किसी और भूगोल में / In Another Locale
हिन्दी पत्रकार-कथाकार अनिल यादव की भारत के पूर्वोत्तर की यात्रा कई तरह से विशिष्ट है – यह यात्रा ‘बेमकसद’ (पूर्वोत्तर से रिपोर्टिंग करके उत्तर-भारत के हिन्दी मीडिया में ‘स्टार’ बन जाने की विनम्र महत्वाकांक्षा को छोड़ दिया जाये तो) की गई, यात्रियों की जेबें लगभग खाली थीं और वे उत्तर-पूर्व के बारे में ‘लगभग कुछ नहीं’ जानते थे. वृतांत की यह पहली किस्त वहाँ समाप्त होती है जब यात्री उस देश पहुँचे पहुँचे भर हैं जहाँ ‘हरियाली का विस्फोट’ होता है.
किसी और भूगोल में बनते हुए आख्यानों के इस समुच्चय में इसके अतिरिक्त है भाश्वती का अपने दो अमेरिका प्रवासों के दौरान लिखा हुआ पाठ जो एक ‘इंटैलैक्चुअल डायरी’ की तरह विकसित होता है; चीन-यात्रा की स्मृति की ‘निजी’ प्रतिक्रियाओं का एक तरल जाल बनता हुआ प्रत्यक्षा का मोंताज और वियेना के छोटे कस्बों की विलक्षण मनुष्यहीनता और उनके विलक्षणतर सांस्कृतिक इतिहास को एक डे-बुक की संरचना में लिखता हुआ अशोक पांडे का गद्य. |
Hindi journalist/story-writer Anil Yadav’s journey to the North-East of India is special in many ways — the trip was made “aimlessly” (if one discounts the humble ambition of becoming a star in the Hindi media by reporting from the North-East), the traveler’s pockets were almost empty, and he knew “almost nothing” about the North-East. This first installment of his travelogue ends at the point when he has just reached that country where there is an “explosion of greenery”.
Besides this, we have Bhashwati’s “intellectual diary” about her two trips to the USA, Pratyaksha’s montage of memories from her trip to China, and Ashok Pande’s piece, written as a “day-book”, about the astonishing absence of people in the Viennese countryside and the even more astonishing cultural history of the place. Click to Readवह भी कोई देश है महाराज: अनिल यादव |