतु ये सब बलात्कार ही होता है जिसको कोई ना तो कोई मानता है और ना ही कोई ज्यादा तवज्जो देता है……..लोग कहते हैं की लड़कियों को ऐसा ड्रेस पहनना चाहिए…..वो लोग जरा ये बताएं की 3 साल की बच्ची को कैसा ड्रेस पहनना चाहिए……..जो लोग कहते हैं की मेरे बेटे तो छुट्टा साँड हैं…..लोग अपनी गाय रूपी लड़कियाँ संभाल कर रखें…….लेकिन वही कोई दूसरा साँड उनकी गायों के साथ ऐसा करता है तो छाती पीटते है अपनी……..

    अब जरूरत आत्ममंथन की है……..अब जरूरत एक सही बदलाव की है……..अब जरूरत एक प्रशासन की है……..जो घर से ही शुरू होता है…..प्रशासन कई प्रकार का होता है……..अब उस जरूरी प्रशासन को समझने का फेर है।

    इस सारगर्भित और सटीक लेख हेतु आपका बहुत बहुत आभार

  45. manisha ji, bachpan se lekar budhape tak ke hone wali in ghatnao ko,jise ignore karna humara sanskar ho gya hai, un pahluon ko aapne bhut hi shandar tarike se prastut kiya hai. aur himmat di hai un sabko jinhone ye ghatnaye jheli hai, per bhut si ladkiya hai jo in ghatnao ko avi bhi jhel rahi hai, aur unko ye bat kabhi pata hi nahi chal payi hai ki hum iska virodh bhi kar sakte hai. aur shayad pata nahi chal payegi kyuki sare log ye aalekh nahi padh payenge, to jarurat hai 1 aise manch aur medium ki jisse ki hindustan k sare logo tak ye awaj pahuche aur apne jeewan kal me hum in ghatnao se bahar aakar ek healthy sonch bana sake. sabkuch mindset per depend karta hai.
    Thankyou!!

  46. आपने जो भी लिखा वो सब बलात्कार की ही श्रेणी मे है ….उतना ही घिनौना ,शर्मनाक और अमानवीय पर बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है की उतना ही सहज स्वीकार्य भी …….परंतु अब इसके पूर्ण विरोध को दर्ज़ कराना ही होगा ।

  47. Ek bahut hi umda aalekh jiski prashansh kitni bhi ki jaye kam hai.. aapne har ek pahlu ko chhua hai.. Nice mam..

  48. itna bold artical pahle padne ko nahi mila..lekin bhaut had tak ye sahi hai..

  49. अद्भुत लेख है. भीतर-बाहर से झकझोर देने वाला. इसे स्कूली स्तर से कॉलेज स्तर तक पाठ्यक्रम में लगाया जाना चाहिए. इतनी साफ़ सोच, और तदनुरूप अभिव्यक्ति विरल है. मनीषा को बधाई.

  50. सच लिखा है। एक एक शब्द सही लिखा है। मानों हर लड़की अपनी गुजरी जिंदगी को पढ़ रही है। स्वभाव में तीखेपन के लिए धन्यवाद।

  51. Manisha ji ! Namashkar.
    waqt aur halat ko dekhker jo kuch kaha apne isme sachaii hai , isme zarra baraber bhi shak nahi hai, per kia yeh vichar shabd hi rahenge ? kia yeh katha ek achi si patrika me chap ker logon ka man bahlaegi? ya Facebook ka reader ise padha ker wah wah karega?

  52. uff…shabd nahee hain

  53. Ekdum sahi….
    jaise man k dard ko canvas par utaar diya ho.

    manisha aapki post samaj ko aaina dikha rahi hai….

    hum har chhoti chhoti baat ko bahot halke me le lete hain…
    Ek ostrich ki tarah.
    jisko lagta hai k apni aankhe band kar lene se wo shikar hone se bach jayega.

  54. ek jeevant prashn ke liye sadhubad

  55. bahut hi bebaki se aapne balatkaar ko praibhashit kiya! hatts off tou you mam!

