लॉन्गफ़ेलो का शहर छोड़ते हुए : भारतभूषण तिवारी
फिर मदर इण्डिया
तुम क्या कभी सोचोगे
उन आँसुओं के बारे में
जो उस दिन शायद अख़बार पर ही टपके होंगे
ख़बर पढ़कर
मुझसे सिर्फ तीस-पैंतीस किलोमीटर और
महज दो-तीन सालों के अन्तर पर पैदा होकर भी कितने अलग हो यार!
शायद तुम न जान पाओ
कितने महीने लगे होंगे
या लगे होंगे साल जमा करने में
फल वाले, सब्जी वाले, किराना वाले से
एक एक पैसे के लिए भाव-ताव कर
बच्चे का मचलना डेरी मिल्क के बदले सन्तरे की गोली से शान्त करवा कर
भारी थैलों के साथ बिना रिक्शा किये
पैदल घर आकर
नयी साड़ी, कंगन या मंगलसूत्र खरीदने का मन मार कर
मदर इण्डिया नहीं देखी होगी तुमने?
या शायद देखी भी हो
खुद ही जुत गए?
अनन्ता कृष्णा कोरडे!!!
तुम हो सकते थे
लोणी के भीमराव किसनराव कुबड़े
या
सावनेर के सतीश श्रीराम मेश्राम
या
एकोंबा के भाऊराव पाण्डुरंग खंडारे
जो सोलह हज़ार छह सौ बत्तीस[i] की फ़िगर का हिस्सा हो गए.
मगर तुम तो हीरोइक्स पर आमादा थे
तुमने मदर इण्डिया देखी हो या नहीं
मगर तुम्हारे इसी हीरोइक्स की कसम
उस मदर इण्डिया ने मदर इण्डिया ज़रूर देखी होगी
तभी तो तुम्हारे कन्धों से जुआ उतार कर
नर्गिस हो गयी
अपनी जमा-पूँजी देकर
हमारा बेल आउट कर गयी.
विली पीटर के लिए
उसे देखने के लिए
किसी नदी की परिक्रमा नहीं करनी पड़ती
और न ही वो आता है
किसी गढ़ के किसी मंदिर में रोज़ फूल चढ़ाने
मगर अश्वत्थामा की तरह
वो घूम रहा है
नॉरमण्डी, हलब्जा, फालुजा, एश्कोल, बीत लहिया
और न जाने कहाँ कहाँ
स्मोक के अलावा वो स्क्रीन करता है
उस पार की
पीड़ाएँ, चीखें, चीत्कारें भी
तब तक जलता रहता है, बनी रहे जब तक
घृणा की प्राण वायु
उसके स्पर्श से
बनता है पहले चट्टा
जो कुछ ही घण्टों में घाव में बदल जाता है
चौड़ा….
और गहरा…
भीतर रिसता जाता है
और शुरू हो जाता है भीतर
ऊतकों का होलोकॉस्ट!
अब्दुल रहीम ओ ज़ाहिद ओ शाहिद ओ हम्ज़ा……!
जब तुम्हें मिला था
विली पीटर[ii]
तो क्यों नहीं कहा उससे
वाइल्ड पिच का, या वाटर पोलो का, या व्हाइट पेपर का, या वॉशिंगटन पोस्ट का
या और किसी ट्रिविया का
प्रतीक होने के लिए?
लॉन्गफ़ेलो का शहर छोड़ते हुए
(एंड डिपार्टिंग,लीव बिहाइण्ड अस / फुटप्रिंट्स ऑन दि सॅंड्स ऑफ टाइम)
सुबह साढ़े-आठ से नौ के बीच का समय
वेस्टब्रुक स्ट्रीट पर
जल बुझ रही है बत्ती
याद दिलाने के लिए कि यह बच्चों के स्कूल जाने का समय है
और वाहनों की गति धीमी रखी जाए.
धूप खिली हुई है और
साठ के करीब का वह क्रॉसिंग गार्ड
स्टॉप की झण्डी हाथ में लिए, ट्रैफिक रोक कर
बच्चों को सड़क पार करने में मदद कर रहा है.
आसमान साफ़ है.
और मेरी कार के भीतर
तेज़ बारिश की चेतावनी
लगभग चीखते हुए दे रहा है
डिलन.
उस आदमी की शक्ल मेरे पिता से काफी मिलती है
बर्गर किंग में काम करता है
मेरा यह गोरा अमेरिकन ताऊ या चाचा.
उस औरत की शक्ल मेरी माँ से बिल्कुल नहीं मिलती
अपने सिर पर बुर्के के अलावा
और बहुत कुछ ओढे
मॉल के फ़ूड कोर्ट में टेबल साफ़ करती रहती है
मेरी यह काली अफ्रीकी खाला.
