आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

गोल गिरजाघर और अस्पताल की इमारतें पानी के तट पर: आन येदरलुण्ड

1.

गोल गिरजाघर और अस्पताल की इमारतें पानी के तट पर
आसमान सूरज की अन्तिम किरणों से सुनहरा है
तुम अपनी छाती में दर्द की शिकायत करते हो
पशु माँस के नीचे आग चटकती है

पीले आरोही बादल तुम्हारी छाती में गढ़ते हैं
लहरें भीतर आती हैं और टूट रही हैं
वे तीव्रता के प्रभाव से बचती हैं
माँस वाला अग्रिम पर्ण काट दिया गया है

तुम मुझे रक्त की शिराओं का ख़ाका दिखाते हो
मुझे दुख होता है कि तुम मनुष्य का माँस खाना चाहते हो
पानी वृक्ष एकदम किनारे पर फूल रहा है
गुफ़ाएँ स्मृति के उद्यान को बचा लेती हैं

विस्तार पूरी तरह से पीछे को गिर रहे हैं
कलाई आरी से चिरती है हाथ को बचाने
नम स्त्री कपाल का निर्दोष सिर
सौन्दर्य समय को खदेड़ता है

2.

तुम्हारी तलवार ऑक्सीजन भरे माँस में ज़ंग खाती है
वृक्षों और गिरजों के बीच सम्मान और उपेक्षा से
तुम मुझे देखने देते हो मेरे भीतर कैसा है
मैं ख़ुद अपनी जीभ पर माँस का स्वाद महसूस करती हूँ

तुम एक बार फिर अपना हाथ मेरे गोल घुटने पर रखते हो
यह एक आरामगाह है तुम जैसी रूहों के लिए
दरख़्तों की फुनगियाँ भी इसे छू रही हैं
अकेले संगमरमरी चीड़ कब्र के पत्थरों को सजाते हैं

बाँह असली हाथ से ज़्यादा चाहती है
तुम्हारी सख़्ती को फूलों की शक्कर से भरना चाहती है
टाँग तुम्हारी नन्हीं उँगली के बाद तारल्य से भर जाती है
मैं अपनी कमर में एक गहरा गड्ढा खोलना चाहती हूँ

प्रकृति पर समाना धातु धारियों से छाया करने का ढंग
और कि तुम्हारा ख़ून मरे हुए सिपाही में से बहता है
सितारे से सितारे तक वसन्त से जो खिल उठा है
वो सब जो तुम घायल के मज़बूत आकार के पास खाना चाहते हो

3.

तट पर लोग धब्बों में दिखते हैं
और धब्बे हैं उनके चित्र भी पानी में
एक फ़िरोज़ी फीता और उससे काँपते हुए धागे
कोई धीमे से रेत में से उठता है

घण्टाघर दीवार के आरपार खड़ा है
जो कुछ भी मुझे सुख देता था गूँजता है
और यहाँ सूर्य कौंधता हुआ चमकता है
प्रेमियों की तरह से इतराते हुए साथ चलते हैं

सफ़ेद और भूरे अंङ्गों का चलना
कपड़े बाँहों पर टंगें हैं
इत्र के गुच्छों में
ठण्डे पङ्ख हवा में सरसराहट से आते हुए

पाँव के तलुवे गोलाई की एक गाँठ में मुड़ते हैं
मैं पहले भी आयी हूँ यहाँ एक बार
देह के सबसे सुन्दर उभरे चित्र में लय की सङ्गत में
निगाह आसमान को गुलाबी छिड़कती है

4.

गर्मी की रोशनी की तल्ख़ी धीमे-धीमे बुझ रही है
पेड़ दुबले पड़ रहे हैं चुभने वाली घास की तरह
तुम अपना चेहरा मेरी ओर करते हो
नसें और ख़ून की बड़ी नाड़ियाँ खुले समुद्र में खिँचती हैं

लहरें ठण्डी रेत में लेटी हैं
वे सवार होती हैं और सूरज आँख मीच लेता है
आख़िरकार लहरों की सुमिरिनी भी मिट रही है
पानी और सतह के सामने तनी हुई

एजेण्ट धीरे से दुखिया के हाथ क्रॉस करता है
कितने नाज़ुक हैं वे बेदाग नज़र आते हुए
तुम्हें हमेशा पता रहेगा ख़ूबसूरती का क्या किया जाये
तुम आरपार साफ़ हो और दाग पहने हुए नहीं हो

तुम मेरे चेहरे को दोनों ओर खोलने की कोशिश करते हो
जैसे कि हाथ ही दरार की तल्ख़ी को बढ़ा सकता हो
सूक्ष्मदर्शीय को शामिल करता हुआ समुद्र तट की रक्षा करेगा
तुम मुझे इंतज़ार करने देते हो जब तक मैं ख़ुद नहीं कहती

5.