  56. आप जो भी लिखती हैं वो लगभग मै हर लेख पढ़ती हूँ और हमेशा ये लगता है कि ये सरी बातें ये सवाल मै भी सोचती हूँ और ये मुझे परेशान करते हैं लकिन इतनी तीव्र तीक्ष्ण टिप्पणी ना तो लिख पाई और ना ही कभी बोल पाई और वो इसलिए कि हमारे तथाकथित संस्कार हमें बोलने नहीं देते कभी -२ लगता है कि आपकी लेखनी हम सब लड़कियों का हथियार है हमें साहस देता है और सोचने को मजबूर करता है ……..

  57. ufff!!!nishabd kar diya hai us lekh ne.. likhne aur share karne ka dhanyawaad..poore samaj ko, har stri, har purush, har pati, kar baap, har bhai, har bete, har padosi, har sahkarmi ko yeh padhna chahiye..

  58. मनीषा जी
    आलेख यथार्थ पर आधारित है ऐसे ही अनुभव शामिल भी है । सवाल जब उस जमीन से हो जिस पर हमारा समाज टिका है (संस्कृती और मूल्यों) तो प्रश्न अधिक गंभीर और अनुत्तरित भी होते है । बलात्कार के संदर्भों में ही देखे, कमजोर का बलात्कार ताकतवर करता है । चाहे वह महिला पुरुष का मसला हो सवर्णों और दलितों का मसला हो । जिस समाज में कमजोर को जीने की इजाजत ताकतवर की मर्जी पर हो उसमें दया और अनुमती होती है न कि अधिकार । ऐसे में भारतीय संविधान में जिस समाज की कल्पना दिखती है वह तो सभ्यता के जीवन काल में भी संभव नही लगता ।

  59. कटु यथार्थ को उजागर करती सार्थक पोस्ट्।

  60. bilkul, jab baat chal hi pade hai to mukammal behas hona chahiye. lakin taklif yeh he ke gambhir charcha karna kaun chahta hai?

  61. मर्मस्पर्शी ! स्त्री जाति की समूची पीड़ा , डर ,बेचैनी औरौर और तड़प का चित्रांकन।

  62. हाँ यह सब बलात्कार था. पड़कर निढाल पड़ गया..मेरी बहन के साथ बचपन में ऐसा हुआ ……उसने शादी नहीं की क्यों कि पुरुषों के शरीर से उसे घिन हो गयी थी

  63. manisha ji aapko pheli baar padha. aapke likhe har shab ko chaba-chaba kr padha…aapke swalo ka jawab shayad koi de pata. Rape pr bahut padha lekin aapke lekh ke tewar hi alag hai…bahut alag.

  64. manisha ji appne katu satya ko likha hai ,ajj bhi is jaghanya apradh ka itna virodh hua ,fir bhi ladki ka naam kahin bhi prakashit nahi kiya ,har apradh ke liye naari ko saza di jati hai .kiya uska naam gupt rakhna damini ke sath anyay nahi hai .ye purushpradhan desh itni asaani se apni mansikta chodne wale nahi hai .

  65. मुझे कभी यह समझ नहीं आया कि जब मुझसे कोई खतरा नहीं तो भी मै ही घर में कैद क्यों………

  66. सामंती प्रथा और पुरुषवादी सोच पर चल रही महान कही जाने वाली भारतीय संस्कृति पर हो रहे कुठाराघात का सजीव चित्रण और यथार्थ से परिचय करवाता आपका आलेख ……..

  67. लेख पढ़कर बहुत अंदर तक कुछ टूटते महसूस किया. सच…..नित नये तरीके से इस समाज मे बलात्कार होते हैं. अगर सच मे बात दूर तलाक जाए… तो कुछ बात बने. शायद ही कोई खुशनसीब लड़की होगी, जिसे उपरोक्त पारीथीतियों से दो-चार ना होना पड़ा होगा….. पुरुषों की मानसिकता मे परिवर्तन से ज्यादा जरूरी है पुरुषवादी मानसिकता मे परिवर्तन की. यह मानसिकता पुरुष मे भी हो सकती है…और महिला मे भी….

