आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

जिस वर्ष भास की खोज हुई / The Year Bhasa was Discovered


(Kavalam Narayan Panikker’s production of Bhasa’s Karnabharam. Photo Courtesy Sangeeta Gundecha.)

1909 में त्रिवेन्द्रम के पंडित गणपति शास्त्री ने संस्कृत नाटककार भास के तेरह नाटकों की पाँडुलिपि – भासनाटकचक्र – की खोज की थी. इस असाधारण खोज की शताब्दी के अवसर पर हम भास के तीन आधुनिक निर्देशकों कावालम नारायण पणिक्कर, हबीब तनवीर और रतन थियम से हिन्दी कवि और संस्कृत अध्येता संगीता गुंदेचा के तीन साक्षात्कार प्रस्तुत कर रहे हैं. अपने अपने विलक्षण ढंग से इन तीनों दिग्गजों ने भास की पुनर्व्याख्या की है और ऐसा करते हुए ख़ुद नाट्यशास्त्र की भी. ये साक्षात्कार भास, नाट्यशास्त्र, यथार्थवाद और कई सुलभ द्विक विरोधों – लोक/शास्त्र, देसी/मार्गी, परंपरा/आधुनिकता, पश्चिमी/भारतीय – पर दुर्लभ अंतर्दृष्टि से संपन्न हैं. फीचर में भास के एक नाटक प्रतिमानाटकम् का गिरिराज किराड़ू द्वारा किया गया पठन भी शामिल है. In 1909, Pt. Ganpati Shastri of Trivandrum discovered thirteen manuscripts by the Sanskrit playwright Bhasa, the Bhasanatakachakra. Celebrating the first centenary of this extraordinary discovery, we present here Hindi poet and Sanskrit scholar Sangeeta Gundecha’s dialogues with three great contemporary directors who have staged Bhasa’s plays – Kavalam Narayan Panikker, Habib Tanvir and Ratan Thiyam. In their own unique ways, these masters have reinterpreted Bhasa and, in doing so, they have also reinterpreted the Natyashastra. These interviews are full of rare insight into Bhasa, Natyashastra, realism and many commonplace dualisms: folk/classical, margi/desi, tradition/modernity, Indian/western. The feature also has a reading of Bhasa’s play Pratimanatakam by Giriraj Kiradoo.

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भास की उपस्थिति: संगीता गुन्देचा

भास का लोकरंग: हबीब तनवीर से संगीता गुन्देचा की बातचीत

भास का अनुकीर्तन: कावालम नारायण पणिक्कर से संगीता गुन्देचा की बातचीत

भास की समकालीन व्याख्या: रतन थियम से संगीता गुन्देचा की बातचीत

मा/प्रति-मा: गिरिराज किराड़ू

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