निगाह में ख़ुद से ख़ुद के प्रेम को समझाना
मोती की झालर के नीचे कपोल के रेशम पर
क्या यह ख़ुद मैं ही हूँ जो छाया के बीच में खड़ी है
तुम्हारे अटे हुए भूदृश्य के काफ़ी अन्दर

गगनमण्डल तक जैसे एक छाया सूरज की शुआओं तले
नीले हरे पानियों से चमकते किसी स्वप्न से आती हुई
क्या यह ख़ुद मैं ही हूँ और तुम हमेशा कोई और
उस ख़ामोशी में जो माथे की कगार पर तनी है

और हम में से कोई एक पौधे हैं अँधेरे से काटे हुए
ख़ूब मख़मली नीली नसों के नक़ूश लिए
स्वप्न में जहाँ तुम स्वप्न के सूरज से रोशन हुए खड़े हो
और सियाही टोपी की किनार के नीचे फैल रही है

रोशनी में त्वचा पर कढ़ाई तुम्हारी झालर के सामने
इसकी एक अलग-सी धुन है मुझमें दर्पण के काँच के सामने
जैसे दुर्बलता में घण्टियाँ माथे की कगार के नीचे
क्या यह ख़ुद मैं ही हूँ और तुम और हमेशा कोई और

6.

लाल हाथों में गुच्छों के साथ
ठीक उसी क्षण जब सुख
पलकें इतनी भारी कि कोई उठाता नहीं
ग्रीष्म के साथ आती है मृत्यु

जहाँ तक हल्के दलदलों पर घूमने वाले
बहुत दूर तक अपनी रोशनी में
तुम अपनी कंघी बालों में फिराते हो
वह इच्छा जिसे असमंजस फैलाता है

अब भी वह सगुन्ध में झूल रही है
हाथ के सुसङ्गत घेरों में
एक साफ़- शफ़्फ़ाफ दुनिया से जुड़ी
या वे नयन- नक़्श जो वनबेरों को धोते हें

लेकिन अब जबकि तुम स्वप्न में घूम रहे हो
उस पथ पर जो सभी ग्रीष्म वृक्षों के नीचे है
तुम हवा की पतली बयारों को महसूस करते हो
मुँह और लाल बेरों के बीच

7.

स्प्रूस के पेड़ बहती हवाओं के लिए झुकते हैं
काई ढंके खेतों के अँधेरे में भारी झूमते हुए
कोई इंतज़ार करते पगडण्डी पर मुड़ता है
रात वन को एक गहरी ख़ामोशी में डुबो देती है

मैं भी मुड़कर पगडण्डी पर चली आती हूँ
वह मुझे एक और ढीली आकृति में ले जाता है
वक्ष के नीचे जाङ्घों की हड्डियाँ तनी हुई हैं
माँसपेशियों की गाँठों में से चलते हैं सुन्नजीव

मैं अपनी बाँहें ऊपर उठाती हूँ और नीचे तैराती हूँ
चन्द्रमा की आकृति और विचित्र से निःशब्द रूप के सामने
बादलों के घेरे बाहर की रेखा पर चलाते हैं ख़ुद को
उन पेड़ों पर जो वन की ऊपरी रेखा से चेहरा ऊपर किये उठते हैं

फ़ासले के सामने तुम्हारे चेहरे का स्पष्ट आकार बड़ा होता है
कपोलों की नरम पीड़ा और शरीर की लम्बी छायाएँ
पगडण्डी पर स्प्रूस की सुइयाँ ज़मीन से सटना चाहती हैं
मैं अपना सिर अपना हृदय और अपनी आत्मा खो देना चाहती हूँ

8.