  68. Sach me dil ko chhu gaya. Samaj ki iss gandi sachhai ko bahut teekhe andaaz me ubhara hai.

  69. मनीषा जी मुझे तो पुरुष समाज के द्वारा जो स्त्रियो को जेवर पहनाये गये हैं उसमे भी छल ही नजर आता है जैसे कि पायल चूड़ी से स्त्रियो के आवागमन का पता चलता रहे इत्यादि । वैसे मुझे अधिक समझ नही है लेकिन मुझे यही लगता है ।जो प्राचीन काल चल रही है

  70. मैं तो स्तब्ध हूँ । उपयुक्त शब्द नहीं मिल रहे । लेखनी सीधे -सीधे दिल में कैसे उतरती है ,इस बात की गवाही यह बयान है । मुझे स्वयं पर बहुत नाज था कि शब्द मेरे गुलाम हैं …. और मैं जब चाहे उनका सटीक उपयोग कर सकता हूँ ….. पर … मैं …. आज यहाँ गलत सिद्ध हो गया …… भावनाओं …. पर ….. काबू …. पाने के बाद ……. फिर … कभी … टिप्पणी करूंगा …..

  71. chhote bachche to ladka ho ya ladki, dono hie shikaar ho jaate hain,(halanki ladkiyan jyadaa hoti hain ) lekin ab to lagtaa hai,jaise ladkiyon ke saath gangrape jaise case ladkon ke saath bhie naa hone lagen,gay maansiktaa jaise logon ki tadad jo badh rahie hai.:(

  72. Lajawab
    Shubhanallah
    Speechless

  73. Really great !

  74. ye is desh ki vidambana hai ki striyon/mahilaaon ki aapbeeti kahne ke liye bhi aalekhon ka sahara lena padta hai. unhein apne saath kiye gaye abhdra salookon ko khul kar kahne ki aazaadi bhi naheein par mardon/ladkon ko kuch bhi kar dene ki khuli chooth hai. maneeshaji, aapka lekh is desh ki maansikta ka aaena hai.

  75. शब्द …शब्द सत्य को बयान करता आलेख दिल-दिमाग को झकझोर गया ..सच में औरत की यह अकथ कहानी बहुत दर्दनाक है ….स्थिति भयावह तब और अधिक हो जाती है जब पिता ,चाचा , ताऊ या मामा जैसे रक्षक रिश्ते भी भक्षक बन जाते है तो बेटियाँ सुरक्षा के लिए कहाँ जाएँ ?? एक नर्क घर के अन्दर है और दूसरा घर के बाहर …कोई सुरक्षा का उपाय न देख घर के नर्क को ही झेलती हैं …स्त्री न सुरक्षित थी न है और शायद न होगी ..जब तक इसकी समूल जड़ें जो घरों में पनप रही हैं जड़ से उखाड़ न फेंकी जाएं …जिम्मेदारी सरकार की ही नहीं समाज के हर व्यक्ति की है ..हमें खुद की मानसिकता का मूल्यांकन खुद करना होगा …लड़के और लडकी दोनों को सुसंस्कार देने होंगे ….घर के हर पुरुष को संस्कारित होना होगा ..अगर पिता अपनी पत्नि ,बहन ,बेटी और अन्य औरतों का सम्मान नहीं न करेगा तो बेटा भी वही करेगा …माता पिता का आचरण भी संयमित होना बहुत ज़रूरी है ..अगर परिवार सुधर जाए तो समाज अपने आप सुधर जाएगा ….लेकिन यह असंभव तो नहीं बल्कि लोहे के चने चबाने जैसा अवश्य है …हमें हर संभव उपाय अवश्य करने चाहिए ……इश्वर मानव को सद्बुद्धि दे ..
    .
    ….डॉ रमा द्विवेदी

  76. बहुत खूब कहा है। सच बात तो ये है कि सिर्फ लड़कियों के ही नहीं लड़कों के जीवन में भी इस प्रकार के बलात्कार के अनुभव हैं, और मुझे लगता है काफ़ी हैं। अनिल यादव ने अपनी किताब में ऐसे एक अनुभव का ज़िक्र भी किया है। .. मगर यह सच है कि दिल्ली में हुई दरिंदगी के बाद जो बात निकली है.. उसे दूर तलक जाना ही चाहिए। सिर्फ उस मामले में ही नहीं, जैसे आपने गिनाए वैसे बलात्कारों के मामले में भी।

