आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

The Missing: Mangalesh Dabral

This Winter

Last winter was difficult
Remembering it I shiver this winter
Though the days are not so severe

Last winter mother departed
A love letter went missing a job was lost
I don’t know where I wandered in the nights
The many telephone calls I made
My own things kept falling
All over me

This season I unpack the clothes worn last year
—Blankets cap socks a muffler—
I gaze at them intently
Sure that those days are past
This winter can’t really be as hard.

इन सर्दियोँ में

पिछली सर्दियाँ बहुत कठिन थीं
उन्हें याद करने पर मैं सिहरता हूँ इन सर्दियों में भी
हालांकि इस बार दिन उतने कठोर नहीं

पिछली सर्दियोँ में चली गयी थी मेरी माँ
खो गया था मुझसे एक प्रेमपत्र छूट गई थी एक नौकरी
रातों को पता नहीं कहाँ भटकता रहा
कहाँ कहाँ करता रहा टेलीफोन
पिछली सर्दियोँ में
मेरी ही चीज़ें गिरती रही थीं मुझ पर

इन सर्दियोँ में
निकालता हूँ पिछली सर्दियोँ के कपड़े
कम्बल टोपी मोज़े मफ़लर
देखता हूँ उन्हें गौर से
सोचता हुआ बीत गया है पिछला समय
ये सर्दियाँ क्यों होगी मेरे लिए पहले जैसी कठोर

Old Photographs

What is it in these old photographs
When I chance upon them I can’t stop looking
Is it the luminosity of youth alone
A full crop of hair a soft featured face
That still retains the traces of parental gifts
Eyes brimming with eagerness to see deep and far
Un-ironed clothes from those times
When life itself was in wrinkles

In this picture I represent my real self
Dream-like, wearing my heart on my face
With friends who share the same casualness
A light cloud that comes floating from somewhere
And rests a while
No hardness no cleverness
No greed in the eyes
The picture is of a morning at a street corner teashop
The world around it also transparent and simple
Like the teacup, the street, the morning
There are several such pictures that I occasionally show
To people who come visiting

What has passed I now avoid being photographed
I say leave it
I don’t photograph well
I get uneasy as if
There is a mirror before me
Is it fear that I won’t look as I did
Will my face reveal the harshness of the world
The cleverness and greed one sees everywhere these days
To resist this I sometimes try
To use old photographs as only armour

पुरानी तस्वीरें

पुरानी तस्वीरों में ऐसा क्या है
जो जब दिख जाती हैं तो मैं गौर से देखने लगता हूँ
क्या वह सिर्फ़ एक चमकीली युवावस्था है
सिर पर घने बाल नाक-नक़्श कुछ कोमल
जिन पर माता-पिता से पैदा होने का आभास बचा हुआ है
आंखें जैसे दूर और भीतर तक देखने की उत्सुकता से भरी हुई
बिना प्रेस किए कपड़े उस दौर के
जब ज़िंदगी ऐसी ही सलवटों में लिपटी हुई थी

इस तस्वीर में मैं हूँ अपने वास्तविक रूप में
एक स्वप्न सरीखा चेहरे पर अपना हृदय लिए हुए
अपने ही जैसे बेफ़िक्र दोस्तों के साथ
एक हल्के बादल की मानिंद जो कहीं से तैरता हुआ आया है
और एक क्षण के लिए एक कोने में टिक गया है
कहीं कोई कठोरता नहीं कोई चतुराई नहीं
आंखों में कोई लालच नहीं

यह तस्वीर सुबह एक नुक्कड़ पर एक ढाबे में चाय पीते समय की है
उसके आसपास की दुनिया भी सरल और मासूम है
चाय के कप, नुक्कड़ और सुबह की ही तरह
ऐसी कितने ही तस्वीरें हैं जिन्हें कभी-कभी दिखलाता भी हूँ
घर आए मेहमानों को

और अब यह क्या है कि मैं अक्सर तस्वीरें खिंचवाने से कतराता हूँ
खींचने वाले से अक्सर कहता हूँ रहने दो
मेरा फोटो अच्छा नहीं आता मैं सतर्क हो जाता हूँ
जैसे एक आइना सामने रख दिया गया हो
सोचता हूँ क्या यह कोई डर है है मैं पहले जैसा नहीं दिखूंगा
शायद मेरे चेहरे पर झलक उठेंगी इस दुनिया की कठोरताएं
और चतुराइयाँ और लालच
इन दिनों हर तरफ़ ऐसी ही चीजों की तस्वीरें ज़्यादा दिखाई देती हैं
जिनसे लड़ने की कोशिश में
मैं कभी-कभी इन पुरानी तस्वीरों को ही हथियार की तरह उठाने की सोचता हूँ