हमारी आत्मा का दृश्य-चित्र जो कहीं नहीं है
उस ग्रीष्म की भारी वन- मञ्जरियाँ तुम्हारे भारी सिर में
उसी मीनार के पास जो हरी पहाड़ी पर है
मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ शब्दहीन अँधेरे में से निकलते हुए

पौधे की जड़ें खींच लेती हैं पानी जो कम है
हमें बहुत स्वप्न देखना है और बड़ा सोचना है
अनुगूँज भी जवाब देना कब सीखेगी
गुलाब समुद्र को अपनी लाल पङ्खुडियों से आहत करना चाहता है

ठण्डे पानी के तट पर गिरजाघर
मैं चूस लेती हूँ तुम्हारे सुरीले सिर से
उसका तना और वज़न अँधेरी जड़ में
रोशनी की एक सिहरन गुज़र गयी गर्मी के दिनों के भीतर से

सबसे ऊँचा कभी नहीं न ही ताल की शुद्धता
मैं तुम्हारे बन्द कपोल को अपनी उँगलियों के सिरों से काटती हूँ
ऊपर को खिलता हुआ बादल तुम्हारी छवि को बनाये रखना चाहता है
गेंदे की स्पष्टता में धरी अन्तहीन घाटियों में

9.

तुम मेरे पास पक्षी की शक्ल में लौट रहे हो
हरे जड़ी पत्ते एक ओर रास्ते में मुड़ रहे हैं
मैं दोहराने की कोशिश करती हूँ जो तुम चाह रहे हो मेरे भीतर
उन तनों से आती हुई ध्वनि जो अब ज़्यादा अर्न्तदृष्टि से काटे गये हैं

काई और हीथर घास की शय्या में छिपे
तुम्हें अपना चेहरा मेरी ओर करना होगा
अकेली फूलमाला और माथा जो चमक रहा है
पानी जो भू-दृश्य के विशाल कक्षों में से चुपचाप गुज़र रहा है

वक्ष आरपार होते हुए धागों से बँधा है
जीवन में भी आँखें तुम्हें देख नहीं सकतीं
मैं तेज़ धधकते हुए अनन्त दृश्यों पर से चलना चाहती हूँ
उस मैदान से जो सख़्त पड़ रहा है और चुभते हुए घास के तिनकों पर

तुम और ठण्डे हो रहे दरख़्तों के नीचे से नदी को जाते हो
शाम के उजास और बढ़ी हुई टहनियों की छाया में
तुम कितने दूर हो और तुम्हारा रास्ता विचित्र लगता है मुझे
पत्थर चट्टानें ख़ूबसूरत और बहुत धुली ख़ामोशी से घिरी हैं

10.

बूँदों में ख़ून की तरह छुड़ाया गया और ख़ून में पानी
मैं तुम्हारे आकारों को ढो नहीं पाती
जैसे नमक ताज़ा पानी में घुलता है
और खेत अभाव की फ़सल काटते हैं जहाँ अब कुछ नहीं उगता

तुम इसे मेरी निगाह में देखते हो आँखों के एक चित्र में
कैसे कपोल एक भारी कक्ष में बन्द हैं
कैसे ग्रीवा धूसर पत्थरों से चिनी हैं
और भीतर के रिसाव से दिन बहते जा रहे हैं

हाँ अतिसिक्त कपोल हमेशा के लिए बन्द हैं
संसार की तरह नहीं लेकिन जैसा सँसार उन्हें कर छोड़ता है
उस मज़बूत मिट्टी में जहाँ ख़ून चला जाता है
रोज़ के जीवन में गहरे धँसा हुआ

मेरी आत्मा भी बहुत अकेली है
अन्य आत्माओं की तरह साफ़ और सहज चिह्नित
चेहरे को खोलकर और उसके भीतर दिखाया जा सकता है
गृह शिखर खींचते हैं अपनी ओर जैसे घण्टियाँ अब नहीं

11.