शहर छोड़ते हुए
याद आ रही है वह शाम
जब बहुत सर्द हवा चल रही थी
जब पार्किंग भी नज़दीक ही मिल गयी थी
अन्दर जैज़ पर झूम रहे थे हम
बाहर बैठे
उस अधेड़ भिखारी और लॉन्गफ़ेलो के पुतले से बेखबर.
लिंग निर्धारण
ऑफिस से घर लौटने के बाद दरवाजा खुलने में देर होने पर
गाड़ी पार्क करने के लिए जगह न मिलने पर
घंटी बजती रहने पर भी किसी दोस्त के फ़ोन न उठाने पर
या तुम्हारे गुस्से में ही कुछ कह देने पर
बहुत गुस्सा आता है
या गुस्सा आती है भी कह सकते हैं.
गरीब मछुआरों के समुद्री डाकू बन जाने पर
दढ़ियल डॉक्टर के जेल में सड़ते रहने पर
समर्थन मूल्यों की असमर्थता देख कर
बिल्कुल गुस्सा नहीं आता
या गुस्सा नहीं आती है भी कह सकते हैं.
गुस्से का लिंग निर्धारण न कर पाने पर
गुस्सा आता है
या गुस्सा आती है भी कह सकते हैं.
ग़ैरवाजिब
वह रेल के डिब्बे में रहता था.उसके माता-पिता, भाई-बहन भी रेल के डिब्बे में रहते थे. हम सब अपने माता-पिताओं, भाई-बहनों के साथ रेल के डिब्बों में रहते थे. वह कभी प्लेटफॉर्म पर तो कभी बाहर की दूकानों तक घूमने चला जाता था. मगर रात में वह रेल के डिब्बे में लौट आया करता था. हम सब घूम-फिरकर रात में रेल के डिब्बों में लौट आया करते थे. वह बेरोक-टोक एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे में घूमता रहता.वह इस बात से बहुत खुश था कि रेल के डिब्बे में कोई उस से टिकट नहीं पूछता है. हम सब बेरोक-टोक घूमते हुए इस बात से बहुत खुश थे कि कोई हम से टिकट नहीं पूछता है.
वह हमेशा रेल के डिब्बे में ही रहना चाहता था. हम सब हमेशा रेल के डिब्बे में ही रहना चाहते थे. उसका बाप चाहता था कि वह हमेशा रेल के डिब्बे में ही रहे. हम सब के बाप चाहते थे कि हम हमेशा रेल के डिब्बों में रहें.
उन सबका ऐसा चाहना ग़ैरवाजिब था.एक का चाहना दूसरे के चाहने से अलग हो सकता है. एक का चाहना दूसरे के चाहने के आड़े भी आ सकता है.सब लोगों का एक जैसा कुछ चाहना खतरनाक हो सकता है. हो क्या सकता है, खतरनाक होता ही है.
अब वह रेल के डिब्बे में नहीं रहता. लेकिन अब भी कुछ लोग रेल के डिब्बों में रहते हैं, दिन भर घूम-फिर कर रात में रेल के डिब्बों में लौट आया करते हैं; बेरोक-टोक घूमते हुए टिकट न पूछे जाने पर खुश होते हैं.मुमकिन है अब भी उनमें से कुछ हमेशा रेल के डिब्बे में ही रहना चाहते हैं; अब भी उनके बाप चाहते हैं कि वे हमेशा रेल के डिब्बों में रहें.
रोज़ दिसम्बर
रथ हो गई थी हर स्वराज माज़्दा उन दिनों
हैदराबाद से चलकर नागपुर के रास्ते हज़रत निज़ामुद्दीन को जाने वाली गाड़ी
अयोध्या की ओर मुड़ गई थी
उसे छोड़ समूची आठवीं क्लास हिन्दू हो गई थी
और हिन्दू होते ही आठवीं क्लास के लिए उससे लाजिमी था पूछना
-छह दिसम्बर के रोज़ तेरे घर में कोई रोया था क्या?
छह दिसम्बर के रोज़ जो रोई थी बुढ़िया
पिछले साल दिसम्बर ही में अल्लाह को प्यारी हो गई
30 सितम्बर 2010 को ख़त्म हुई तिमाही में
स्वराज माज़्दा लिमिटेड कंपनी ने नौ करोड़ तीस लाख रुपये का
शुद्ध मुनाफ़ा कमाया
और मैं अब तक फ़ैसला नहीं कर पाया
कि उस के फलों के ठेले पर आम हिन्दू होते हैं या सेब मुसलमान
दिसम्बर में सितम्बर है
सितम्बर में दिसम्बर है
इन दिनों
और मध्य प्रदेश वाले हैं कि दक्षिण एक्सप्रेस को
सदर्न ही कहे जा रहे हैं
जो गूँजी थी नेहरू मैदान वाले मुशायरे में उस दिन
फिज़ां में अब भी है इन्दौरी शायर की वह चीख:
इस बस्ती में रोज़ दिसम्बर आता है