आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

वह: उदयन वाजपेयी

Pages: 1 2 3 4 5 6

कभी वह पास में फुसफुसाती है। कभी दूर से पुकारती है। कभी उसकी आवाज़ तने हुए धागे की तरह मेरे पास आती है। कभी ढीली डोर की तरह। अँधेरी रात की सरसराहट के बीच कभी मैं धागे में लिपटता हूँ। कभी डोर में बँधता हूँ। आकाशगंगा की शान्त धारा में वह सुनहली मछलियों के बीच तैर रही है। मेरे आँसुओं में कभी धागे बहते हैं। कभी डोर तिरती है।

Pages: 1 2 3 4 5 6

4 comments
Leave a comment »

  1. The beating of luminous wings in the void…is beginning to be heard in the new ‘ Veh’ poems. The passage leading out of the streets and alleys around here is green and blue and utterly silent. Writing, as if, on interstellar spaces, the poet is also able to create the cul-de-sac of the neighbourhood without turning it into images.

    These ‘Veh’ poems make you wait for more ‘Veh’ poems.

  2. कविता की यह एक ताक़त है कि वह हमेशा अर्थ में अपसरित नहीं होती. इस समय लिखी जा रही ज़्यादातर सफल कविताओं के भीतर अर्थ में विलीन हो जाने की विवशता देखी जा सकती है. अब कविता के रचनाकार को कविता लिखना शुरू करने से पहले ही कविता की प्रक्रियाओं और परिणतियों के बारे में सब कुछ पहले से मालूम है. अर्थ अनिवार्यतः है और एक इलहाम की तरह है और हर आगामी के बारे में बारे में कवि जानता है. यहाँ निरर्थकता की वकालत नहीं है लेकिन अगर हर प्रदत्त पर शक करना है तो प्रदत्त सत्य पर, प्रदत्त अर्थ पर क्यों नहीं शक किया जाना चाहिए.

    और प्रदत्त अर्थ पर संदेह के आरम्भ के साथ ही उदयन वाजपेयी की कविता और उदयन वाजपेयी जैसी कविता को समझने-सराहने के औज़ार हमें हासिल हो सकेंगे.

  3. कविताएँ तो आसानी से समझ में आ रही थीं लेकिन शुक्ल जी की व्याख्या इतनी वायवीय है कि लगता है कुछ और गूढ़तत्व है जो हम देख नहीं पा रहे… आध्यात्म वग़ैरह की ओर संकेत है क्या शुक्ल जी ? कथित सफल कविता और उसके कथित अच्छे काव्यालोचन का एक कल्पित प्रतिपक्ष पहले रचा जाये …फिर अपनी भाषा और मेधा से उसे ध्वस्त किया जाये… यह भी नया ढंग है प्रिय कवि की प्रशंसा करने का… शुक्ल जी को भी बधाई… कविताएँ तो सुंदर हैं ही.

  4. both the poem and the two comments merits well as this will lead to a deep discussion is the poetry mere meaning or something beyond the word and meaning as a medium between the visible and invisible as beteween MOORTA AND AMOORTA sometime i think about AJNEYA because poetry is such an art which transcends the life and death just to quote MUKTIBODH contemplative sensibility and sensible contemplation

Leave Comment