आकाश के नीचे घाटी अपनी झिल्ली में
नदी सङ्ग चलते हुए पौधों की ओस से भरी
हवा में कड़वी शुद्धता का स्वाद है
मैं देखती हूँ तुम अपने नर्म फेफड़ों में खींच रहे हो

घबराई तेज़ तुम्हारी चाल दबी हुई इच्छा से
सुन्दर पत्ता जो पानी और सतह को फेंट रहा है
वह पिछली रात जब सोने से रंग रहा था सूर्य तुम्हारे सिर को
तुम्हारी निगाह जो सोये हुए पेड़ों पर विश्राम कर रही थी

जब किरणें पानी से छनकर नीचे उतर रही थीं
जैसे शाश्वत शान्ति देते हुए किसी उत्तर के बाद
घाटी में नमूने के भीतर से उसने तुम्हारे जीवन का संचयन किया है
ज़र्द हाथों की ध्वनि और वह सुकून जो घाटी में छा गया था

वे परित्यक्त घर अपनी आत्म-मुग्ध मेज़-कुर्सियों के साथ
तुम्हारी राख धूसर ज़र्द चमड़ी और वह निगाह जो तल्ख़ी खो रही है
कोने से कोने तक फड़कती है वह कमरे में
उस हवा में जो साफ़ हो रही है जब विलय होते हैं तुम्हारी देह के सम्बन्ध

12.

वह पृथ्वी के ऊपर से एक और छाया सा गुज़रता है
जैसे दिन गुज़र रहा है और सूरज की बूँदें गिरती हैं
तुम्हारी रोशनी में गहरे कक्ष से ओट होता है
और मुँह अकेला चमकता है इतने सुर्ख़ घाव की तरह

और मैं ख़ुद विश्राम कर रही हूँ जब ख़ून बह रहा है
रेशम की त्वचा है यह जो मेरे कपोल से घिसट रही है
वे नर्म रॉकेट हैं दो पंक्तियों में टूटते हुए
और स्पर्श के लिए काँपते हैं रॉकेट की ज़मीन के

पीली सफ़ेद बूँदों की बारिश है
जैसे उस दृश्य पर जहाँ अन्धे ज़मीन जानवर चल रहे हैं
रक्त की बूँद जो ख़ुद आत्मा ने पैदा की है
जहाँ मृत आँखें कभी तुम्हें लेने नहीं आयेंगी

लेकिन अगर मैं आँखें बन्द करती हूँ तुम अपनी आत्मा को खोल देते हो
और आँख बन्द हो जाती है जब पीड़ा नहीं आती
तुम्हारे रॉकेट की मुण्डेर पर मुझे रोशनी में छोड़ने
जहाँ लम्बे गर्म जानवर किसी सूर्य की तरह जल रहे हैं

(स्वीड़ी से अनुवाद: तेजी ग्रोवर)

(सूर्य प्रकाशन मन्दिर, बीकानेर से जुलाई २००८ में प्रकाश्य संकलन से.)


1.

Rundkyrka och sjukhuslängor vid vattnet
Himlen är förgylld av solens sista strålar
Du klagar över smärtor i bröstet
Elden knastrar under djurets kött

De gula uppbolmande molnen sticker dig i bröstet
Vattenvågorna kommer in och går sönder
De viker undan för den stegrade effekten
Muskelsidans främre blad är bortskurna

Du visar en schematisk bild av kroppens kärlsystem
Det gör mig sorgsen du vill äta människokött
Vattenträdet blommar vid den yttersta kanten
Grottorna räddar minnets lustgård

Utvidgningarna faller helt och hållet tillbaka
Handleden är genomsågad för att skydda handen
Idealhuvud av ett fuktat kvinnokranium
Skönheten stöter bort tiden

2.

Ditt svärd rostar i det syrerika köttet
Ärat och vanskött bland träd och katedraler
Du låter mig se hur det verkligen ser ut inom mig
Jag känner själv smak av kött på min tunga

Du kupar handen ännu en gång över min runda knäskål
Den är en viloplats för själar såsom din egen
Också detta berör ju trädens kronor
Ensamma marmorpalmer pryder gravens stenar

Armen vill mer än själva handen
Den vill fylla din stränghet med blommornas socker
Benet är fyllt av vätska efter ditt smala finger
Jag vill öppna ett djupt hål i min egen sida

Metoden att skugga naturen med parallella metallstreck
Och att ditt blod rinner ur den döde soldaten
Från stjärna till stjärna ur våren som blommar
Allt det du vill äta vid offrets starkare form

3.

