आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

शक्कर के पाँच दाने / Five Grains of Sugar

अर्शिया सत्तार के अंग्रजी अनुवाद और मूल हिन्दी में प्रकाशित मानव कौल का नाटक शक्कर के पाँच दाने कई कारणों से पढ़ा जा सकता हैः इसके ‘नायक’ के नाम से हिन्दी कविताओं की किताब प्रकाशित है जिसमें शामिल कविताएँ उसके नहीं लिखी हुई है; उसका एक दोस्त जिस विदेशी भगवान की पूजा करता है उसका नाम ब्रूस ली है और गाँधीजी से मिल चुका राधे है जिसे गाँधी कहते हैं ‘अब मैं बहुत थक गया हूँ, अब तुम गाँधी बन जाओ’. राधे के सपने में आने वाले गाँधी भी एक पात्र हैं, उनकी मूर्ति पर एक सुबह बैठा कबूतर वही कबूतर है जिसका रूप घर कर गाँधी राधे के सपने से उड़ गये थे. अगर इतने सारे कारण नाटक पढ़ने के लिये पर्याप्त या गंभीर या पर्याप्त गंभीर ना जान पड़े तो आपको अपने बारें में गंभीरता से सोचने की पूरी आज़ादी है.

हिन्दी कवि, नाटककार और गाँधीवादी विचारक नंदकिशोर आचार्य से गिरिराज किराड़ू की बातचीत उनके नाटकों पर एकाग्र है और उनकी कु़छ प्रमुख थीमों जैसे व्यक्ति और सत्ता के संबंधों की समस्यात्मकता, स्त्री की पहचान और लेखन के एक बुनियादी मूल्य के रूप में मानवीय स्वतंत्रता पर फोकस करती है.

There are many seriously good reasons for reading Manav Kaul’s play Shakkar ke Paanch Daane published here in Arshiya Sattar’s English translation along with the Hindi original: the ‘hero’ has published a book of poetry but the poems are not his, one of his friends worships a foreign God called Bruce Lee, and Radhe to whom Gandhi says ‘Radhe, I am very tired. Now you become Gandhi’. Gandhi of Radhe’s dreams is also a character, a pigeon sitting on his statue is the one that Gandhi will change into and fly out of Radhe’s dream. If so many seriously good reasons do not seem serious, enough or serious enough then you are free to think seriously about yourself.

Exploring the Sakshi Bhava: Giriraj Kiradoo’s conversation with Hindi poet, playwright and Gandhian thinker Nand Kishore Acharya is focused on his plays and some of their recurrent themes: the problematics of individual-power relationship, identity of women and human freedom as a fundamental value in writing.

*

Click to Read

Five Grains Of Sugar: Manav Kaul

Exploring the Sakshi Bhava: Nand Kishore Acharya in Conversation

Leave Comment