आज़ादी विशेषांक / Freedom Special

अंक 13 / Issue 13

गाँव चलो / A Journey to the Village

इस खंड के सातों पाठों में एक शहरी/मेट्रोपोलिस आख्याता गाँव की यात्रा करता है. सुंदरवन के पर्यावरण संकट पर अध्ययन करने के सिलसिले में गीताश्री वहाँ जाती हैं और उनका गद्य संकट की एक प्रामाणिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के साथ साथ लेखक के भीतर शुरू हुई यात्रा का एक व्यक्तिगत वृतांत भी बन जाता है. ‘बिहार का शोक’ कही जाने वाली कोसी से गुजर रहे अध्ययनकर्ताओं व पत्रकारों के दल में शामिल दीपिका की नज़र एक बाहरी की तटस्थता के बावजूद नेहरूवादी विकास मॉडल को शोक के असली मानव-निर्मित कारक की तरह देख पाने से नहीं चूकती है. पंजाब के गाँवों में सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में भटकते हुए एनी ज़ैदी को कंकाल स्त्रियां मिलती हैं और वे पंजाब के ‘विकसित’ होने के लोकप्रिय मिथ के और ‘वर्ल्ड-क्लॉस’ विकास के हमारे सामूहिक आत्म-छल के पार देख पाती हैं. राजस्थान के गाँवों में अपनी सांवेदनिक बुनावद में गाँव के कवि प्रभात और उनके साथी विष्णु गोपाल मीणा यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि जंगल बचाने के लिये मनुष्यों को विस्थापित कर रही व्यवस्था के पास मनुष्यों को बचाने के लिये कोई जुगत है कि नहीं? एक कहानी की शक्ल में लिखा गया पीयूष दईया का पाठ उत्तरांचल में स्थित है और एक शिक्षापरक उद्देश्य के लिये लिखा गया है. यह कहानी आधुनिक शिक्षा में निहित औपनिवेशिकता के सम्मुख सर्जनात्मक कल्पना के सामर्थ्य का एक बेहतर उदाहरण है. शेष खंड से भिन्न दो पाठों में व्योमेश शुक्ल और गिरीन्द्रनाथ क्रमशः प्रेमचंद और फणीश्वरनाथ रेणु के गाँवों की यात्रा करते हैं यह जानने के लिये कि उनकी खुद अपने गाँवों में कैसी और कितनी उपस्थिति है? व्योमेश के वृतांत में प्रेमचंद की स्मृति के साथ स्थानीय लोगों और सरकार जैसी एजेंसियों के बदलते बर्ताव के बीच एक महान लेखक का मरणोपरांत जीवन फिर भी किसी तरह रहता है लेकिन लगाव और दूरी के बेहतरीन संतुलन से लिखे गये गिरीन्द्र के लेख में रेणु अपने गाँव में पूरी तरह अनुपस्थित हैं, एक तरह की अंतिम, निर्विकल्प, उदास अनुपस्थिति.
In all the (seven) texts in this section, a narrator from the city travels to the village. Geeta Shree goes to the Sundarbans to study the environmental crisis there, and her text presents not only a factual report of the crisis but a description of the journey that starts inside the author as well. Deepika Arwind, part of a group of academics and journalists gone to study the sorrow of Bihar, i.e. the Kosi, does not, despite an outsider’s neutrality, shirk from seeing the Nehruvian development model as the real, man-made reason behind the sorrow. Wandering through the Public Health Centers of Punjab, Annie Zaidi meets malnourished women and sees through the popular myth of Punjab’s development’ and the mass delusion of ‘world-class’ development. Poet of the village, Prabhat, and Vishnu Gopal Meena travel through two Rajasthani villages, trying to understand whether a system that displaces human beings to save forests also has a solution to save humans. Piyush Daiya’s text, set in Uttaranchal and written as a fiction with educational motives, is a great example of the power of the creative imagination against the inherent colonialism of modern education.In the remaining two texts, Vyomesh Shukla and Girindranath visit the villages of Premchand and Phanishwar Nath Renu respectively, to find out how much and what kind of presence they retain in their own villages. In Vyomesh’s piece, one sees how, amidst the changing attitudes of the local people and governmental agencies towards the memory of Premchand, how a great writer still lives on after his death. But in Girindra’s text, finely balanced between emotion and detachment, Renu is completely absent from his village: a final, unequivocal, depressing absence.

*

Click to Read

जहाँ मीठा पानी एक सपना हैः गीताश्री

When They ‘Tamed’ the Kosi: Deepika Arwind

‘World Class’: Annie Zaidi

रामपाली: प्रभात

हर दिन चटनी: विष्णु गोपाल मीणा

कार्तिक की कहानी: पीयूष दईया

लमही वतन है: व्योमेश शुक्ल

मोही जोगिनी बना के कहाँ गइले रे जोगिया: गिरीन्द्र नाथ झा

Tags:

Leave Comment