På stranden syns människorna i fläckar
Och fläckig är också bilden av dem i vattnet
En turkos rosett med vingliga band
Någon reser sig sakta ur sanden

Klockstapeln står grensle över muren
Allt som förr gav mig glädje ger eko
Här lyser också solen glittrande
Likt älskande spatserar de med varandra

Vita och brunlemmade rörelser
Kläderna hänger de över armen
I klasar av parfymer
Svala vingar från bruset i luften

Fotsulorna böjs i en led i valvet
Jag har här också en gång varit
Med rytmen i kroppens skönaste friser
Blickar pudrar himmelen rosa

4.

Sommarljusets skärpa mattas långsamt av
Träden blir tunnare som det stickande gräset
Du vänder ditt ansikte mot mig
Nerver och stora blodkärl sugs in i det öppna havet

Vågorna lägger sig ner mot den kalla sanden
De rider bort och solen sluter sitt öga
Slutligen försvinner också topparnas radband
Oupplösligt slipade mot vattnet och ytan

Den handlande korsar sakta den lidandes händer
De är så sköra förkunnade i sin renhet
Du kommer alltid att veta hur du ska hantera skönhet
Du är klar rakt igenom och bär inga egna fläckar

Du försöker öppna mitt ansiktes sidor
Som om själva handen kunde stegra öppningens skärpa
Havet vill skydda stranden med mikroskopiska inneslutningar
Du låter mig vänta tills jag själv ber om det

5.

I blicken att sin kärlek för sig själv förklara
Under en pärlas frans mot kindens siden
Är det jag själv som står i skuggans mitt
Långt inne i mitt mörka övertyngda landskap

Som skuggan upp till fästet under solens strålar
Ur drömmen lysande som blåa gröna vatten
Är det jag själv och du och alltid någon annan
I tystnaden som hänger över pannans branter

Och en av oss är växter uthuggna ur mörkret
Med anletsdrag av rika sammetsblåa ådror
I drömmen där du står belyst av drömmens sol
Och svärtan breder ut sig under brättet

Broderad över skinnet mot din frans i ljuset
Har den en annan ton i mig mot spegelns glas
Som klockor i det spröda under pannans branter
I skuggan som är jag och du och alltid någon annan

6.

Med klasarna i röda händer
I samma stund som njutningen
Så tunga lock som ingen lyfter
Med sommaren så kommer döden

Som för en vandrare på milda hedar
Långt borta i sitt eget ljus
Drar du din kam igenom håret
Den önskan som förvirring sprider

Det hänger också kvar i doften
I handen koherenta ringar
Förbundna med den klara världen
Eller de drag som sköljer över bären

Men som du nu i drömmen vandrar
På stigen under alla sommarträden
Du känner vindens tunna fläktar
Emellan munnen och de röda bären

7.

Granarna böjer sig för den drivande vinden
Svepande tunga i mörkret över täckmossans fält
Någon viker av mot den väntande stigen
Natten försänker skogen i en djupare tystnad

Jag viker också av och går in på stigen
Den för mig bort i en lösare skepnad
Nedanför bröstet är lårbenen sträckta
Genom musklernas fästen den bedövade gången

Jag lyfter upp mina armar och sänker ner dem
Inför månens gestalt och underligt ljudlösa form
Molnbankens ringar driver över konturen
Över träden som stiger i faser upp ur skogsbrynets rand

Inför avståndet ökar ditt ansiktes klara storlek
Kindernas mjuka smärta och långa anatomiska skuggor
Barren på stigen vill pressas mot marken
Jag vill förlora mitt huvud mitt hjärta och min själ

8.

Våra själars landskap finns ingenstans
Den sommarens tunga hängen i ditt tunga huvud
Därnere vid tornet på den gröna kullen
Jag vill se dig komma ur det ljudlösa mörkret

Växternas rötter suger upp det sparsamma vattnet
Vi måste drömma mycket och tänka stort
När ska också ekot lära sig svara
Rosen vill såra havet med sina röda kronblad

Katedralen vid kanten av det kyliga vattnet
Jag suger det ur ditt harmoniska huvud
Dess stam och tyngden i den mörka roten
Det går en skälvning av ljus genom sommarens dagar

Det är aldrig det högsta inte takternas renhet
Jag korsar din slutna kinder med fingrarnas toppar
Det uppblommande molnet vill bevara din likhet
I ändlösa dalar i ringblommans klarhet

9.

