प्राथमिक शिक्षक: प्रभात
महावन : तीन कविताएं
1
कुत्ता
वफादारी के गुण के बावजूद
रोटी जब मिलती है
जब वह टांगों में पूंछ दबाता है
मालिक के सामने
बार-बार पूंछ हिलाता है
पांवों को जीभ से चाटता है
इतना करने पर भी
मालिक रोटी को हाथ में पकड़े
अपना मनोरंजन करता है
उसकी बेचैनी और
खाना पाने की उत्सुकता से
अंत में ऊबने पर वह रोटी फेंकता है
दूर दालान में
कुत्ता फिंकी हुर्इ रोटी को
ठीकठाक सी जगह में बैठकर खाता है
दयालु मालिक बैठा देख रहा है
वफादार कुत्ता पेट भर रहा है
2: खरगोश
तुच्छ नहीं
नन्हा प्राणी हूं
इस महावन का
चाहकर भी
शेर की तरह दहाड़ नहीं सकता
हाथी की तरह ध्यान नहीं खींच सकता
बाघ की तरह अपने भोजन को
वश में नहीं कर सकता
कभी भी कोर्इ बाज मुझे ले
उड़ सकता है आकाश में
फिर भी हूं
अभी हूं
नन्हीं धुकधुकियां शरीर में लिए
अभी हूं
बहेलिए आ गए हैं मुझे खोजते
उनके पगों की दाब सुनते हुए हूं
कितने क्षण शेष हैं मेरे पास
बहुत सारे कि एक भी नहीं
3: मृग
फेंके हुए पत्थर से कटी है गर्दन
कि लोहे की भौंथरी धार से
कौन इस तरह घायल कर
गायब हो गया है इस पार से
यह मृग प्राण छूटने की प्रतीक्षा में
पड़ा है कब से
किसान के कच्चे घर के पीछे
किसान और उसकी पत्नी
देख जाते हैं बार-बार
देखो बेचारा कबसे
दम साधे आंखें फाड़े पड़ा है
प्राण छूटने की प्रतीक्षा में
पास के मृत कुंए की जगत पर खड़ी स्त्री
देख-देख व्याकुल हो रही है
कितना खून बह गया है
गर्दन लथपथ है
अपने ही खून से सिंची है
जो खून भीतर को सींचता था
अब बाहर को सींच रहा है
फिर उस स्त्री के मुंह से निकला
देखो इस बार फिर तड़पा
और यह आखिरी बार
मुंह से लहू भरी हवा निकली
गुजरते राहगीरों ने देखा बहता खून
उनके मन में गंगा नहा आने की
पवित्र इच्छा जगी
कविता में अनेकानेक जगह ‘र्’ का प्रयोग है जो मेरे ख़याल से प्रिंटिंग की गलती है, सुधार लें.
Umda
Prabhat ji bisfotak rup se samvedanshil hai ye kavita.
मुझे आश्चर्य है कि प्रभात हमारे समय में हैं और कविता भी लिख रहे हैं.
वस्तु स्थितियों का समग्र साक्षात्कार कराने वाली सशक्त कविता-श्रृंखला रचने के लिए कवि को हार्दिक बधाई .
dhaansu kavita hai prabhat
facebook par ap kis name se hai prabhat ji
kavita shikhchak ke sarokaron ko bhee abhivyakt karti hai yah achchee bat hai
यह भाषा मुझे पसन्द आई. कमाल की ज़िन्दा भाषा है. और इस का पाठ कवि के अपने टोन मे , क्या मज़ेदार होगा . आभार लेखक का और प्रस्तोता का .
jinda dhardar kavita… ! yah painapan,yah saralpan,yah sahajata…bhav,bhasha…sab jinda…essi lekhni ko dhardar lekhnion kee umra lage… prabhat yah ujala baneye rakhana…iss ujale kee sakhat jaroorat hai%
Prabhat Ji Hamare Samay K Bahut Achhe Kavi Hain. Is Lambi Kavita Mein Sikchan Sanstano Ki (Dur)-Dasha Saf Dekhi Ja Skti Hai. Prabhat Ki Bhasha Aur Kahne Ka Dhang Nirala Hai. Badhai.
बहुत ही अच्छी कविता है. मराठी के रमेश इंगले उत्राद्कर द्वारा लिखी गयी कादंबरी ‘निशानी… डावा अंगठा’ की याद आयी.अर्थात कविता की अपनी एक अलग पहचान है.
शिक्षक और व्यवस्था के बारे में बड़े गहरे कमेन्ट दोनों का समान सूत्र है. कविता में किया गया बोली भाषा का प्रयोग बहुत प्रभावित करता है. धन्यवाद.
Mihir, Thanks for Recco.
इस लंबी कविता को पढ़ कर कई शिक्षकों के चेहरे आँखों के सामने घूम गए जो इन चरित्रों पर फिट बैठते हैं …. एक बेहतरीन कविता के लिए प्रभात जी का शुक्रिया .
bahut hi dhardar kavita. aaj siksha ka swarup kuch esi tarah ho gya hai. sarkari sansthano ka jo hal hai uska pura byora yaha prabhat ne rakh diya hai. sadhu…. sadhu….prabhat.
प्रभात जी,
सर्वांगीण यथार्थपरक रचना के लिए साधुवाद! बात करना चाहता हूँ , फोनं. दें.
Prabhat ji – aap ki sari uplabdh kavitayen padhta hoon – hamesha hi achchhi lagti hain – par iska to jawab nahin. Raag darbari ki yaad dila gayi. Dhanyawad.