  77. मनीषा जी सादर नमस्ते बहुत ही मर्मस्पर्शी लेख है आपका आपको कोटि कोटि बधाई

  78. सच और गंभीर ……
    सचिन जैन

  79. manisha ji,
    mere pass shabd nahi hai lekin phir bhi itna kahungi ki aapne apne lekh me har aurat ki vyatha kahi hai ye mahaz lekh nahi samaj ka aaina hai auraton ke prati………….thx thx thx a lot jo aapne bahut hi bold ho kar suchhai likhi……………!!

  80. es baaat ko koi purush kbi b ni samjhega manisha ji…………….. ye sirf apni bahan betiyo ki
    salamati chahte h . kisi aur ki beti pr kya gujrati h wo ye kya jaane.bolte to sb h ki ye galat h but es duniya ka hr purush balaatkari h kisi n kisi roop main usne kbi na kbi kisi n kisi aurat ka ballaatkar to kia h

  81. I wish ye sachchai har ek insaan tak jaye…

  82. You may be bold! You may be bitter! You may be too straight forward! But nobody can deny that you’re true to the core!

  83. मेरा सलाम है आपको मनीषा जी …अब बाकि कुछ बचा नहीं कहने को ….!बलात्कार के हर पहलु को आपने बखूबी बयां कर दिया है …….!जो हम सभी को हमारे समाज को झकझोरने के लिए पर्याप्त है !साधू वाद !

  84. aurat ko devi ka darja dene wale desh me hi log kisi na kisi roop me use lootte hain..hr rishta apni sahooliyat k hisaab se uska shosan krta h,,ghr me baahar ,,hr jagah vo thagi jaati h,,,sbke liye jeene wali uss devi(so called) ka koi astitva ni hota…
    main MANISHA JI ko thank u khna chahungi..n i salute u coz itni bebaaki se sach khne ki taakat bht km logo me hoti h..aapka ye article kahin na kahin hr ladki hr aurat se juda hua h…
    A BIG SALUTE MANISHAJI…!!!

  85. Ye ek kadwa sach h jo kabhi samne nahi aata…sirf parde daal diye jate h par naa jane kitni ladkiyan aisi h jo is dard ko apne dil me daba kar jee rhi hongi…. bt it’s time to wake up and speak….. chup rahne se or chhupane se kuch nai hoga…

  86. Manisha ji ने किस बेबाकी से इतनी कडवी सच्चाई कह दी । इस बात को एक स्त्री ही कह सकती थी । इस से पहले एक बार तसलीमा नसरीन से अपनी आत्मकथा में अपने घर, पड़ोस और समाज के इस तरह के कुछ वास्तविक पात्रों को नामजद कर अपनी बात कही थी । परिणाम यह हुआ की वो अपने ही घर से दरबदर हो गयी और अपने ही वतन से जलावतन कर दी गयी । यह शब्द अभी तक हमारे घर, परिवार अथवा समाज में अकथनीय था, हमें उम्र के अपने इस पड़ाव पर भी बोलने में संकोच होता था और है लेकिन अब कितना सामान्य हो गया है की अब बच्चे बच्चे की ज़बान पर है । इस के लिए कौन दोषी है – घर, संस्कार, शिक्षा, समाज, नेतृत्व अथवा एक वर्ग समूह । कठिनाई यही है की किसी भी समस्या के समाधान की बात घटना के घटित होने पर ही जोश और खरोश से की जाती है और समय के साथ वो ठन्डे बस्ते में चली जाती है और हम सब अपने अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं । अब भी देख लें – बात कितनी दूर तलक जाती है ।

  87. आपने जो भी लिखा वो सब बलात्कार की ही श्रेणी मे है ….उतना ही घिनौना ,शर्मनाक और अमानवीय पर बेहद अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है की उतना ही सहज स्वीकार्य भी …ये सच है हम ही अपने बच्चो को डरना सिखाते है

    कभी न सोचो हम छोटे है
    डट कर के संघर्ष करो !!
    एक नन्हा सा दीपक देखो
    अन्धकार से जूझ गया !!