Du kommer tillbaka till mig i form av en fågel
De gröna växtformade bladen böjer av in mot stigen
Jag försöker upprepa det du inom mig önskar
Ljudet av stammar som hackas mer insiktsfullt nu

Hemligt i bädden av mossa och ljunggräs
Du måste vända ditt ansikte mot mig
Den ensliga kransen och pannan som blänker
Vattnet som rinner tyst genom landskapets salar

Bröstet är snört av trådar som korsar varandra
Inte ens i livet kan ögonen se dig
Jag vill gå över ändlösa vidder brinnande klara
Över ängen som stelnar och gräset stickande blad

Du går ner mot stranden under träden som svalnar
Skuggad av kvällens sken och utsträckta vita grenar
Du har kommit så långt bort och din väg är underlig för mig
Stenklippor slutna i en skön och översköljd tystnad

10.

Återlöst som blod i droppar och vatten i blod
Jag kan inte bära dina skepnader
Som saltet smälter i det friska vattnet
Och fälten skördar armod där inget växer mer

Du ser det i min blick i en bild av ögonen
Hur kinderna är inneslutna i ett tungt gemak
Hur halsen är belagd av gråa stenar
Och dagarna förflyter av det som rinner genom dem

Ja kinderna i mättnad är för alltid slutna
Inte som världen men som världen lämnar dem
I den kraftiga jorden där blodet ger sig av
Oupplösligt invävt i det dagliga livet

Min själ är också mycket ensam
Den är tydlig som andra själar och utstakad på känn
Ansiktet kan öppnas och visa sitt inre
Gavlarna är lockande som inga klockor mer

11.

Dalen under himlen sluten i sin kåpa
Med dagg från den frans av växter som följer floden
Vinden har en smak av bitter renhet
Jag ser dig dra in den i dina mjuka lungor

Din snabba nervösa gång laddad av behärskad åtrå
Det vackra bladet som piskar vattnet och ytan
Den första kvällen då solen förgyllde ditt huvud
Din blick då den vilade på träden som sov

Medan strålarna silade sig ner genom vattnet mot botten
Som efter ett oändligt rogivande svar
Det har grupperat ditt liv inifrån dalens mönster
Ljudet av bleka händer och friden som kom till dalen

De övergivna hemmen med sina egna försjunkna möbler
Din askgråa bleka hud och blicken som förlorar skärpa
Den fladdrar runt från hörn till hörn i rummet
I luften som klarnar när förbindelserna i din kropp ger vika

12.

Det går väl över jorden som en annan skuggning
Som dagen dör och solens droppar faller
Djupt i ditt sken från kammaren försvinner
Och lyser munnen ensam som ett sår så röd

Och själv jag vilar medan blodet rinner
Det är ett skinn av siden släpat för min kind
De mjuka klipporna som bryts i dubbla rader
Och skälver för en smekning genom klippans grund

Det är ett regn av gula vita droppar
Som över landskapet där blinda landdjur går
Det är en droppe blod som själen själv har skapat
Där aldrig mera döda ögon tar emot dig

Men om jag blundar så öppnar du din själ
Och ögat sluter sig när inte smärtan kommer
Tätt vid din klippavsats att lämna mig i ljuset
Där långa heta djuren bränner som en sol

(From Rundkyrka och sjukhuslängor vid vattnet, himlen är förgylld av solens sista strålar, 1992)

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  1. स्तरीय कवितायें और उतना ही काव्यात्मक अनुवाद .
    लेकिन अनुवाद के अंत पर
    ”सूर्य प्रकाशन मन्दिर, बीकानेर से जुलाई २००८ में प्रकाश्य संकलन से.”
    भूलवश आ गया लगता है .
    वाणी या राजकमल से इस साल स्वीडी कविताओं के दो अनुवाद आये हैं
    शायद यह उनमें से एक है .
    संपादक एवं अनुवादक के प्रति हार्दिक आभार .

  2. maheshji, bhool nahin hui hai. yah kitab wahin se aai hai.

  3. sundr anuvad aur kavitain. shukriya prtilipi

  4. bahut hi achchhi kavitayen!

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