आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

Because Monuments Are Improper: Pankaj Chaturvedi

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एक ही चेहरा

कुशीनगर में एक प्रसिद्ध
प्रतिमा है बुद्ध की

एक कोण से देखें तो लगता है
मुस्करा रहे हैं बुद्ध
दूसरे कोण से वे दिखते हैं
कुछ विषादित विचार-मग्न
तीसरे कोण में है
जीवन्मुक्ति की सुभगता –
एक अविचल शान्ति

कृपया इसे समुच्चय न समझें
तीन भाव-मुद्राओं का
केवल मुस्करा नहीं सकते थे बुद्ध

उनकी मुस्कराहट में था विषाद
और इनके बीच थी
निस्पृहता की आभा
अथवा मध्यमा प्रतिपदा

श्रेष्ठ है
पत्थर तराशने की यह कला
पर उससे श्रेष्ठ है
इस कला का अन्तःकरण
जो यह जान सका
कि वह तीन छवियों में समाहित
एक ही चेहरा था बुद्ध का

पहला सफ़ेद बाल

पहला सफ़ेद बाल
मुझे दिखा था भोपाल में

याद आया
बुद्ध के एक जातक के अनुसार
मिथिला के रजा मखादेव ने
देखा जब पहला सफ़ेद बाल
उन्होंने राज्य अपने बेटे को सौंपा
और स्वयं प्रव्रज्या ग्रहण की

इसी तरह एक बार
अयोध्या के महाराज दशरथ ने
मुकुट को सीधा करते समय
दर्पण में देखे सफ़ेद बाल
और राम के
राजतिलक का निश्चय किया

और मिलान कुन्डेरा की वह स्त्री
जो पन्द्रह वर्ष बाद
अपने प्रेमी से मिली
उसके सफ़ेद हो रहे थे बाल
इसलिए उसमें प्यार कि झिझक थी
या निर्वसन होने के लज्जा

मानो यह रहस्य खुलने पर
उसकी सुन्दरता का स्मारक गिर जाएगा
जो इतने लंबे अरसे से
उस पुरूष की
आत्मा में सुरक्षित था

मगर आखिरकार उसने फ़ैसला किया
प्यार का
क्योंकि ‘स्मारक उचित नहीं होते’
और स्मारकों से
अधिक महत्त्वपूर्ण है जीवन

मैं क्या करुँ
मैं न हो सकता हूँ प्रव्रजित
न किसी को बना सकता हूँ युवराज
अलबत्ता सौंदर्य के स्मारक में
स्वागत है तुम्हारा
पहले सफ़ेद बाल!

सन्ध्या

जीवन के बयालीसवें वसंत में
निराला को लगा –
अकेलापन है
घेर रही है सन्ध्या

बयालीसवें जन्मदिन पर
पुछा एक स्त्री से
कैसा लगता है
महाकवि की बात क्या सही है?

कहा उसने
बढ़ी है निस्संगता
और जैसे सांझ ही क्या
रात्रि-वेला चल रही है

बीच के इस फ़ासले में
और चाहे कुछ हुआ है
कम हुई है रोशनी
शाम का झुटपुरा
अब और गहरा हो चला है
कवि, जबसे तुम गये हो

न मेरे पास

न मेरे पास मोरपंख का मुकुट था
न धनुष तोड़ने का पराक्रम
कंठ भी निरा कंठ ही था
किसी के ज़हर से
नीला न हो सका

क्षीरसागर में बिछी हुई
सुखद शय्या नहीं थी
नहीं थी सम्पत्ति से मैत्री

देवताओं में इर्ष्या जगानेवाली
ऐसी तपस्या न थी
जिसे भंग करने के लिए
तुम्हारे प्रेम का
अभिनय ज़रूरी होता

ययाति की तरह यौवन न था
लौटकर आता हुआ उत्साह से
और वह कौशल भी नहीं
जो काँपते प्रतिबिम्ब के बल पर
किसी की आँख को घायल करे

तुम्हे मंत्रमुग्ध कर देने को
मेरे पास बांसुरी न थी
और न वह छल
जो सिर्फ़ जल का आवरण है
तुम्हारी देह पर
तुम्हारे स्वप्न में
भीगा हुआ कमल है

कुछ चीज़ें अब भी अच्छी हैं

कुछ चीज़ें अब भी अच्छी हैं

न यात्रा अच्छी है
न ट्रेन के भीतर की परिस्थिति

लेकिन गाड़ी नम्बर
गाड़ी के आने और जाने के
समय की सूचना देती
तुम्हारी आवाज़ अच्छी है

कुछ चीज़ें
अब भी अच्छी हैं

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