  88. Kewal lekh likhne aur use padhkar wah wah karne se kuchh nahi hoga jab tak “ye stree hai” aur “ye purush hai”, “ye upbhog ki vastu hai” aur “ye upbhokta hai” ka bhed nahi mitata tab tak koi bhi lekh, andolan, kanoon kitna hi sir patak le badlao aana namumkin hai. In sab baton ko har mata pita jab tak apne bachchon chahe wo ladka ho ya ladki unhe samjhayenge nahi tab tak koi badlao aane ki ummid karna mushkil hai. Har advertisement me mahilaon ko upbhog ki vastu ke rup me pesh karne wale bhi jimmedar hai. Opposite sex ko attract karne ke liye istemal kiye jane wali chijo ka vigyapanon par bhi rok lagana hogi.

  89. मनीषा, हमारा समाज ऐसा ही है…… और तुम सच इतना तीखा लिखती हो कि चुभ जाता है l

  90. mera dil ro pada ise padhke ,,sach hai aaj ise padhne ke baad mujhe apna bachpan aur jawani yaad aa gaye , ye sab kareeb kareeb mere saath bhi hua hai ,,rishte ke dada ji ne mere saath galat harkat karne ki koshish ki jab main sirf 11 saal ki thi ,papa the nhi mom office jati thi ,,aur bhai bahr khelne chale jaya karte the
    main ghar me akeli rahti ,us douraan tution teacher se leke rishte ke cacha mama ,even dadaji ,aur pados ke ladke fayeda uthane me rahte mujhe kuch pta na tha ki ye cahte kya hai , bhagwaan ne mujhe unse mahfus tho kar liya ,but dil me nafrat tab ho gai purush samaj se jab maine inki in harkato ko samjhna shuru kiya , mom akeli thi is karan meri shadi jald kra di gai ,sirf mujhe bachne ke liye ,
    aap sochiye ye bachna hua ya maar dena ,, but kahin na kahin har ladki ko ye face karna hi hota hai ,
    aaj aisa lga ki koi hai jo hamari tarah hai ,jiske dil me wo pain hai jo mere hai ,sach ,

  91. Manisha ji ne jhakjhor dene vala lekh likha

    Bahut sahasik lekh likha hai aapne

    Apke lekh aaise hote hai jinpe her kisi ko sochne ko majboor ker deta hai

    Kitne staro pe ak mahila sangharsh kerti hi uska virat chitran apne kiya hi

    Apki ye bat nischit taur se door tak jayegi

  92. outstanding piece of work ….. naaaaaaaaa………… i must say outstanding observation of this hypocrite chauvanist society and most importantly the best ironical words used to compile , whole artilce.

    grand salute to you mam.

  93. Comment…kya karoon…..mine dhyan de padha……itna kahoonga tarkon aur daleelo k aadha par court me sachchai badaldi jati hai…..hamare purvajon ne v aise aise dharmagranthrupi tark aur daleel banaye hain k bas….par itihas ka ye sa.kraman kaal sab saaf kar dega…i m possitive….

  94. Manishajee, very realistic, touching, thought-provoking article/ story/…This is sadly, the state of affairs in India…not only today but since time immemorial. Humlog padhte hain Sunderkand parantu in real life, hum Mahabharat ke patra banker Cheerharan(in any form) karne se zara bhee nahin chookte. You have an appeal in your diction, style and lucidity is spontaneous…..I hope you do some creative writing, too.Please do write more… With kind regards…

  95. jabardast

  96. jabardast post hai.

