कचनार का पीत पातः विनोद पदरज
कचनार का पीत पात
एक बूढ़ा और एक बुढ़िया
बैठे हैं चबूतरे पर
जैसे वॉन गॉग की पेंटिंग के एक जोड़ी जूते
जिन्हें बदहवास ज़िन्दगी ने पहना बरसों बरस
कौन स्त्री है
जो कद्दावर पेड़ की शाखों से
लता की तरह लिपट जाती थी
कौन पुरूष है
जो पूनम का चाँद देखकर
समुद्र की तरह लहराता था
वासना के प्रश्न ये निरर्थक हैं
सूर्य ढल रहा है
जिसकी ढलती हुई धूप में
एक ही बीड़ी पीते हुए वे दोनों
एक जैसी पोपली हँसी हँसते हैं
जिससे कच्चे दूध की गंध आती है
शिशिर की शर्वरी
अघाए लोगों को नहीं पता
कि खाने पीने पहनने ओढ़ने की मजेदार ऋतु में
जीर्ण शीर्ण कंबल में लिपटी एक बुढ़िया
सूर्य की प्रतीक्षा करती है रात भर
सुबह होते न होते
आ बैठती है वहाँ
जहाँ सबसे पहले आती है धूप
फिर तमाम दिन
जिधर जिधर धूप
उधर उधर बुढ़िया
अथवा
जिधर जिधर बुढ़िया
उधर उधर धूप नज़र आती है
मानों सूर्य ही
उसकी प्रतीक्षा करता है रात भर
और उदित होता है
उसको चौंतरे पर देख कर
पर एक दिन ऐसा हुआ
घनी धुंध थी चारों ओर
सूर्य छपटपटाता रहा
और उगा जब दूसरे दिन
व्याकुल बेचैन
ढूँढता था बुढ़िया को ऐन उसी जगह
जहाँ कुछ लोगों के बीच
एक युवक का मुंडा हुआ सिर चमकता था
पशु मेले में
वह राता और नीला
जिन्हें खींच रहा है नया मालिक
पाँव रोप रहे हैं
जेवड़ा छुड़ा रहे हैं
मार खा रहे हैं मगर
नट रहे हैं आन गाँव जाने से
वहाँ भी वही कड़ियल धरती होगी
वही हल का फाल
कंधों पर जुआ होगा ही
आर लगी पराणी भी
भूखों तो नहीं ही मरने देगा वह
हरा न सही
तूड़ा तो मिलेगा
पर उनकी आँखें नम हैं
और उस किसान की भी
जिसने इन्हें बेचा
वह उनकी पीठ पर हाथ फेरता है
पुचकारता है
टिचकारी देकर हाँकता है
छोड़ आता है कुछ दूर तक, कहता हुआ-
‘‘मारे मत रे इन्हें कसाई
प्यार से ले जा’’
जिस दिन चला था वह घर से
उस दिन चूल्हा नहीं जला था
दहाड़ें मार कर रोई थी बेटी
जिसका आर्त्तस्वर
गाँव के काँकड़ तक सुनाई पड़ता था
लौटने पर उसका सामना
कैसे करेगा वह
छोड़िए भी
इसे वे क्या समझेंगे
जिनके लिए
आदमी का अर्थ जानवर
और जानवर का अर्थ
फ़कत दूध और चर्बी और जूता है
शानदार कविताये,आप विनोदजी को सक्रिय कर रहे हैं यह प्रशंसनीय है.
wah!aisee hi kavitayen padhne ka mun rahta hi.
kitani bhawuk aur arthpoorn kavita hai pashu mele men
विनोद पदरज जी को पहली बार प्रितिलिपि में ही पढ़ रहा हूँ . इतनी अच्छी कविताओं और इतने समर्थ कवि से परिचय करने का आभार .
AAJ BAHUT DINON BAAD KAVITAYEIN PADHNE KO MILI . KAVITA KEE YAHA BADI AUR VASTAVIK BHAVBHUMI HAI
vinod padrajji ko kai varshon se pdhata raha hoon magar idhar bahut antaral ke bad padha aur haan der se bhi, PRATILIPI se jyada parichit nahin tha. Bahut hi sashakt kavi hain padrajji.