The Missing

In the urinals and other frequented places of this city
One still comes across posters of the missing people
Who had left home quietly many years ago
At the age of ten or twelve
They are shown possessing an average height
Complexion wheatish or dark but never fair
They wear rubber slippers
A scar on the face from some old injury
Their mothers still cry for them
Finally it is mentioned that anybody
Providing any news about the missing
Will be suitably rewarded

Yet no one can identify them
They do not resemble the faded images
On those posters anymore
Their initial sadness is now overwritten
With the endurance of suffering
Their faces reflect the changing seasons of the city
They eat little sleep little speak little
Their addresses keep changing
Facing the good and the bad days with equanimity
They are in their own world
Looking with faint curiosity
At the posters recording them as missing
Which their parents still issue from time to time
In which they continue to be
Ten and twelve

(Translated from Hindi by Asad Zaidi)

गुमशुदा

शहर के पेशाबघरों और अन्य लोकप्रिय जगहों में
उन गुमशुदा लोगों की तलाश के पोस्टर
अब भी चिपके दिखते हैं
जो कई बरस पहले दस बारह साल की उम्र में
बिना बताये घरों से निकले थे
पोस्टरों के अनुसार उनका कद मँझोला है
रंग गोरा नहीं गेहुँआ या साँवला है
हवाई चप्पल पहने हैं
चेहरे पर किसी चोट का निशान है.
और उनकी माँएँ उनके बगैर रोती रहती हैं
पोस्टरों के अंत में यह आश्वासन भी रहता है
कि लापता की ख़बर देने वालों को मिलेगा
यथासंभव उचित ईनाम

तब भी वे किसी की पहचान में नहीं आते
पोस्टरों में छपी धुंधली तस्वीरों से
उनका हुलिया नहीं मिलता
उनकी शुरुआती उदासी पर
अब तकलीफ़ झेलने की ताब है
शहर के मौसम के हिसाब से बदलते गए हैं उनके चेहरे
कम खाते कम सोते कम बोलते
लगातार अपने पते बदलते
सरल और कठिन दिनों को एक जैसा बिताते
अब वे एक दूसरी ही दुनिया में हैं

कुछ कुतूहल के साथ
अपनी गुमशुदगी के पोस्टर देखते हुए
जिन्हें उनके माता पिता जब तब छपवाते रहते हैं
जिनमें अब भी दस या बारह
लिखी होती है उनकी उम्र

6 comments
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  1. इन सर्दियों में कविता को छोड़कर बाकी दो कविताएं मैं बार-बार पढ़ता हूं। इस बार भी पढ़ीं। मंगलेशजी मेरे प्रिय कवि हैं और अकसर उनकी कविताएं मुझमें करुणा औऱ दहशत पैदा करती हैं। मैं उन पाठकों में से हूं जो अब भी किसी से मिलते हुए या विदा लेते हुए, प्रेम करते हुए, फिल्म देखते हुए या कविता पढ़ते हुए रोने लगते हैं। मंगलेशजी की कविताअों को पढ़ते हुए मुझे कहीं बहुत गहरे से रुलाई फूटने की आवाज सुनाई देती है…

  2. बहुत अच्छी कविताएं और उतने ही अच्छे अनुवाद असद जी के ! दोनो ही मेरे प्रियतर कवि हैं !

  3. पढ़ रहा हूँ तो लग रहा है कि
    जैसे शब्दों के चेहरे पर
    सच ह्रदय के भाव उभर आए हैं.
    संवेदनशील प्रस्तुति…
    सधा हुआ, प्रभाव छोड़ता अनुवाद.
    =========================
    आभार
    डा. चंद्रकुमार जैन

  4. ye kavitayen maine yahan pahli baar parhi. bahut achhi hain.
    prabhat ranjan

  5. अच्छी कविताओं का अच्छा अनुवाद . दोनों कवियों को बधाई !

  6. रुला देती हैं ये कवितायेँ !

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