  97. मनीषा जी
    इतना निर्भीक और झकझोर कर रख देता है यह आलेख और आपका लेखन …..इस हिम्मत और जज्बे के लिए आपको सलाम

  98. मनीषा जी आपने इस तरह के विषय में बहुत ही बेबाक लिखा है, उम्मीद है आपकी कलम की तुर्शी इसी तरह बरक़रार रहेगी

  99. Manisha pandyaji ka Alekh..’Ek Akath Sabd ki Jivni’ padhkar man andar tak peeda se hil uthaa. Alekh kaa ek ek shabd is khokhle samaj ki kamjor neev ko jhajhkorne mai saksham hai. Purush ki is vikrit mansikta ke liye bhut had tak hamare priwaar or samaj ki thothee manyataye jimmedar hain, jo istri aur purush mai janm se hi bhed karti hain. Prakrity pradatt satay hai ki istri kabhi balatkar nahi karti, vah tau aakarshit karti hai aur purush us aakarshan ko apna janmsidh adhikar mankar nari ko apni bhogya man beithhta hai. Istri jaati ki smoochee peedaa, dar,tadap ka marmisparshi chitrankan karke is khokhle samaj ko aayina dikhane mai saksham is bebaak aalekh ke liye mai Manishaji ki aabhaari hun, jise padhkar pariwaar,samaj aur prashsan..sabhi aur aatmmanthan ki aavshyakta hai hone lagi hai.

  100. akath ko kya kahe sab kathya ho gayaa maine likha tha kabhi darpan jhotaa hai par ab sachch ho gaya
    sahitya me jitna padhte hai lagta hai kuchh chhuta hai ya nagn satya ko chhupakar sabhyataa ke mane batlanaa hi unka uddesya ho sachayee jo aapne likhi hain prakhar lekhni ko salaam yah awasya naye yug ki lekhan vidhi ki pratinidhi rachna rahegi

  101. शायद बहुत कुछ सोचने को विवश हो गया हँू,भाव को शब्द देने में असमर्थ हँू…

  102. ek ek akshar sahi aur laga pichli zindagi ke sach samne aa raha hai ..lagbhag har ladki inhi balaatkaariyon ke beech parvarish pati hai .agar parivaar ki roodhivadita bolne nahi deti ..jise darna chahiye wo nahi darta jo bhugatti hai wo darti hai ..aisa hi kuch likhamere apne panno mei barso se band hai magar dar ..ki log kya kahengein ..kya samhengein …use baahar nahi laa paya …bahut nishpakshata se likha hai Manisha ..kaas jinhe samajhna chahiye we samajh jaye ..sudhar jayein ..

  103. Manisha ji
    Agree with u.

  104. Very relevant post Manisha didi.
    These experiences through which any women undergoes throughout her entire life effects her overall psyche badly. She experiences all these because of being born as a women only. I can guarantee that there is not even a single women in this entire world who can claim that she never faced abuse, she never was molested, none we can find.
    None of these experiences a women can forget, all these linger in her memory forever.But in spite of all these bitter horrible experiences women remain loving and caring for everybody.
    Most sadistic fact is that many males who just pretend to be gender sensitive or involved in the feminine movements are also more or less involved in the exploitation of women either physically or emotionally.

  105. What a wonderful and bold article, Manisha Ji. I too have lived in Bairahna locality, where u used to live along with your father and mother. These are the horrible experiences which quite a number of girls experience but they rarely dare to reveal. It emboldens the wrong-doer and ultimately what happens is now well known.
    Thanks a lot for making bold revealations, a part of which was published in Hindustan Hindi at Allahabad. Wonderful, really I do not have words to express my feelings. Well done. You will go a long way.
    Rajesh Kumar Pandey, advocate high court Allahabad and Law Reporter Hindustan Times, Allahabad

  106. your pen is mighter than all

  107. don’t know wat 2 say………speechlesss…………………..
    pta hai actually problem kya hai, yeh ek aisa topic hai jiske ke baare main koi baat nhi karna chahta n even u try to talk about it dere are million people who pull u behind………salutes u ………….bcoz isse achcha content i hve not read before
    Feel ashamed to be part of this society, where womens are blamed to everything …………………real problem is lies parenting n socilaisation of people bcoz it is male chauvinistic society………………..but finally it is tme fr parivartan ………….n one day we will be able to do so…………

