June 2009: Himanshu Vyas
सत्तर गर्म चूल्हे:हिमांशु व्यास
”सादा! सत्तर गर्म चूल्हे!” अपने गांव का परियच, ‘मेरा दागिस्तान’ में रसूल हमजातोव यूं देता है। अपने शहर का ऐसा ही सरल व सुन्दर परिचय मैं पाना चाहता हूं। मिलता नहीं। नाम जरूर हैं। परियच शायद… ‘शहर। ७० लाख बदलते चैनल।’ या ‘शहर। एक करोड़ हॉर्न।’
‘मेट्रो स्पेस’ इन शब्दों के इर्द-गिर्द फोटोग्राफ्स के लिए जब शिव ने कहा तो इनमें निहित अन्तर्विरोध अच्छा लगा परिचित होने से पहले ही शहर ‘ मेट्रो’ भी हो गया ।
शहर का विस्तार ही ‘स्पेस’ को चबा-निगल कर होता है। तब ‘शहर’ और ‘स्पेस’ एक फ्रेम में पाना कल्पनाप्रसूत कलाओं यथा कविता, चित्रकारी में एक बात है, फोटोग्राफी में और। फिर फोटोजर्नलिस्म का वास्तविकता को अपने रंग व शब्द न देने के अनुशासन, शहर में स्पेस के संधान को कला बना देते है।
‘इस शहर में हर शख्श परेशां सा क्यूं है,’ एक वाक्य में पूरा शहर समेट लेता है। एक फ्रेम में ५० लाख की आबादी पर टिप्पणी सामान्य से बिम्ब को मेटाफर की भांति क्लिक कर के हो पाती है। और ठोस रिएलिटी में ही मेटाफर की प्रतीति कर पाना, फोटोजर्नलिस्ट के अन्दर एक कलात्मक स्पेस रचता है। और शहर में… मेट्रो में तो केवल पार्किंग स्पेस है।
रही बात भौतिक स्पेस की तो, आकाश कुतरती बहुमंजिलाएं, धरती भरती गाड़ियाँ और पांव… और पांव… और पांव… एक असहज सा बचा- खुचा स्पेस कैमरे के आगे डाल देते हैं।
मनुष्य फिर भी मुझे प्रिय हैं। पशु-पक्षी और भी प्रिय। पेड़ प्रियतम। फोटो का रंगीन या श्वेत श्याम होना मेरे लिए चिन्तन का विषय नहीं है। फ्रेम से निसृत भाव, माध्यम व तकनीकी कुशलता की ओर देखने वाले का ध्यान ही न जाने दें तो अच्छा लगता है।
आजकल हर हाथ में हर वक्त कैमरा रहता है। हर कोण से हर वक्त शहर को ‘खींचा’ जा रहा है। इन ‘अमेजिंग’ फोटोज़ से जो दृश्य छूट जाते हैं – मुझे वे ही दिखते हैं। कुता, गुड़िया , बुढ़िया, चिड़िया… दुनिया।
sunder manmohak or karunapurn 🙂
……………………………. Zindagi…!
zara bikhri tang galiyo k panno me doondho toh… ya uljhe-uljhe bijli k taaron k neechey dekho…. shayad barsaati gaddhon me kahi sarak gaya hoga… woh un boodhi aankho ki daraaj me bhi dekh lena… offoh!.. yahi toh tha kal tak…. gaya toh kidhar gaya shehar!!
wonderful, bravo himanshu! i proud of u!
bhai wah,iske siwa koi shabd hi nahi hai.kamal ho tussi.
simply awesome…….
bha sa majo aa gyo…. sahar ki galiyo se ye guftagu apne hi vistar ka koi patal to nahi??
bubbles …… aha ….. :)…..
synonym for dedication ….. tatz wat u are …!!!!
Raftaar…..yahi zindgi hai….. yar phir kuch khamosh kshan…..
I am quite struck by photographs of Himanshu Vyas. After a long gap, I am seeing quite a dense engagement with the landscape of the urban in Indian context. the play of stasis and movement, intensity and calmness and light and shadow are few words that come instantly. These pictures reveal a remarkable visual sensibility for geomatric contours of the city.
These pictures carve their own eye even when accompanied with remarkably written words.
Hope we shall be seeing him more on Pratilipi.
Many thanks for connecting me to this wonderful web-magazine. Himanshu’s pictures are like him — so understated that you almost miss them in the first go — but they grow on you over time and leave a lasting impression. Lage Raho…
Am grateful for such concern shown for the persons in my fotos. My head is always bowed to the people in my frames and to all of you my friends… i being a humble bridge in between..
his best shots are not here, i can say this much. though i liked the crowd wala photo. space needs to be created inside- within walls of flash and bones. wahan ka sankarapan zyada chintit karta hai.
kudos to creaters of this web magazine. Amazing work. People Like himanshu needs to be introduced to the world.
keep it up.
Awesome clicks….i am spellbounded…keep up the good work!
great vision , live movements
the pics tell their stories itself