आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

ऊँट का फूल: प्रभात

Art: Samia Singh

फूलों के गाँव में तरह-तरह के फूल थे. आक के फूल, अड़सूटा के फूल, कटैड़ी के फूल, आम के फूल, नीम के फूल, बबूल के फूल.

आक के फूल की शकल घुँघरू जैसी थी. परदेसी आक के फूल की षकल षहनार्इ से मिलती थी. इस तरह हरेक फूल में कोर्इ न कोर्इ खूबी थी. कटैड़ी के फूलों को देखकर लगता था जैसे वे पीले पानी के बने हैं. बबूल के फूल का रंग देखकर सोने के रंग की याद आ जाती थी.

एक दिन फूलों के गाँव में एक ऊँट आया. आक के फूल ने उससे पूछा-‘तुम क्या चीज हो जी? मैं तो फूलों की दुनिया के सिवा और किसी दुनिया को जानता नहीं. तो क्या तुम बताओगे कि तुम किस दुनिया के हो?

ऊँट जरा अकबका गया. बोला-‘किसी और दुनिया से क्या मतलब है तुम्हारा? मैं इसी दुनिया का हूँ.’

‘इसी दुनिया के हो तो यह बताओ कि तुम किसके फूल हो?-आक के फूल ने अगला सवाल पूछा.

ऊँट कोर्इ जवाब नहीं दे पाया. आक के फूल ने उसे प्यार से कहा-‘देखो तुम बहुत ऊँचे हो. तुम अपनी डाली से कहो कि वह तुम्हें थोड़ा नीचे झुका दे. ताकि हम आराम से बात कर पायें.

‘मेरी कोर्इ डाली वाली नहीं है’ – ऊँट ने परेशान होते हुए कहा.

‘डाली ही नहीं है. आक के फूल को अचरज हुआ और हँसी आ गर्इ-‘तब तुम किस पर लटक रहे हो?

‘मुझे कहीं लटके रहने की कोर्इ जरूरत नहीं है. मैं अपने पैरों पर सीधा खड़ा रह सकता हूँ’ – ऊँट ने कहा.

‘क्या तुम्हारी जड़ों को पैर कहते हैं?-फूल ने मामले को समझने के लिए यह सवाल पूछा.

‘तुमसे उलझने से तो अच्छा है मैं यहाँ से भाग जाऊँ.’ -ऊँट ने झल्लाते हुए कहा.

फूल ने बहुत प्यार से ऊँट से कहा-‘शायद तुम्हें कुछ बुरा लगा है. पर जहाँ तक मैं समझता हूँ, धूप अभी इतनी तेज नहीं हुर्इ है कि फूलों को बुरा लगने लगे और वे कुम्हला जाएं. क्या तुम किसी वजह से कुम्हला रहे हो?

‘हाँ मैं तुम्हारे सवालों से कुम्हला रहा हूँ’ – ऊँट ने कहा.

‘देखो जो जिस पेड़,पौधे या झाड़ी पर लगा होता है वह उसी का फूल होता है. इस तरह तुम बताओ कि तुम किसके फूल हो?’ फूल को यह अजीब लग रहा था कि दुनिया में कोर्इ किसी का फूल न हो.

‘देखो मैं एक ऊँट हूँ कोर्इ फूल नहीं’ – ऊँट ने हाँफते हुए कहा.

फूल ने कोमलता से समझाया – ‘ऊँट हो? तो तुम ऊँट के फूल हुये. अब देखो कैर है तो कैर के फूल हैं. रोहिड़ा है तो रोहिड़ा के फूल हैं. इस तरह तुम ऊँट हो तो ऊँट के फूल हुये कि नहीं?’

ऊँट को फूल की यह वाली बात सच्ची भी लगी और अच्छी भी. उसकी इच्छा हुर्इ काफिले में जाकर दूसरे ऊँटों को भी यह नर्इ जानकरी दे. उसने आक के फूल को ‘फिर मिलेंगे’ कहा और कूदता फर्लांगता काफिले में जा पहुँचा. जाते ही उसने सबको बताया कि-‘हम सब ऊँटों के फूल हैं’.

ऊँटों ने कहा-‘यह क्या होता है?’ और उसकी बात समझने से इंकार कर दिया.

4 comments
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  1. एक बहुत ही प्यारी कहानी ……..प्रभात भाई की कुछ बाल कविताये जनसत्ता में पढ़ी है…..ओ भी एक नोटबुक में सुरक्षित है….ये कहानी चुपके से एक दर्शन भी दे जाती है……प्रभात भाई को बधाई……खूब खूब…….

  2. प्रभात भाई जिंदाबाद!

    क्या सुन्दर जादुई कहानी है! उम्मीद है जल्द ही ‘चकमक’ में भी पढने को मिलेगी. लिखते रहे, लुभाते रहे, जवाबो की छलनी से, सवालों के महीन कंकर गिराते रहे.

  3. Bhai ye behad acchi kahani hai. Har mumqin tareeqon se bandhi hui aur saafdil kahaani hai yah. iske liye Prabhat ko exclusively badhai.

  4. Wonderful Story. Quite a delight…

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