  108. वाह मनीषा….वो सारे सवाल एक साथ उठा डाले जो दरअसल जि़ंदा है और अनुत्‍तरित भी आज त‍क….। वो सारे सवाल जिनको आम लड़कियों से ख़ुद से भी पूछना बंद कर दिया है, उनकी मांओं ने भी और परिवारों ने भी…और अगर कभी कोई पूछ ले भूले से तो संबंधों में दरार आती है….और संभ्रांत परिवारों में पुरूषों और उम्र की भूल के मान कर माफ कर दिया जाता है मगर स्‍त्री के लिए शरीर को बचाए रखने का उपदेश दिया जाता है और तरीके बताए जाते हैं….।

    मन बहुत बोल रहा है और समय है कि कह रहा है कि टिक् टिक् कर रहा है….अद्भुत। दुनिया को और खासकर भारतीय समाज को आज इसी प्रखरता के साथ मौन और सोचने को मजबूर कर देने की जरूरत है।
    और मनीषा, ये आज की बात नहीं है, पांच हज़ार सालों से हो रहा है औरत के साथ…..और केवल आम औरत के साथ नहीं, राजकुमारियों के साथ भी…..

    वो कहानी फिर कभी….।
    अनुजा

  109. lekh me un sawalo ko uthaya jo logo ko janan or samjh jaruri hai aab tak sirf mahila ka sharir hi balatkar ke liye hai , hinsh ke liy hai to julmil bahar Qu hai
    aap ke lekh ne jaha ko jagaya hai mansik rogo ko bataya hai thanks aapne itan kulkar likh hai

    Aloka Ranchi

  110. क्या ये सब बाते सत्य हैं। मैंने आजतक ऐसा कभी नहीं किया और कभी ऐसा सोचा भी नहीं। जहां तक मुझे लगता है कोई भी माँ-बाप अपने पुत्र को ऐसे कार्यों के लिए नहीं छोड़ते। मैं इस पृष्ठ पर पहुंचा क्योंकि मैं आसाराम के कथन चकलाघर का अर्थ जानना चाहता था। जब मुझे ऐसे सरल शब्दों का अर्थ ही ज्ञात नहीं होगा तो ऐसा कब और क्यों करूंगा। लेकिन इस तरह के लेख अवश्य ही इस बात को बढ़ावा देते हैं।

  111. mam, mne y jb lekh pdhna strt kiya to pta hi nhi chla ki pura pd hi diya ek br m jbki ise phle dekhkr lga ki bhhhtttt bda h aadha pd leti hu.but jst i wld lyk to say u dt u r fantastic vidhushi.
    with best regards
    kavita

  112. butifull stori

  113. bahut achey bhawnatamak lekh hai… Aur hamare bharat jaise desh me jaha purush pardhan samaz hai waha puruso ki rape jaisi mansikta ek rog ke saman hai. puruso ko insaaniyat ke liye aur sabhy samaj ke liye nari ka poora samaan kerna chahiye Aur nari ko aage badhne ke liye,nari ko saksham banane ke liye poori imaandaari se apni bahan betiyo ko saman avser dene chahiye Aur saath hi ye nahi bhoolna chiye ki aurety es srishti ki aatma hai ,es srishti ka aadha hissa hai.. Aurto ki khusi ,nirbhyta ,sammaan me hi samaz ka kalyaan hai….. BEST WISHES

  114. dear didi…

    aap ke lekh ki tarif kin sabdo mai karu..sach to ye hai no word to explane
    aaj up ki tasweer dekhi man bachen ho chala..un kayaro ke liye ek baat man mai chal rhi hai..ye to sach hai unki paidaish maa ki kokh sai hui hi nhi hogi…bhagwan ne unko esse hi neche fak diye honge..
    aaj maa nahi bacha payenge to kal maa kanha sai layenge..

    mujhe bahut khusi hui didi aap ke lekh ko padkar…our yakinan kah sakta hu jo log so rhe hai o bhi aap ke lekh sai jag jayenge……

    pranam
    aapka anuj
    r.k

  115. manisha ji
    bahut achha likha hai

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